यह क्षेत्र वैश्विक ऊर्जा और वस्तु व्यापार के लिए जोड़ने वाले केंद्र के रूप में काम कर रहा है। इसमें संचार के महत्त्वपूर्ण समुद्री मार्ग और बड़े भीड़-भाड़ वाले बिंदु जैसे मलक्का जलडमरुमध्य (स्ट्रेट) शामिल हैं। इस क्षेत्र में निहित स्वार्थ रखने वाली बड़ी ताकतों की भू-रणनीतिक आकांक्षाओं के लिए हिंद महासागर क्षेत्र महत्त्वपूर्ण बन गया है।
इस क्षेत्र में चीन की बढ़ती मौजूदगी, सामरिक उद्देश्यों के लिए उसकी आर्थिक भागीदारी और भू-राजनीतिक हसरतों ने हिंद महासागर क्षेत्र में कई किरदारों की दिलचस्पी में बढ़ोतरी कर दी है। इस क्षेत्र में चीनी जासूसी पोत दो बार घूमकर जा चुका है। इस क्षेत्र में सामरिक प्रतिद्वंदिता और प्रतिस्पर्धा में बढ़ोतरी हुई है।
अमेरिका, चीन, रूस, फ्रांस और यूरोपीय संघ जैसी ताकतों ने इस क्षेत्र में आर्थिक एवं राजनीतिक संबंधों के जरिए अपनी भागीदारी बढ़ाना शुरू कर दिया है। रणनीतिक रूप से भारत हिंद महासागर के मौजूदा सुरक्षा ताने-बाने में अपनी भागीदारी बढ़ा रहा है। इस क्षेत्र में स्थित छोटे द्वीपीय देशों के साथ भारत रणनीतिक संबंध बढ़ा रहा है। चीन के इरादों को लेकर सतर्कता दिख रही है।
द्वीपीय देशों का हाल
पश्चिमी हिंद महासागर में मौजूद छोटे द्वीपीय देशों – मालदीव, मेडागास्कर, कोमोरोस, मारीशस और सेशेल्स को महाशक्तियों की लड़ाई में खींचा जा रहा है। जब से हिंद-प्रशांत क्षेत्र को लेकर कूटनीतिक कवायद शुरू हुई है, इन द्वीपों की भौगोलिक स्थिति का सामरिक महत्त्व बढ़ा है। ये द्वीप भीड़-भाड़ वाले बिंदुओं तक आसान पहुंच प्रदान करते हैं, संचार के महत्त्वपूर्ण समुद्री मार्गों के नजदीक स्थित हैं और ये इस क्षेत्र में निगरानी कर रही समुद्री ताकतों के लिए संसाधन जमा करने में अड्डे के तौर पर काम कर सकते हैं।
इस समुद्री विस्तार में अपनी मौजूदगी को बढ़ावा देने के लिए बड़ी शक्तियां द्वीपीय देशों के साथ बड़े पैमाने पर भागीदारी कर रही हैं। छोटे द्वीपीय देश संसाधनों, विकास, जलवायु परिवर्तन और सबसे बढ़कर अपना वजूद बचाए रखने के साथ जुड़ी चुनौतियों से मुकाबले में समर्थन और सहायता के लिए अलग-अलग अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपनी दलील पेश कर रहे हैं।
अपने दूर-दराज ठिकाने, आकार, नाजक इकोसिस्टम, कम आबादी और सीमित संसाधनों एवं क्षमताओं की वजह से छोटे द्वीपीय देश कई तरह की चुनौतियों का सामना करते हैं। इन देशों की अर्थव्यवस्थाएं अलग-अलग क्षेत्रों के सहारे नहीं हैं और पर्यटन एवं मत्स्य पालन जैसे कुछ क्षेत्रों पर पूरी तरह निर्भर हैं। जलवायु परिवर्तन इनकी चुनौतियों में बढ़ोतरी करता है और उनकी कमजोर अर्थव्यवस्था पर एक अतिरिक्त बोझ बन जाता है।
भारत और क्वाड के देश
अमेरिका, जापान, आस्ट्रेलिया और भारत – क्वाड में शामिल देश इस क्षेत्र में चीन के बढ़ते असर को लेकर खासे चिंतित हैं। उनकी समुद्री सुरक्षा नीति का प्रमुख केंद्र बिंदु नौपरिवहन से जुड़ी समस्याएं हैं। चीन की समुद्री सुरक्षा नीति में द्वीपों को अहम दर्जा दिया गया है। विवादित दक्षिणी चीन सागर और अलग-अलग क्षेत्रों में द्वीपीय देशों के साथ सहयोग की पहल में चीन ने द्वीप विकास रणनीति अख्तियार कर रखी है। छोटे द्वीपीय देशों ने अपनी असुरक्षा को देखते हुए चीन की तरफ झुकाव दिखाया है।
