भारत के मुख्य न्यायधीश एनवी रमना ने एक कार्यक्रम के दौरान कहा है कि पीआईएल, राजनीतिक बदले और नौकरशाही पर दबाव का जरिया बन गई है। उन्होंने कहा कि जनहित याचिकाओं के दुरुपयोग के कारण अदालतें अब जनहित याचिकाओं पर विचार में सतर्क हो गई हैं।

सीजेआई ने दिल्ली के विज्ञान भवन में आयोजित मुख्यमंत्रियों और हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीशों के संयुक्त सम्मेलन में ये बातें कहीं। सीजेआई ने कहा- “तुच्छ मुकदमेबाजी का निर्णय करना भी चिंता का विषय है। जनहित याचिका अब व्यक्तिगत हित के लिए मुकदमेबाजी में बदल रही है। कई बार जनहित याचिका का दुरुपयोग परियोजनाओं को रोकने या सार्वजनिक अधिकारियों पर दबाव डालने के लिए किया जाता है। इन दिनों जनहित याचिका किसी ऐसे व्यक्ति के लिए एक उपकरण बन गई है जो राजनीतिक बदला लेना चाहता है”।

इसके अलावा सीजेआई ने संसद द्वारा कानून पारित होने से पहले बहस करने की भी वकालत की। सीजेआई ने कहा- “यदि विधायिका लोगों के कल्याण को ध्यान में रखते हुए विचार करके कानून पारित करती है, तो मुकदमेबाजी की गुंजाइश कम से कम हो जाती है। विधायिका से यह अपेक्षा की जाती है कि वह कानून बनाने से पहले जनता के विचारों की मांग करे और उसपर बहस करे”।

सीजेआई पीएम मोदी के सामने ही सख्त रूख अपनाते दिखे। इससे पहले भी सीजेआई रमना न्यायिक व्यवस्था में कमियों को लेकर कई बार सार्वजनिक रूप से बोल चुके हैं। लंबित मामलों के लिए न्यायपालिका को अक्सर दोषी ठहराए जाने के सवाल पर उन्होंने कहा कि प्रत्येक दिन दर्ज और निपटाए गए मामलों की संख्या अकल्पनीय है।

उन्होंने कहा कि अवमानना ​​याचिकाएं अदालतों पर बोझ की एक नई श्रेणी हैं। ये सरकारों की तरफ से अवज्ञा का प्रत्यक्ष परिणाम है। सीजेआई ने कहा- “न्यायिक घोषणाओं के बावजूद सरकारों द्वारा जानबूझकर निष्क्रियता लोकतंत्र के लिए अच्छा नहीं है। हालांकि नीति-निर्माण हमारा अधिकार क्षेत्र नहीं है, यदि कोई नागरिक अपनी शिकायत को दूर करने के लिए प्रार्थना के साथ अदालत में आता है, तो अदालतें ना नहीं कह सकतीं…।”