CJI Chandrachud: चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) डॉ. धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ 10 नवंबर को रिटायर हो जाएंगे। सीजेआई के दो सालों की उपलब्धियों पर गौर किया जाए तो वे एक ऐसे व्यक्ति हैं जिन्होंने न्यायिक या प्रशासनिक पक्ष में सूचना प्रौद्योगिकी का उपयोग करके भारतीय न्यायपालिका को पूरी तरह से बदलने के मिशन को सफलतापूर्वक शुरू किया। साथ ही सभी स्तरों पर अदालतों को अधिक सुलभ, समावेशी बनाकर नागरिक-केंद्रित सेवाएं प्रदान करने की कोशिश की।

सीजेआई का यह कार्यकाल असाधरण रहा। क्योंकि इस दौरान कई महत्वपूर्ण पहल की शुरुआत हुई, जिनमें न्याय और दक्षता तक पहुंच में सुधार के लिए अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी को अपनाना शामिल रहा। इस दौरान व्यक्तिगत स्वतंत्रता, महिला अधिकार और लैंगिक समानता तथा दिव्यांगों के अधिकारों को बरकरार रखते हुए कई ऐतिहासिक फैसले दिए। सीजेआई के अन्य फैसलों की बात करें तो सीजेआई पांच दिन में पांच और बड़े फैसले सुनाने वाले हैं। क्योंकि अभी सीजेआई चंद्रचूड़ के पास पांच कार्य दिवस हैं।

फिलहाल सुप्रीम कोर्ट दीवाली की छुट्टियों के कारण बंद है। शीर्ष अदालत 4 नवंबर (सोमवार) को खुलने के बाद CJI चंद्रचूड़ के पास शुक्रवार तक सिर्फ पांच कार्यदिवस हैं। 9 नवंबर को शनिवार है और 10 नवंबर को जिस दिन वे सेवानिवृत्त होंगे। वह रविवार है। दोनों ही दिन सुप्रीम कोर्ट में अवकाश है।

5 बड़े फैसले जो CJI चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली बेंच 4 नवंबर से 8 नवंबर के बीच सुनाएगी

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मदरसा शिक्षा की वैधता पर (VALIDITY OF MADARSA EDUCATION): 23 अक्टूबर को फैसला सुरक्षित रखा गया। ये मदरसों, मुस्लिम व्यक्तियों द्वारा दायर अपीलें हैं, जो इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम, 2004 को रद्द करने को चुनौती देती हैं। सुनवाई को समाप्त करते हुए CJI डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने इस बात पर जोर दिया था कि “धर्मनिरपेक्षता का मतलब है जियो और जीने दो”, उनके नेतृत्व वाली पीठ ने शिक्षा में विविध धार्मिक शिक्षा को समायोजित करने के महत्व पर प्रकाश डाला। यह कहते हुए कि राज्य मदरसों के कामकाज को विनियमित करने के लिए नियम बना सकता है, लेकिन उन्हें खारिज नहीं किया जा सकता है। पीठ ने कहा, “आखिरकार, हमें इसे देश के व्यापक दायरे में देखना होगा। धार्मिक निर्देश केवल मुसलमानों के लिए नहीं हैं। यह हिंदुओं, सिखों, ईसाइयों, बौद्धों आदि के लिए हैं।” भारत एक धार्मिक देश है, इस पर बार-बार जोर देते हुए मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने कहा, “देश को संस्कृतियों, सभ्यताओं और धर्मों का एक मिश्रण होना चाहिए। आइए हम इसे इसी तरह संरक्षित रखें।

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अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) को अल्पसंख्यक का दर्जा (MINORITY STATUS FOR ALIGARH MUSLIM UNIVERSITY (AMU): सात जजों की संविधान पीठ द्वारा आठ दिनों की मैराथन सुनवाई के बाद 1 फरवरी को फैसला सुरक्षित रख लिया था। बता दें, 1968 में अजीज बाशा मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया था कि एएमयू अल्पसंख्यक संस्थान नहीं, बल्कि राष्ट्रीय महत्व का एक केंद्रीय विश्वविद्यालय है और यह किसी विशेष समुदाय से संबंधित नहीं है। इसकी स्थापना मुसलमानों ने नहीं, बल्कि 1920 में ब्रिटिश संसद ने की थी। सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया था कि एक बार संविधान द्वारा इसे राष्ट्रीय महत्व का विश्वविद्यालय घोषित कर देने के बाद इसे अल्पसंख्यक संस्थान घोषित नहीं किया जा सकता। केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने तर्क दिया कि एएमयू किसी विशेष धर्म या धार्मिक संप्रदाय का विश्वविद्यालय नहीं है और न ही हो सकता है, क्योंकि कोई भी विश्वविद्यालय जिसे राष्ट्रीय महत्व का संस्थान घोषित किया गया है, वह अल्पसंख्यक संस्थान नहीं हो सकता।

