Citizenship (Amendment) Bill 2019 को लेकर देश के उत्तर पूर्वी राज्यों में गुस्सा है। हालांकि, अगर केंद्र सरकार अवैध प्रवासियों की पहचान करने के लिए नैशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजंस को देशव्यापी स्तर पर लागू करती है तो प्रस्तावित नागरिकता विधेयक का पश्चिम बंगाल पर गहरा असर पड़ने की उम्मीद है। इस राज्य में 2021 में चुनाव होने हैं। शायद इसी के मद्देनजर बीजेपी ने राज्य के पांच सांसदों को सोमवार को इस बिल पर पार्टी का पक्ष रखने के लिए लोकसभा में उतारा।
ये सांसद थे, प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष, महिला मोर्चा प्रमुख लॉकेट चटर्जी, दार्जिलिंग के सांसद राजू बिष्ता, शांतनु ठाकुर और और सौमित्र खान। ठाकुर उस मतुआ समुदाय से ताल्लुक रखते हैं जो धार्मिक वजहों से निशाना बनाए जाने के डर से बांग्लादेश से भारत आया था। वहीं, खान आम चुनाव से पहले तृणमूल छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए थे। पार्टी की ओर से बोलने वाले बंगाल से सबसे ज्यादा बीजेपी सदस्य उतारे गए। वहीं, असम से सिर्फ तीन सांसदों को मौका मिला।
बंगाल की बात करें तो यहां 1971 में तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तानसे आए करीब 1 करोड़ लोगों को लेकर यहां की राजनीतिक लड़ाई सालों से चल रही है। पहले कांग्रेस और तृणमूल पूर्ववर्ती वाम सरकारों पर इन लोगों के वोट बैंक के तौर पर इस्तेमाल करने का आरोप लगाती रही हैं। हालात अब बदल गए हैं। अब बीजेपी ऐसे ही आरोप सत्ताधारी तृणमूल पर लगा रही है।
सोमवार को लोकसभा में नागरिकता संशोधन विधेयक पेश करते हुए केंद्रीय गृह मंत्री ने कहा कि वह सभी की चिंताओं को दूर करने की कोशिश करेंगे। उन्होंने प्रदेश के सांसदों से कहा, ‘इस बहस को देख रहे बहुत सारे लोगों को उम्मीद है कि आप उनकी नागरिकता का समर्थन करोगे।’ संयोग की बात है कि 1 अक्टूबर को शाह ने पहली बार कोलकाता के नेताजी इंडोर स्टेडियम में ही इस बात का जिक्र किया कि नागरिकता संशोधन विधेयक एनआरसी में बाहर रह गए गैर मुस्लिमों की रक्षा करेगा।
अमित शाह शायद पार्टी की बंगाल ईकाई में फैले डर को शांत करने की कोशिश कर रहे थे। दरअसल, पार्टी नेता असम से आ रही उन खबरों से परेशान थे जिसके मुताबिक, एनआरसी के आखिरी ड्राफ्ट में मुसलमान से ज्यादा हिंदू बाहर हो चुके हैं। लोकसभा में शाह ने इस बात पर जोर दिया कि नागरिकता संशोधन विधेयक उन लोगों की हिफाजत करेगा, जिन्हें शरणार्थी के तौर पर भारत आने के बाद नौकरियां मिल गईं। उन्होंने कहा था, ‘बंगाल और नॉर्थईस्ट के शरणार्थियों को यह स्पष्ट संदेश मिल जाना चाहिए कि जिस तारीख को आप भारत में आए थे, उसी तारीख से आपको नागरिकता मिलेगी।’
तृणमूल के राज्य सभा चीफ व्हिप सुखेंदु शेखर रॉय ने द इंडियन एक्सप्रेस से कहा कि पूर्वी पाकिस्तान से आए लोगों का मुद्दा काफी वक्त से बना रहा है। उन्होंने कहा, ‘यही समस्या है, बांग्लादेश भाषाई आधार पर बना था। ये बंगाली भाषी लोग धार्मिक उत्पीड़न की वजह से यहां नहीं आए। उन्हें उर्दू भाषियों के के जरिए भाषाई उत्पीड़न होने का डर सता रहा था।’ उधर, पश्चिम बंगाल की सीएम ममत बनर्जी यह कह चुकी हैं कि वह नागरिकता संशोधन विधेयक को राज्य में लागू नहीं होने देंगी। नागरिकता संशोधन विधेयक को लेकर जारी बहस में तृणमूल का यही तर्क है कि कैब के जरिए एनआरसी की खामियों को दूर नहीं नहीं किया जा सकता।
बता दें कि मई में हुए आम चुनावों में बीजेपी ने राज्य में अभूतपूर्व सफलता हासिल की। पार्टी को 42 में से 18 सीटों पर जीत मिली। पार्टी अवैध घुसपैठियों के खिलाफ एक्शन की बात कहती रही है। इसके जरिए मुस्लिमों को निशाना बनाने का आरोप लगाया जाता रहा है। मुसलमान पारंपरिक तौर पर तृणमूल के वोटर माने जाते हैं। हालांकि, नवंबर में बीजेपी को विधानसभा उप चुनावों में तीनों सीटों पर हार का सामना करना पड़ा। इनमें वे सीटें भी शामिल हैं, जहां तृणमूल को कभी जीत नहीं हासिल हुई थी। दोनों ही पार्टियों ने माना कि ये नतीजे शाह की ओर से एनआरसी को राष्ट्रव्यापी स्तर पर लागू किए जाने के ऐलान का असर हैं।
नॉर्थईस्ट के राज्यों के अलावा, सिर्फ पश्चिम बंगाल ऐसा प्रदेश था जहां आम चुनाव के दौरान एनआरसी को लेकर काफी चर्चा हुई। रायगंज में शाह ने घुसपैठियों को ‘दीमक’ बता डाला। मालदा में उन्होंने आश्वासन दिया कि ‘वह बंगाल और पूरे देश की घुसपैठियों से रक्षा करेंगे।’ वहीं, नेताजी इंडोर स्टेडिय में शाह ने कहा था, ‘ममता बनर्जी कह रही हैं कि लाखों हिंदू शरणार्थियों को देश के बाहर खदेड़ दिया जाएगा। मैं यहां सभी शरणार्थी भाइयों को आश्वस्त करने आया हूं। मैं सभी हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध और ईसाई शरणार्थियों को आश्वस्त करता हूं कि आपको भारत छोड़ने के लिए मजबूर नहीं किया जाएगा। एनआरसी से पहले हम नागरिकता संशोधन विधेयक लाएंगे जो इन लोगों को नागरिकता प्रदान करना सुनिश्चित करेगा।’
सोमवार को लोकसभा में बहस के दौरान शाह ने कहा कि एनआरसी को पूरे देश में लागू किया जाएगा। हालांकि, महज एक साल पहले 18 दिसंबर 2018 को तत्कालीन गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने लोकसभा में कहा था कि एनआरसी को असम के अलावा किसी दूसरे राज्य में लागू करने की कोई योजना नहीं है।