नोबेल पुरस्कार विजेता और रॉयल सोसाइटी (ये प्रतिष्ठित बॉडी है जिनके सदस्यों में दुनिया के शीर्ष वैज्ञानिक शामिल हैं) के अध्यक्ष सर वेंकटरामन रामकृष्णन नागरिकता संशोधन बिल (CAB) पर अपनी राय रखी है। उन्होंने सरकार के CAB की कड़ी निंदा की जो धर्म को नागरिकता का कारक बनाता है। एक अंग्रेजी अखबार को दिए साक्षात्कार रसायन विज्ञान में नोबेल विजेता ने कहा, मैं भारतीय वैज्ञानिकों और विद्वानों के एक समूह द्वारा आयोजित याचिका पर व्यक्तिगत रूप से हस्ताक्षर नहीं करुंगा, क्योंकि मुझे लगता है कि यह केवल भारत के नागरिकों द्वारा किया जाना चाहिए।’ हालांकि उन्होंने अपनी गहरी चिंता जाहिर करते कहा कि ‘भारत एक खतरनाक मोड़ ले रहा है।’ बता दें कि वेंकटरामन के पास अमेरिका और यूके की दोहरी नागरिकता है।
साक्षात्कार में पूछने पर कि उन्होंने इस मुद्दे पर बोलने का फैसला क्यों लिया? इसर उन्होंने कहा, ‘मैंने बोलने का फैसला इसलिए किया क्योंकि मैं विदेश में रहता हूं और मैं भारत से बहुत स्नेह है। मैं भारत को हमेशा एक महान सहिष्णु आदर्श के रूप में देखता हूं। मैं ये भी चाहता हूं कि भारत इसमें सफल हो। टेलीग्राफ को दिए साक्षात्कार में उन्होंने ये बातें कहीं। उन्होंने समझाते हुए कहा, ‘भारत में युवा बहुत साहसी हैं, कठिन परिस्थितियों में काम करते हुए कुछ करने की कोशिश कर रहे हैं, और जो हम नहीं चाहते हैं वो है कि देश के भीतर विभाजन पैदा करके राष्ट्र-निर्माण के उस मिशन का विचलित होना।’
नोबेल विजेता ने कहा कि मुझे महसूस हुआ कि 20 करोड़ लोगों को ये बताना कि देखो तुम्हारा धर्म अन्य धर्मों के समान नहीं है, ये देश के लिए एक बहुत ही विभाजनकारी संदेश है। साक्षात्कार में अपनी बात रखते हुए सर वेंकटरामन रामकृष्णन ने आगे कहा, ‘हम पाकिस्तान नहीं है। हम धर्मनिरपेक्ष हैं। मुझे ‘हम’ नहीं कहना चाहिए – मुझे ‘भारत’ कहना चाहिए। तो, यह एक आदर्श है – यह कहता है कि हर किसी को अपनी बात रखने का हक है। भारतीय संविधान के बारे में दूसरी बात यह है कि यह वैज्ञानिक स्वभाव में अद्वितीय है। वैज्ञानिक स्वभाव का मतलब है कि आप सूबतों के आधार पर चीजों (जैसे धर्म) को देखते हैं और इसी तरह के आधार पर भेदभाव नहीं करते हैं।
रामकृष्णन ने अपनी निजी राय देते हुए कहा कि कोई भी समझदार कोर्ट इस बिल को शायद असंवैधानिक पाएगी। ये मेरी राय है। हालांकि मैं कानून का विशेषज्ञ नहीं हूं। पूछने पर क्या वैज्ञानिकों और शिक्षाविदों की इसपर खास जिम्मेदारी नहीं बनती। उन्होंने कहा कि उन्होंने जवाब दिया है। मुझे लगता है कि शिक्षाविद ऐसा माहौल चाहते हैं जिसमें हर कोई बिना किसी भेदभाव के अपनी प्रतिभा के आधार पर पहचाना जाता है।