Caste Based Survey :  बिहार (Bihar) में जाति आधारित जनगणना (Caste Census) के खिलाफ दायर जनहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) सुनवाई के लिए राजी हो गया है। मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ (Justice DY Chandrachud) और न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा (Justice P S Narasimha ) की पीठ ने याचिकाकर्ता की ओर से पेश एक वकील के जरिए मामले रखे जाने के बाद 20 जनवरी को सुनवाई की मंजूरी दी है। सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका में बिहार में हो रही जाति आधारित जनगणना को चुनौती देते हुए कहा गया है कि जनगणना कराने का अधिकार केंद्र सरकार को है, राज्य सरकार को जनगणना कराने का अधिकार नहीं है।

नालंदा के अखिलेश कुमार ने दायर की है याचिका

बिहार (Bihar) में जाति आधारित जनगणना (Caste Census) के खिलाफ यह याचिका नालंदा के रहने वाले अखिलेश कुमार ने दायर की है। याचिकाकर्ता अखिलेश कुमार ने बिहार सरकार द्वारा जारी 6 जून 2022 की अधिसूचना को रद्द करने की मांग की है। जातिगत जनगणना पर यह दूसरी याचिका है। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट में अधिवक्ता बरुण कुमार सिन्हा के जरिए एक जनहित याचिका (पीआईएल) दायर की गई थी। जिसमें बिहार सरकार के उप सचिव द्वारा जारी अधिसूचना को रद्द करने की मांग की गई थी।

याचिका में क्या है ?

सुप्रीम कोर्ट में दायर की गयी इस याचिका में कहा गया है कि जनगणना का विषय संविधान की 7वीं अनुसूची की सूची 1 में आता है और केवल केंद्र के पास ही जनगणना कराने का अधिकार है। जनहित याचिका में आरोप लगाया गया है कि बिहार सरकार की अधिसूचना संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करती है। याचिका में कहा गया है कि बिहार सरकार अवैध और मनमाने तरीके से इसे थोपना चाहती है।

तेजस्वी यादव का बयान

बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने इस मामले को लेकर बयान देते हुए कहा है कि यह जातिगत जनगणना नहीं बल्कि जाति आधारित सर्वेक्षण है। यह लोगों की वित्तीय स्थिति के बारे में डेटा देगा। अगर यह गलत है तो हर तरह की गिनती गलत है चाहे वह हिंदू, मुस्लिम, एससी, एसटी और जानवरों की हो। इसे भाजपा सहित सभी दलों द्वारा विधानसभा में सर्वसम्मति से पारित किया गया है।