सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने मंगलवार को कहा कि भारतीय न्यायपालिका के सामने सबसे बड़ी चुनौती न्याय तक पहुंच में आने वाली बाधाओं को खत्म करना है। उन्होंने कहा कि यह सुनिश्चित करना है कि न्यायपालिका समावेशी हो और पंक्ति में अंतिम व्यक्ति तक पहुंच योग्य हो। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा स्वतंत्रता दिवस पर राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में शीर्ष अदालत के निर्णयों के प्रमुख हिस्सों का क्षेत्रीय भाषाओं में अनुवाद करने के कदम की सराहना किए जाने के तुरंत बाद सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि अब तक शीर्ष अदालत के 9,423 निर्णयों का क्षेत्रीय भाषाओं में अनुवाद किया जा चुका है।
सुप्रीम कोर्ट के लॉन में सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (SCBA) द्वारा आयोजित स्वतंत्रता दिवस समारोह में बोलते हुए सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने नागरिकों को क्षेत्रीय भाषाओं में अपने सभी 35,000 फैसले उपलब्ध कराने के सुप्रीम कोर्ट के प्रयासों के बारे में भी बात की।
डीवाई चंद्रचूड़ ने यह भी कहा कि अदालतों को सुलभ और समावेशी बनाने के लिए प्राथमिकता के आधार पर बुनियादी ढांचे में सुधार की जरूरत है। वहीं कार्यक्रम में केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल भी मौजूद थे। उन्होंने कहा कि 2047 तक भारत को एक विकसित राष्ट्र बनाने के लिए एक रोडमैप आवश्यक है। कानून मंत्री ने कानून के शासन को लोकतंत्र की नींव बताया।
सीजेआई चंद्रचूड़ ने सुप्रीम कोर्ट के लॉन में राष्ट्रीय ध्वज फहराने के बाद अपने संबोधन में कहा कि कोर्ट का उद्देश्य एक ऐसी न्यायिक प्रणाली बनाना है जो लोगों के लिए अधिक सुलभ और लागत प्रभावी हो और इसमें टेक्नोलॉजी की पूरी क्षमता होनी चाहिए। कार्यक्रम के दौरान सीजेआई और कानून मंत्री के अलावा, सुप्रीम कोर्ट के कई न्यायाधीश, अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी, एससीबीए के पदाधिकारी मौजूद थे।
अपने संबोधन के दौरान सीजेआई ने कहा कि इस साल मार्च से जून के बीच शीर्ष अदालत ने 19,000 से अधिक मामलों का निपटारा किया है। उन्होंने कहा, “जैसा कि मैं भविष्य की ओर देखता हूं, मेरा मानना है कि भारतीय न्यायपालिका के सामने सबसे बड़ी चुनौती न्याय तक पहुंचने में आने वाली बाधाओं को खत्म करना है। हमें उन बाधाओं को दूर करके प्रक्रियात्मक रूप से न्याय तक पहुंच बढ़ानी होगी जो नागरिकों को अदालतों में जाने से रोकती हैं और न्याय देने की अदालतों की क्षमता में विश्वास पैदा करके भारतीय न्यायपालिका के भविष्य को सुनिश्चित करने के लिए हमारे पास एक रोडमैप है।
सीजेआई ने कहा कि अदालतों को सुलभ और समावेशी बनाने के लिए हमें प्राथमिकता के आधार पर अपने अदालती बुनियादी ढांचे में सुधार करने की जरूरत है। चंद्रचूड़ ने कहा कि भविष्य की चुनौतियों से निपटने के लिए न्यायिक बुनियादी ढांचे के आधुनिकीकरण पर जोर इस मिशन की कुंजी है।
न्यायिक प्रक्रिया में टेक्नोलॉजी के उपयोग पर सीजेआई ने कहा कि यह अक्षमता को खत्म करने का सबसे अच्छा उपकरण है। उन्होंने कहा, “हमें न्याय में प्रक्रियात्मक बाधाओं को दूर करने के लिए प्रौद्योगिकी की पूरी क्षमता का उपयोग करना होगा। हम ई-कोर्ट परियोजना के तीसरे चरण को लागू कर रहे हैं।” चंद्रचूड़ ने कहा कि ई-कोर्ट परियोजना के तीसरे चरण को केंद्र से 7,000 करोड़ रुपये की बजट की मंजूरी मिल गई है और यह देश भर की सभी अदालतों को आपस में जोड़कर, कागज रहित अदालतों के बुनियादी ढांचे की स्थापना करके अदालतों के कामकाज में क्रांतिकारी बदलाव लाना चाहता है।
सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा, “हमारा उद्देश्य एक ऐसी न्यायिक प्रणाली बनाना है जो न्याय चाहने वाले प्रत्येक व्यक्ति के लिए अधिक सुलभ, लागत प्रभावी और किफायती हो। हम पहले से ही अदालत परिसर और अदालत सेवाओं को विकलांगों के अनुकूल बनाने का प्रयास कर रहे हैं।”
सीजेआई ने नागरिकों को एससी के सभी फैसले क्षेत्रीय भाषाओं में उपलब्ध कराने के प्रयासों के बारे में भी बात की। उन्होंने कहा, “मुझे आपके साथ यह भी साझा करना चाहिए कि प्रधानमंत्री ने आज लाल किले पर अपने स्वतंत्रता दिवस के भाषण के दौरान सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का भारतीय भाषाओं में अनुवाद करने के प्रयासों का उल्लेख किया। मैं इसके बारे में और विस्तार से बताना चाहूंगा और आपको बताऊंगा कि अब तक सुप्रीम कोर्ट के 9,423 फैसलों का क्षेत्रीय भाषाओं में अनुवाद किया गया है। 8,977 फैसले हिंदी में और इसके अलावा गुजराती, कन्नड़, मलयालम, मराठी, पंजाबी, तमिल, उर्दू, असमिया, बंगाली जैसी भाषाओं में भी हैं।
सीजेआई ने कहा कि किसी मामले का नतीजा चाहे जो भी हो, उनका मानना है कि सिस्टम की असली ताकत नागरिकों को न्याय तक पहुंच प्रदान करना है। उन्होंने कहा , “अगर हम पिछले 76 वर्षों पर नज़र डालें, तो हमें पता चलता है कि प्रत्येक संस्था ने हमारे देश की आत्मा को मजबूत करने में योगदान दिया है और यह महत्वपूर्ण है कि हम यह पहचानें कि हमारे देश की सभी संस्थाएँ – कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका – आपस में जुड़ी हुई हैं।अदालतें व्यक्तियों को अपने जीवन और स्वतंत्रता की सुरक्षा के लिए एक सुरक्षित लोकतांत्रिक स्थान प्रदान करती हैं। पिछले 76 वर्षों से पता चलता है कि भारतीय न्यायपालिका का इतिहास भारतीय लोगों के दैनिक जीवन संघर्षों का इतिहास है। यदि हमारा इतिहास हमें कुछ सिखाता है, तो वह यह है कि अदालतों के लिए कोई भी मामला बड़ा या छोटा नहीं है। छोटे-छोटे मामलों में गंभीर संवैधानिक और न्यायिक महत्व के मुद्दे सामने आते हैं।”