प्रदर्शन कर रहे लोगों की भीड़ को कार से कुचलने की कोशिश करने के मामले के आरोपी विधायक की जान लोअर कोर्ट ने बुरी तरह से फंसा दी थी। जमानत के बाद जो शर्तें विधायक पर थोपी गईं उनमें ये भी शामिल था कि मामले की हर तारीख पर विधायक को कोर्ट के सामने पेश होना होगा। लोअर कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला देकर विधायक पर ये शर्त लगाई थी। अलबत्ता हाईकोर्ट से उनको राहत दे दी गई।
ओडिशा की चिलिका विधानसभा सीट से बीजेडी के टिकट पर जीते प्रशांत कुमार जगदेव को इस मामले में मई 2022 में हाईकोर्ट की सिंगल बेंच के जस्टिस ने ये कहकर जमानत देने से इनकार कर दिया था कि किसी दूसरे वाहन की नंबर प्लेट लगे वाहन से भीड़ को कुचलने की कोशिश एक जघन्य अपराध है। उनका कहना था कि ऐसे शख्स को जनप्रतिनिधि रहने का भी हक नहीं है। हाईकोर्ट से बेल न मिलने के बाद विधायक ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। सुप्रीम कोर्ट की डबल बेंच ने उनको राहत देते हुए जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया। लेकिन शीर्ष अदालत ने कई शर्तें भी लगा दीं।
सुप्रीम कोर्ट ने बेल मंजूर करते हुए कहा- ट्रायल कोर्ट भी लगा सकती है शर्त
सुप्रीम कोर्ट की पहली शर्त थी कि विधायक अगले एक साल तक किसी पब्लिक रैली को संबोधित नहीं कर सकेंगे। वो एक साल तक अपने चुनाव क्षेत्र में भी नहीं जा सकेंगे। अगर जाना बहुत जरूरी हो तो उनको जिलाधिकारी की अनुमति लेनी होगी। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में ये भी कहा कि अगर ट्रायल कोर्ट को लगता है कि विधायक पर कोई और शर्त लगाने की भी जरूरत है तो वो उनको पाबंद करने के लिए स्वछंद है।
जूडिशियल मजिस्ट्रेट फर्स्ट क्लास ने विधायक को बेल देते हुए एक और शर्त थोप दी। अपने फैसले में मजिस्ट्रेट ने कहा कि विधायक को इस केस की हर पेशी पर कोर्ट में मौजूद रहना होगा। विधायक ने इस फैसले के खिलाफ सेशन कोर्ट का दरवाजा खटखटाया लेकिन राहत नहीं मिल सकी। उसके बाद वो हाईकोर्ट पहुंचे। उनकी दलील थी कि वो जनप्रतिनिधी हैं। लिहाजा उन्हें कई जगहों पर जाना होता है। ऐसे में वो हर बार तारीख पर कैसे कोर्ट में मौजूद रह सकते हैं। हाईकोर्ट ने मजिस्ट्रेट के फैसले को पलटते हुए कहा कि उनको तारीख पर आना होगा लेकिन हर बार जरूरी नहीं है।