पूर्व चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) रंजन गोगोई राज्यसभा के लिए मनोनीत किए गए हैं। सोमवार (16 मार्च, 2020) को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने उन्हें इसके लिए नॉमिनेट किया। रोचक बात है कि सेवानिवृत्ति से पहले उन्होंने अयोध्या स्थित राम मंदिर विवाद पर फैसला सुनाया था। पूर्व सीजेआई ने तीन अक्टूबर, 2018 को देश के 46वें मुख्य न्यायाधीश के पद की शपथ ली थी। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने उन्हें राष्ट्रपति भवन में आयोजित एक समारोह में पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई थी।

देश के पूर्वोत्तर इलाके से आने वाले वो देश के पहले मुख्य न्यायाधीश बने थे। इससे पहले, वह गुवाहाटी हाईकोर्ट और पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में जज रहे। जस्टिस गोगोई के पिता केशब चंद्र गोगोई 1982 में छोटे से कार्यकाल के लिए असम के मुख्यमंत्री थे। उनका राजनीतिक संबंध कांग्रेस पार्टी से था। पांच भाई-बहनों में रंजन गोगोई के बड़े भाई अंजन गोगोई एयर मार्शल रह चुके हैं। रंजन गोगोई का जन्म 18 नवंबर, 1954 को असम के डिब्रूगढ़ में हुआ था। वहीं के डॉन बॉस्को स्कूल में उन्होंने प्राथमिक शिक्षा पाई। उसके बाद दिल्ली के सेंट स्टीफेन्स कॉलेज से इतिहास में स्नातक किया।

जस्टिस गोगोई ने अपने पिता की तरह ही कानूनी पेशे को अपनाया। हालांकि, उनके पिता बाद में राजनीति में चले गए। रंजन गोगोई साल 1978 में गुवाहाटी हाईकोर्ट में इनरॉल हुए और वहीं लॉ प्रैक्टिस शुरू की। करीब 22 सालों तक उन्होंने संविधान से जुड़े मामलों, टैक्सेशन और कंपनी लॉ से जुड़े मामलों की प्रैक्टिस की।

इसके बाद 22 फरवरी 2001 को उन्हें गुवाहाटी हाईकोर्ट में ही परमानेंट जज बनाया गया। गुवाहाटी हाईकोर्ट में नौ साल से ज्यादा समय तक जज रहने के बाद सितंबर 2010 में उनका तबादला पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट के लिए कर दिया गया। फरवरी 2012 में फिर उन्हें वहीं का चीफ जस्टिस बनाया गया। उसी साल अप्रैल 2012 में जस्टिस गोगोई को सुप्रीम कोर्ट का जज नियुक्त किया गया।

जस्टिस गोगोई उन जजों में शामिल थे जिनकी खंडपीठ ने स्वत: संज्ञान लेते हुए पूर्व जज जस्टिस मार्कन्डेय काटजू के खिलाफ अवमानना का नोटिस जारी किया था और कोर्ट में पेश होने का आदेश दिया था। उस खंडपीठ में जस्टिस पीसी पंत और जस्टिस यूयू ललित भी थे।

दरअसल, जस्टिस काटजू ने अपने एक ब्लॉग में केरल के सौम्या हत्याकांड पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले की आलोचना की थी। फरवरी 2011 को केरल में 23 साल की सौम्या के साथ रेप हुआ था। त्रिशूर स्थित फास्ट ट्रैक कोर्ट ने केस में आरोपी गोविंदास्‍वामी को सजा-ए मौत सुनाई थी।

केरल हाईकोर्ट ने उस सजा को बहाल रखा था लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने मौत की सजा को उम्रकैद में बदल दिया था। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि गोविंदास्वामी का इरादा सौम्या की हत्या का नहीं था। जस्टिस काटजू ने इसकी आलोचना की थी।

जस्टिस रंजन गोगोई उन सात जजों में भी शामिल थे जिन्होंने पिछले साल कलकत्ता हाईकोर्ट के जज जस्टिस सीएस कर्णन को अवमानना मामले में छह महीने की सजा सुनाई थी। दरअसल, जस्टिस कर्णन ने सुप्रीम कोर्ट और मद्रास हाईकोर्ट के कई जजों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने उनके खिलाफ अवमाना का केस शुरु किया था।

जस्टिस गोगोई उन जजों में भी शामिल थे जिन्होंने इस साल के शुरुआत में देश के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस दीपक मिश्रा के खिलाफ प्रेस कॉन्फ्रेन्स कर मोर्चा खोला था। इन जजों में जस्टिस (रिटायर्ड) जे चेलमेश्वर, जस्टिस एम बी लोकुर, जस्टिस कूरियन जोसेफ भी शामिल थे। इन चारों जजों ने मिलकर चीफ जस्टिस पर केस आवंटन में भेदभाव करने का आरोप लगाया था और लोकतंत्र को खतरे में बताया था।