चीफ जस्टिस टीएस ठाकुर का कहना है कि जज बनना आसान नहीं है और यदि कोई व्‍यक्ति जज बन जाता है तो ज्‍यादा मुश्किल है। उन्‍होंने यह टिप्‍पणी हाल ही में एक जूनियर जज की अपील पर सुनवाई के दौरान की। जूनियर जज को उनके गुस्‍से और अनुपयुक्‍त व्‍यवहार के चलते पद से हटा दिया गया था। सीजेआई ठाकुर ने कहा, ” यदि आप जज हैं तो बहुत दिक्‍कत है। आपको सभी तरह वकीलों और याचिकाकर्ताओं का सामना करना पड़ता है। आपको विनम्रता और धैर्य रखना चाहिए क्‍योंकि आपके सामने कई तरह की बकवास आती है।” सीजेआई ठाकुर का कार्यकाल अगले साल चार जनवरी को समाप्‍त होने जा रहा है। वकीलों जजों के बर्ताव को लेकर वे पहले भी कई बार सख्‍त टिप्‍पणियां कर चुके हैं। पिछले दिनों नोटबंदी पर आई कुछ याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस टीएस ठाकुर को वकीलों के बर्ताव पर गुस्सा आ गया।

9 दिसंबर को टीएस ठाकुर ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि वकील कभी भी कोर्ट की गरिमा का पालन नहीं करते। उन्होंने कहा, ‘क्या यह मछली मार्केट है? मैं अपने साथ किस तरह की यादें लेकर जाउंगा? यहां मौजूद वकीलों को यह नहीं पता कि कैसे बर्ताव करना चाहिए। सभी एक दूसरे को चुप कराने में लगे रहते हैं। सुप्रीम कोर्ट में मेरा एक और हफ्ता रह गया है। मैं यहां से कैसी यादें लेकर जाऊंगा? मैं काफी भारी मन से यहां से जाउंगा।’ इससे पहले अक्‍टूबर में वरिष्‍ठ वकील इंदिरा जयसिंग की कुछ वकीलों के सीनियर बनने के क्रम में पारदर्शिता को लेकर दायर की गई जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान भी ठाकुर ने वकीलों के व्‍यवहार पर नाराजगी जाहिर की थी। उस समय उन्‍होंने कहा था, ”चुप हो जाओ। आप लोग चिल्‍ला क्‍यों रहे हैं? यह कोर्ट है या मछली मार्केट? मैंने कहा चुप हो जाओ। मैं आप लोगों को बाहर निकलवा दूंगा। कोर्ट की गरिमा होनी चाहिए। जो लोग कोर्ट रूम में अपने आप को संभाल नहीं पाते वे सीनियर वकील बनना चाहते हैं।”

चीफ जस्टिस ठाकुर जजों की कमी के मुद्दे पर सरकार की बेरुखी से आजिज नजर आए। कई मौकों पर उन्‍होंने इस समस्‍या को उठाया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ एक कार्यक्रम में तो इस मुद्दे को उठाते हुए वे कथित तौर पर भावुक भी हो गए। वहीं एक लेक्‍चर के दौरान उन्‍होंने जजों की नियुक्ति में सरकार के दखल पर भी सवाल उठाए। उन्‍होंने कहा कि न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया ‘‘हाईजैक’’ नहीं की जा सकती। न्यायपालिका स्वतंत्र होनी चाहिए क्योंकि ‘‘निरंकुश शासन’’ के दौरान उसकी अपनी एक भूमिका होती है। न्यायपालिका न्यायाधीशों के चयन में कार्यपालिका पर निर्भर नहीं रह सकती।