भारत सरकार के आंकड़े हैं कि हर रोज 350 भारतीय अपनी नागरिकता छोड़ रहे हैं। ऐसा नहीं है कि सिर्फ बेरोजगारी और गरीबी से परेशान लोग ऐसा कर रहे हैं। माहौल ऐसा है कि अरबपति भी भाग रहे हैं। एक जनवरी 2015 से 30 सितंबर 2021 के बीच करीब नौ लाख लोगों ने भारतीय नागरिकता छोड़ी है। विदेश मंत्रालय के मुताबिक, अभी कुल 1,33,83,718 भारतीय नागरिक विदेशों में रह रहे हैं।
विदेश मंत्रालय के मुताबिक, जिन लोगों ने भारतीय नागरिकता छोड़ी है, वे लोग 106 से ज्यादा देशों के नागरिक बने हैं। इस दौरान छह हजार से ज्यादा लोगों को भारतीय राष्ट्रीयता मिली है। वर्ष 2019 में सबसे ज्यादा 1.44 लाख लोगों ने भारतीय नागरिकता छोड़ी।
विदेश मंत्रालय ने सरकार को इस बारे में विस्तृत आंकड़ा सौंपा है। विदेश मंत्रालय के मुताबिक, लोगों ने निजी कारणों से भारतीय नागरिकता छोड़ी है। वर्ष 2016 से 2021 के बीच, कुल 7,49,765 भारतीयों ने अपनी भारतीय नागरिकता का त्याग किया, जिसमें से 2019 में सबसे अधिक 1.44 लाख लोगों ने भारतीय नागरिकता छोड़ी। इसके पहले वर्ष 2016 में 1.41 लाख लोगों ने भारतीय नागरिकता छोड़ी।
मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, वर्ष 2017 से 6.08 लाख भारतीयों ने विदेशी राष्ट्रीयता पाने के लिए अपनी नागरिकता छोड़ दी। वर्ष 2017 के बाद से देश छोड़ने वाले भारतीयों का बड़ा हिस्सा अमेरिका, कनाडा, आस्ट्रेलिया और इंग्लैंड चला गया। वर्ष 2017 के बाद से भारतीय नागरिकता छोड़ने वालों में से 82 फीसद ने इन चार देशों की नागरिकता ली।
वर्ष 2019 में जब सबसे अधिक संख्या में भारतीयों ने अपनी नागरिकता का त्याग किया, तो इन चार देशों में ही 85 फीसद लोग गए। वर्ष 2017 के बाद से, कम-से-कम 2.56 लाख भारतीयों ने अमेरिका के लिए अपनी नागरिकता छोड़ दी, जबकि 91,000 से अधिक लोग कनाडा चले गए।
मंत्रालय के मुताबिक, कम से कम 31 भारतीयों – 2020 में सात और 2021 में 24, ने पाकिस्तान के लिए भारतीय नागरिकता का त्याग किया। वर्ष 2017 और 2021 के बीच 2,174 भारतीयों ने अपनी नागरिकता छोड़ दी और चीन चले गए। उस दौरान 94 भारतीय श्रीलंका जाकर बस गए। नेपाल ने 134 भारतीयों को नागरिकता देने की पेशकश की है।
दूसरी ओर, गृह मंत्रालय के मुताबिक, वर्ष 2016 और 2021 के बीच कुल 5,891 विदेशियों को भारतीय नागरिकता दी गई थी। मंत्रालय ने आंकड़े जारी किए हैं कि वर्ष 2018 और 2021 के बीच पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से हिंदू, सिख, जैन और ईसाई अल्पसंख्यक समूहों से कम से कम 8,244 नागरिकता के आवेदन प्राप्त हुए थे।
वर्ष 2018 से पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के कुल 3,117 हिंदू, सिख, जैन और ईसाई अल्पसंख्यकों को भारतीय नागरिकता दी गई। दिसंबर 2021 तक, 10,635 भारतीय नागरिकता के आवेदन लंबित थे, जिनमें पाकिस्तान से 7,306 और अफगानिस्तान से 1,152 लोगों के आवेदन शामिल हैं। देश की नागरिकता छोड़ने वालों में भारत के करोड़पति और अरबपतियों की भी भारी तादाद है। मार्गन स्टेनली बैंक ने साल 2018 में कुछ आंकड़े जारी किए थे। इसके मुताबिक, वर्ष 2014-18 के बीच 23,000 भारतीय करोड़पतियों ने देश छोड़ा था। ग्लोबल वेल्थ माइग्रेशन रिव्यू की एक रिपोर्ट में पाया गया कि लगभग 5,000 भारतीय करोड़पति अकेले साल 2020 में भारत छोड़कर विदेश चले गए।
दूसरे देशों की नागरिकता और वीजा दिलाने वाली ब्रिटेन स्थित अंतरराष्ट्रीय कंपनी हेनली एंड पार्टनर्स का कहना है कि गोल्डन वीजा यानी निवेश के जरिए किसी देश की नागरिकता चाहने वालों में भारतीयों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। हेनली ग्लोबल सिटिजंस रिपोर्ट के मुताबिक नागरिकता नियमों के बारे में पूछताछ करने वालों में 2020 के मुकाबले 2021 में भारतीयों की संख्या 54 फीसद बढ़ी थी। वर्ष 2020 में भी साल 2019 के मुकाबले इस संख्या में 63 फीसद की बढ़ोतरी दर्ज की गई थी।
क्यों छोड़ रहे नागरिकता
भारत के धनी लोगों द्वारा नागरिकता छोड़ने की बड़ी वजह कारोबार में असुरक्षा की भावना होना है। कुछ जीवन स्तर की तलाश में विदेश चले गए हैं। पढ़ाई-लिखाई के लिए भी कई परिवार गए हैं। पढ़ाई के लिए विदेश गए लोगों में से करीब 70-80 फीसद युवा वापस भारत नहीं लौटते। अच्छे भविष्य की संभावनाओं को देखते हुए वे विदेशों में ही बस जाते हैं। बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं भी जाने की एक वजह है। बेरोजगारी की वजह से पंजाब, दिल्ली और हरियाणा के ज्यादातर लोग कनाडा का रुख करते हैं। उत्तर और बिहार के लोग खाड़ी देशों में जाना ज्यादा पसंद करते हैं।