संपत्ति का पुनर्वितरण (WEALTH RE-DISTRIBUTION): संपत्ति के पुनर्वितरण पर कांग्रेस के विचार पर राजनीतिक विवाद के बीच सुप्रीम कोर्ट की नौ जजों की पीठ ने संविधान के अनुच्छेद 39(बी) की व्याख्या करते हुए कार्यवाही शुरू की थी। राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांतों के अंतर्गत आने वाले इस संवैधानिक प्रावधान की जांच की जा रही है, ताकि यह निर्धारित किया जा सके कि क्या यह सरकार को व्यापक सार्वजनिक हित के नाम पर निजी स्वामित्व वाली संपत्तियों को पुनर्वितरित करने का अधिकार देता है। सुनवाई उस समय हुई थी, जब राजनीतिक विवाद चल रहा था। यह तब हुआ जब कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा कि अगर पार्टी सत्ता में आती है, तो देश में लोगों के बीच संपत्ति के वितरण का पता लगाने के लिए वित्तीय और संस्थागत सर्वेक्षण कराएगी।

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दिल्ली रिज ट्री फेलिंग विवाद (DELHI RIDGE TREE FELLING CONTROVERSY): सुप्रीम कोर्ट के प्रतिबंध आदेश का उल्लंघन करते हुए दिल्ली के रिज क्षेत्र में पेड़ों की अवैध कटाई से संबंधित विवाद है। जिसमें दिल्ली एलजी की भूमिका सवालों के घेरे में है। सीजेआई बेंच के निर्देश पर दायर हलफनामे में एलजी वीके सक्सेना ने कहा है कि उन्हें इस बात की जानकारी नहीं थी कि रिज क्षेत्र में पेड़ों की कटाई से पहले अदालत की मंजूरी की आवश्यकता है। साइट पर किसी ने भी कानूनी आवश्यकता के बारे में नहीं बताया। डीडीए के उपाध्यक्ष सुभाषिश पांडा की ओर से भी कोई चूक/कार्यवाही नहीं की गई। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने हलफनामे के माध्यम से आगे स्पष्टीकरण मांगा है कि उन्हें वास्तव में कब पता चला कि पेड़ काटे गए हैं।

एलएमवी लाइसेंस का दायरा (AMBIT OF LMV LICENSE): इस मामले में 21 अगस्त को फैसला सुरक्षित रखा गया था। मुद्दा यह है कि क्या “लाइट मोटर व्हीकल” (एलएमवी) के संबंध में ड्राइविंग लाइसेंस रखने वाला व्यक्ति, उस लाइसेंस के बल पर, 7500 किलोग्राम से अधिक वजन वाले “लाइट मोटर व्हीकल क्लास के परिवहन वाहन” को चलाने का हकदार हो सकता है। कानूनी सवाल ने एलएमवी चलाने के लाइसेंस रखने वालों द्वारा चलाए जा रहे परिवहन वाहनों से जुड़े दुर्घटना मामलों में बीमा कंपनियों द्वारा दावों के भुगतान को लेकर विभिन्न विवादों को जन्म दिया है। बीमा फर्मों का आरोप है कि मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण (एमएसीटी) और अदालतें एलएमवी ड्राइविंग लाइसेंस के संबंध में उनकी आपत्तियों की अनदेखी करते हुए उन्हें बीमा दावों का भुगतान करने के लिए आदेश पारित कर रही हैं। बीमा फर्मों ने कहा है कि बीमा दावा विवादों का फैसला करते समय अदालतें बीमाधारक के पक्ष में दृष्टिकोण अपना रही हैं।