ओडिशा के मुख्य विपक्षी पार्टी बीजू जनता दल (बीजद) ने आंध्र प्रदेश में चल रहे पोलवरम परियोजना को रोकने की मांग की है। बीजद ने कहा है कि इस परियोजना की वजह से ओडिशा के मलकानगिरी जिले में बड़े पैमाने पर पानी बढ़ने की आशंका है। इस वजह से बुधवार को बीजद ने हजारों करोड़ की इस परियोजना पर रोक लगाने की मांग की है। इस मामले को लेकर बीजेद प्रतिनिधिमंडल ने नई दिल्ली में केन्द्रीय जल आयोग (सीडब्ल्यूसी) से मिलकर संशोधित बाढ़ डिजाइन के लिए नए सिरे से बैकवाटर अध्ययन कराने तथा सभी संबंधित राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ परामर्श प्रक्रिया शुरू करने को कहा।

चूंकि परियोजना की बाढ़ डिजाइन को 2006 में संशोधित कर 50 लाख क्यूसेक कर दिया गया है, जबकि 1970 में सीडब्ल्यूसी द्वारा 36 लाख क्यूसेक की प्रारंभिक बाढ़ डिजाइन क्षमता को मंजूरी दी गई थी, बीजद ने आरोप लगाया कि बाढ़ डिजाइन में परिवर्तन प्रभावित राज्यों के साथ उचित परामर्श के बिना लागू किया गया और जलमग्नता के स्तर पर इसके प्रभाव पर विचार नहीं किया गया।

ओडिशा के लोगों की सुरक्षा और आजीविका को प्रभावित करेगी योजना

बीजद के सीनियर नेता देबीप्रसाद मिश्रा ने कहा, ‘विशेषज्ञों की सिफारिशों और मलकानगिरी जिले के जनजातीय आबादी और लोगों की सुरक्षा के संबंध में ओडिशा सरकार की चिंताओं के बावजूद, सीडब्ल्यूसी ने संशोधित बाढ़ डिजाइन के लिए नए सिरे से बैकवाटर अध्ययन करने से इनकार कर दिया है।’

केंद्र ने शाह और राजनाथ की अध्यक्षता में गठित किया पैनल, आर्थिक और सामाजिक सुधारों पर देगा जोर, जानें किन मंत्रियों को मिली जगह

मिश्रा ने कहा कि बैकवाटर प्रभाव और ओडिशा पर इसके प्रभाव की गहन जांच की आवश्यकता के बावजूद, राज्य से उचित परामर्श नहीं किया गया है। बीजद नेता ने कहा कि जन सुनवाई और परामर्श प्रक्रिया में भी अत्यधिक देरी हो रही है, जबकि यह परियोजना ओडिशा के मलकानगिरी जिले के कई लोगों की सुरक्षा और आजीविका को प्रभावित करेगी।

बीजद ने राजनीतिक लाभ के लिए पोलावरम परियोजना का इस्तेमाल केंद्र की सरकारों पर निशाना साधने के लिए किया और उन पर ओडिशा के हितों पर विचार न करने का आरोप लगाया। बीजद सूत्रों ने बताया कि परियोजना के पूर्ण रूप से चालू हो जाने पर मलकानगिरी जिले की मोटू तहसील के 162 गांवों के जलमग्न होने की संभावना है।

पोलावरम परियोजना की परिकल्पना 1980 में गोदावरी जल विवाद न्यायाधिकरण (जीडब्ल्यूडीटी) के संकल्प के तहत की गई थी। न्यायाधिकरण के आदेश के अनुसार, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश और ओडिशा ने 2 अप्रैल, 1980 को 150 फीट के पूर्ण जलाशय स्तर और 36 लाख क्यूसेक की स्पिलवे निर्वहन क्षमता के साथ परियोजना के निर्माण को मंजूरी देने के लिए एक समझौता किया था, जिसे बाद में संशोधित कर 50 लाख क्यूसेक कर दिया गया था।