कुदरती आपदाओं के कारण भारत में विस्थापित हो रहे लोगों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। गरीब लोग इन आपदाओं का नुकसान सहन नहीं कर पा रहे हैं। मौसमी बदलाव के कारण आपदाएं आ रही हैं। इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फार एनवायरनमेंट एंड डेवेलपमेंट (आइआइईडी) के शोधकर्ताओं ने पाया है कि गरीब लोग इस कारण अपने घरबार छोड़कर दूसरी जगहों पर जाने को मजबूर हैं।
शोधकर्ताओं ने तीन राज्यों के एक हजार घरों का सर्वेक्षण किया। सर्वे में शामिल 70 फीसद लोगों ने कहा कि वे प्राकृतिक आपदा के तुरंत बाद विस्थापित हुए। भारत में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को लेकर यह अपनी तरह का पहला अध्ययन है। हाल में जारी की गई अध्ययन रिपोर्ट कहती है कि सूखे या बाढ़ के कारण फसलों की बर्बादी और चक्रवातों के कारण मछली पकड़ने में आने वाली बाधाएं मौसमी विस्थापन की सबसे बड़ी वजह रहीं। रिपोर्ट के मुताबिक, छोटे किसानों समेत देश के बहुत से गरीब लोग मौसमी आपदाओं के कारण होने वाली बर्बादी को वहन करने में नाकाम रहे हैं।
शोधकर्ता कहते हैं कि देश में समुद्र जलस्तर का बढ़ना, तापमान का बढ़ना और चक्रवातों जैसी आपदाएं बढ़ेंगी। रिपोर्ट की सह लेखिका ऋतु भारद्वाज के मुताबिक, ‘मौसम के कारण होने वाले विस्थापन का आकार हैरतअंगेज है। हम यह नहीं सोच सकते कि ऐसा कुछ नहीं हो रहा। सूखा, समुद्र के जलस्तर में वृद्धि और बाढ़ ने पहले से ही संघर्ष कर रहे लोगों पर और अधिक दबाव डाला है और वे जीवनयापन के कारण घर छोड़ने को मजबूर हुए हैं’।
‘जर्मनवाच’ नामक संस्था सालाना ‘ग्लोबल क्लाइमेट रिस्क इंडेक्स’ जारी करती है, जिसमें जलवायु के कारण सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाले देशों की सूची दी जाती है। 2021 की इस सूची में भारत शीर्ष 10वें क्रम पर है। भारलाज कहती हैं, लोग झेलने और आसानी से उबर पाने में सक्षम नहीं हैं। उन्हें जो नुकसान होता है, वह बेहद ज्यादा है। वे इसलिए घर छोड़कर दूसरी जगह जाते हैं क्योंकि वे निराश हो चुके होते हैं।’
असम भारत के उन राज्यों में है जहां जलवायु परिवर्तन के कारण लोगों की जिंदगियां बर्बाद हो चुकी हैं। हजारों लोग बार-बार उजड़ने को विवश हैं। असम के आदिवासी मिसिंग कबीले के लोग पीढ़ियों से ब्रह्मपुत्र के किनारे ही रहते आए हैं। कभी यह कबीला गर्व से कहा करता था कि उन्हें पता है ब्रह्मपुत्र कब कैसे चढ़ेगी और उतरेगी। अब ऐसा नहीं है। ब्रह्मपुत्र का व्यवहार उनके अनुमान से बाहर हो चुका है।
वैज्ञानिक पार्थज्योति दास बताते हैं कि पिछले एक दशक में असम के मौसम में भारी परिवर्तन हुआ है जो बाढ़ का एक बड़ा कारण बन गया है। गुवाहाटी स्थित शोध संस्थान अरण्यक में जलवायु प्रभाग के अध्यक्ष दास कहते हैं, पहले बारिश का मौसम लंबा होता था और बारिश की मात्रा अनुमानित होती थी।इसका समय भी अनुमानित होता था। अब बारिश बहुत ज्यादा अनिश्चित हो गई है। कम अवधि में ज्यादा बारिश होती है जिस कारण एकाएक बाढ़ आती है।
भारत के विज्ञान और तकनीकी मंत्रालय ने 2018 में एक अध्ययन प्रकाशित किया था। इसके मुताबिक, भारत के हिमालयी राज्यों में जलवायु परिवर्तन के सबसे ज्यादा खतरे असम को ही हैं। ऐसा होने के कई कारण बताए गए थे जिनमें कम प्रतिव्यक्ति आय, फसल बीमा की दरें, सिंचाई-योग्य भूमि की कमी जैसे कारक थे जिनके कारण किसान बारिश पर निर्भर रहते हैं। वर्ष 2014 से 2021 के बीच असम में बाढ़ के कारण 3.2 करोड़ लोग प्रभावित हुए। छह सौ लोगों की जान चली गई।
दीर्घकालिक समाधान पर जोर
बदलते मौसम के कारण बढ़ते विस्थापन पर काबू पाने के लिए जानकार दीर्घकालीन समाधान की जरूरत पर जोर देते हैं। जाधवपुर यूनिवर्सिटी में योजना और विकास इकाई के प्रमुख तुहीन के दास कहते हैं, आदिवासी समुदायों के जलवायु परिवर्तन के कारण हो रहे विस्थापन से निपटने के लिए सरकार को ऐसी नीतियां बनानी चाहिए जिनसे उन्हें दोबारा बसाया जा सके, उनकी आजीविकाओं को सुनिश्चित किया जा सके और उन्हें कौशल प्रशिक्षण दिया जा सके।