मेडागास्कर से लेकर कोमोरोस द्वीप, मारीशस से लेकर मालदीव तक चीन ने पैठ बना रखी है। 2018 में जब मालदीव पर चीन का लगभग 1.5 अरब अमेरिकी डालर का कर्ज बकाया था तो उसे आर्थिक संकट टालने के लिए अपने परंपरागत साझेदार भारत की तरफ सहायता के लिए मुड़ना पड़ा था। मेडागास्कर भी चीन की भारी-भरकम मौजूदगी से घिरा हुआ है और उसकी अर्थव्यवस्था को चलाने में चीन शामिल है। वह कर्ज के जाल में फंसने को लेकर चिंतित है। मेडागास्कर में चीन की मौजूदगी उसे अस्थिरता एवं राजनीतिक उथल-पुथल के बड़े जोखिम में डालती है।
हिंद-प्रशांत के समीकरण
अमेरिका कई क्षेत्रों में भारत को लगातार भारी रियायत देता आ रहा है। विश्व शक्तियां मानने लगी हैं कि हिंद महासागर पर दबदबे वाला आर्थिक रूप से समृद्ध हिंदुस्तान, चीन के खिलाफ संतुलनकारी कारक होगा। अमेरिका, हिंद-प्रशांत के केंद्र में है। इसकी तमाम शाखाएं औपचारिक तौर पर उसके मित्र देशों से जुड़ती हैं। इनमें जापान, दक्षिण कोरिया, फिलीपींस, आस्ट्रेलिया और थाईलैंड शामिल हैं। ताइवान के साथ उसका अनिश्चित और अस्पष्ट रिश्ता और सिंगापुर और भारत के साथ सामरिक साझेदारी भी इसी कवायद का हिस्सा हैं।ह
अमेरिका के साथ गठबंधन
अमेरिका की तमाम योजनाओं और दस्तावेजों (मसलन राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति) में भारत को ऊंचा स्थान दिया गया है। जनवरी 2021 के हिंद-प्रशांत दस्तावेज में चीन को संतुलित करने के लिए भारत को अहम देश के तौर पर देखा गया है। हिंद-प्रशांत में सुरक्षा का जाल तैयार करने की प्रक्रिया का भारत निश्चित रूप से एक हिस्सा है। भारत चतुर्भुज संवाद (क्वाड) का संस्थापक सदस्य है।
इस संगठन को चार सदस्य देशों (जापान, भारत, आस्ट्रेलिया और अमेरिका) की लोकतांत्रिक पहचान पर खड़ा किया गया था। भू-राजनीतिक संदर्भ में भारत अनोखे मुकाम पर है। भारत ने हमेशा से अमेरिका के साथ अपने सुरक्षा रिश्तों की लक्ष्मण रेखा साफ कर रखी है।हाल के वर्षों में अमेरिका को इस बात का अहसास हो गया है कि भारत की अहमियत उसके अनोखे दर्जे की बदौलत है।
क्या कहते हैं जानकार
आजाद और मुक्त हिंद प्रशांत के लिए गठजोड़ों, संगठनों और नियम-कायदों का जाल तैयार किए जाने की दरकार है। इन कवायद में अमेरिका के साथ मैत्री संधियों के जरिए जुड़े मुल्कों के साथ-साथ भारत, इंडोनेशिया, वियतनाम समेत अन्य देश शामिल होंगे। इसमें एक और अहम बात ये जोड़ी गई है कि अमेरिका अपने साथियों और भागीदार देशों को एक-दूसरे के साथ रिश्ते मजबूत करने के लिए प्रोत्साहित करेगा।
- भास्वती मुखर्जी, पूर्व राजनयिक
चीन को लेकर दुनिया में जो गठजोड़ बन रहे हैं, उनमें भारत एक नया कारक है। अंतरराष्ट्रीय अपराध, आतंकवाद, सामुद्रिक और वायु सुरक्षा में विस्तार से निपटने की कवायद को लेकर नए तरह के कई गठबंधन आकार ले रहे हैं। अमेरिका ने भी अब हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अपने रुख को स्पष्ट किया है। हिंद महासागरीय क्षेत्र में उदारवादी आर्थिक व्यवस्था को बढ़ावा देते हुए चीन को हितों का अनुदारवादी दायरा तैयार करने से रोकने की कवायद चल रही है।
- नवदीप सिंह सूरी, पूर्व राजनियक