उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मंगलवार (चार अप्रैल) को अपनी पहली कैबिनेट बैठक में सूबे के छोटे एवं सीमांत किसानों के एक लाख रुपये तक का कर्ज माफ कर दिया। इसके साथ ही 120 लाख टन गेहूं खरीद की जब घोषणा की तो इस फैसले का ज्यादातर लोगों ने स्वागत किया। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने यूपी विधान सभा चुनाव से पहले किसानों की कर्जमाफी का वादा किया था और चुनाव जीतने के बाद एक हद तक उसे निभाया भी लेकिन राज्य के किसानों का एक बड़ा वर्ग ऐसा भी है जो शायद ज्यादा जरूरतमंद है, उसे योगी सरकार के इस फैसले से कोई लाभ नहीं मिलता दिख रहा है।

सामाजिक, आर्थिक एवं जातीय जनगणना 2011 के अनुसार उत्तर प्रदेश में कुल ग्रामीण परिवार की संख्या 2,60,15,544 है, जबकि यूपी में कुल 75704755.44 एकड़ जमीन है। जिन परिवारों के पास जमीन है उनकी संख्या 1,43,65,328 है। यानी उत्तर प्रदेश में 55.22 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों के पास ही जमीन है। बाकी बचे 11649123 ग्रामीण परिवारों के पास कोई जमीन नहीं है। यानी 44.78 प्रतिशत ग्रामीण परिवार भूमिहीन हैं। इन आकंड़ों से साफ है कि योगी सरकार के इस फैसले से यूपी के करीब आधे ग्रामीण परिवारों को कोई लाभ नहीं मिलने जा रहा है क्योंकि भूमिहीन होने के कारण इन परिवारों को इसका फायदा नहीं मिलने वाला है जबकि  इन्हें सरकारी सहायता की ज्यादा जरूरत होती है।

दरअसल, योगी सरकार ने प्रदेश के 94 लाख छोटे और सीमांत किसानों के 36,359 करोड़ रुपये लोन माफ करने की घोषणा की है। इस कर्ज-माफी में सात लाख किसानों द्वारा लिए गए वो 5630 करोड़ रुपये भी शामिल हैं जिन्हें विभिन्न बैंक नॉन परफॉर्मिंग एसेट (एनपीए) घोषित कर चुके थे। योगी मंत्रिमंडल ने 31 मार्च 2016 तक सूबे के 86.68 लाख छोटे और सीमांत किसानों द्वारा लिए गए 30,729 करोड़ रुपये के फसली ऋण माफ करने का भी फैसला किया है। योगी सरकार ने दो एकड़ से कम जोत वाले हर किसान का एक लाख रुपये तक का ऋण माफ करने की घोषणा की है। इसके अलावा 1625 रुपये प्रति क्विंटल के न्यूनतम खरीद मूल्य से 80 लाख मिट्रिक टन गेहूं खरीदने का भी ऐलान किया है। प्रदेश सरकार प्रति क्विंटल पर 10 रुपए ढुलाई और लदाई भी किसानों को देगी।”

भारत में एक हेक्टेयर (ढाई एकड़) से कम जमीन वाले किसानों को सीमांत किसान माना जाता है। जिन किसानों के पास एक से दो एकड़ जमीन होती है उन्हें छोटे किसान माना जाता है। सरकारी दस्तावेज के अनुसार उत्तर प्रदेश में कुल 2.30 करोड़ किसान हैं जिनमें से 1.85 करोड़ सीमांत हैं और 0.30 करोड़ छोटे किसान हैं। सामाजिक, आर्थिक एवं जातीय जनगणना 2011 के अनुसार उत्तर प्रदेश के 19,39,617 ग्रामीण परिवारों के पास 50 हजार रुपये या उससे अधिक की सीमा वाला किसान क्रेडिट कार्ड है। यानी कुल ग्रामीण परिवारों का 7.46 प्रतिशत किसान ही सरकारी किसान क्रेडिट कार्ड का लाभ उठा रहे हैं। जाहिर है कि बैंक से कर्ज लेने वाले किसानों का प्रतिशत और भी कम है।

योगी सरकार के फैसले पर पत्रकार पुष्यमित्र ने सोशल मीडिया पर लिखा है, “क्या हम-आप यह नहीं जानते कि यूपी-बिहार में बैंक से लोन लेकर खेती करने वाले किसानों की हैसियत क्या है? यहां अगर किसी को मदद की जरूरत है तो वो बंटाई करनेवाले किसान हैं, जो इन दोनों राज्यों की लगभग 80 फीसदी जमीन जोतते हैं। लेकिन चूंकि मालिकाना हक उनके पास नहीं होता है तो जाहिर है कि उन्हें न लोन मिलता है, न कृषि यंत्रों की खरीद पर सब्सिडी। वो कर्जदार जरूर हैं, मगर बैंकों के नहीं। उनकी जिंदगी आज भी सेठ-साहूकारों के और नये किस्म के सूदखोरों के घर गिरवी है। जो सैकड़ा में 5 और 10 रुपये की दर से कर्ज देते हैं और जिनका कर्ज कभी चुकता नहीं। बाकी बैंकों से लोन लेने वाले अमूमन पहुंच वाले समृद्ध किसान ही होते हैं। उन्हें यह फैसला मुबारक।”

सरकारी मुआवजा हो या कर्जमाफी वो उन्हीं को मिलती है जो खेती की जमीन के कागजी मालिक होते हैं। इस स्थिति की तरफ इशारा करते हुए पत्रकार अभिषेक रंजन सिंह लिखते हैं, “क्या आप जानते हैं, जब भी राज्य अथवा केंद्र सरकारों द्वारा किसानों के कर्जे माफ़ किये जाते हैं तो उसका वास्तविक लाभ किसे मिलता है? इसका उत्तर है देश का हर वो किसान जिनके पास भू-स्वामित्व के दस्तावेज और भू-लगान ( मालगुजारी ) की अद्यतन रसीद है।”

अभिषेक रंजन लिखते हैं, “उत्तर प्रदेश सरकार ने छोटे और सीमांत किसानों के कर्जे तो माफ़ कर दिए, लेकिन इसका लाभ उन भूमिहीन लाखों बटाईदार किसानों को नहीं मिलेगा क्योंकि उनके पास उस ज़मीन का मालिकाना हक़ नहीं है, जिसपर वह खेती करते हैं। बल्कि इसका एकमुश्त फायदा उन मालिकों को मिलेगा जो खुद खेती नहीं करते हैं…वहीं भूमिहीन बटाईदार किसान जिसने साल भर उस खेत में सपरिवार मेहनत की, उसके हिस्से सिर्फ निराशा आएगी।

कर्ज माफी ही की तरह गेहूं की सरकारी खरीद से भी बंटाईदार और भूमिहीन किसान लाभान्वित नहीं होंगे। अभिषेक रंजन लिखते हैं, “इन खरीद केंद्रों पर उन्हीं किसानों के अनाज ख़रीदे जाते हैं, जिनके पास संबंधित ज़मीन के कागजात होते हैं।….सबसे दु:खद बात यह है कि मराठवाड़ा, तेलंगाना, विदर्भ, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में आत्महत्या करनेवाले उन हज़ारों भूमिहीन किसानों के परिजनों को सरकारों की तरफ से कोई मुआवजा नहीं मिला, क्योंकि संबंधित विभाग की नजर और पैमाने में वे किसान नहीं थे, इसलिए कि जिसपर वह खेती करता था, उस पर मालिकाना हक़ किसी और का था।”

अभिषेक रंजन ने किसान क्रेडिट कार्ड ( केसीसी) के दुरुपयोग का मामला भी उठाया है।  अभिषेक रंजन लिखते हैं, “केसीसी का लाभ भी उन्हीं लोगों को मिलता है, जिनके पास भू-स्वामित्व के दस्तावेज और भू-लगान ( मालगुजारी ) की अद्यतन रसीद हो। ज़मीन मालिक ग़ैर कृषि कार्य के लिये बैंक से कर्ज़ लेते हैं और उससे भवन, वाहन और अन्य चीजें खरीदते हैं लेकिन जो वास्तविक रूप से खेती करने वाले भूमिहीन बटाईदार किसान हैं, उन्हें इसका लाभ नहीं मिलता।” जाहिर है कि योगी आदित्यनाथ सरकार का कर्जमाफी और गेहूं की सरकारी खरीद का फैसला किसानों के एक वर्ग को लाभ पहुंचाने वाला है लेकिन ये भूमिहीन और बंटाई पर खेती करने वाले बड़े वर्ग को राहत नहीं पहुंचा सकता है।