पिछले दिनों शीर्ष न्यायालय ने एक निर्णय में कहा कि अगर बच्चे बुजुर्ग मां-बाप की देखभाल नहीं करते, तो उनके नाम हस्तांतरित की गई संपत्ति उनसे वापस ली जा सकती है। अदालत को यह निर्णय इसलिए देना पड़ा, क्योंकि एक बुजुर्ग महिला ने इस आधार पर बेटे के नाम की गई संपत्ति रद्द करने की मांग की थी कि उसने संपत्ति हासिल करने के बाद उसकी देखभाल करनी बंद कर दी थी। उसकी गुहार पर मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने यह निर्णय दिया था कि माता-पिता की देखभाल न करने पर बच्चों को दी गई संपत्ति वापस नहीं ली जा सकती।
बहरहाल, यह स्वागतयोग्य है कि शीर्ष अदालत ने इस फैसले को पलट कर महिला को राहत दी। लेकिन क्या इससे समाज और विशेष रूप से उन बच्चों को कोई सबक मिलेगा, जो मां-बाप की संपत्ति हासिल करने के बाद भी उनकी देखभाल नहीं करते या फिर उन्हें उनके हाल पर छोड़ देते हैं? इसी कारण पश्चिमी देशों की तरह अपने देश में भी वृद्धाश्रम बढ़ रहे हैं, लेकिन यह समझा जाना चाहिए कि सभी बुजुर्ग आर्थिक रूप से इतने सक्षम नहीं होते कि वृद्धाश्रम में रह सकें।
एकल परिवारों का बढ़ रहा चलन
यह किसी से छिपा नहीं है कि बच्चों की उपेक्षा से त्रस्त और आर्थिक रूप से अक्षम बुजुर्ग दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर हो रहे हैं। चूंकि एकल परिवारों का चलन बढ़ रहा है, इसलिए वृद्धाश्रमों की आवश्यकता बढ़ रही है। बुजुर्गों के स्वास्थ्य और आर्थिक तथा सामाजिक स्थिति पर अध्ययन की रपट के अनुसार देश के हर चार में से तीन बुजुर्ग किसी न किसी गंभीर रोग का शिकार हैं। हर चौथा बुजुर्ग ऐसी कई बीमारियों से और हर पांचवां किसी मानसिक रोग से पीड़ित है। जीवन-प्रत्याशा जो कुछ दशक पहले तक 45 वर्ष थी, वह आज लगभग 70 वर्ष है। यानी बुजुर्ग बढ़ रहे हैं। रपट के मुताबिक, जिन घरों में बुजुर्ग हैं, उनके यहां का प्रति व्यक्ति खर्च भी इसी अस्वस्थता से ज्यादा है।
फिलहाल, देश में हर दस लोगों में एक बुजुर्ग है। हर चौथा वृद्ध अपने रोजमर्रा के काम करने में दिक्कत झेलता है। समुचित और सस्ती स्वास्थ्य सुविधा के अभाव में हर दस में नौ वृद्ध घर में ही अपना इलाज कराते हैं, जबकि हर तीसरा वृद्ध दिल का मरीज है। सवाल है कि आखिर बुजुर्गों की देखभाल से समाज विमुख क्यों हो रहा है? आज मनुष्य का सामाजिक जीवन खतरे में है। वह अपने घर के बड़े-बूढ़ों की समुचित देखभाल तक ठीक से नहीं कर रहा है। वृद्धाश्रमों में भी कोई विशेष इंतजाम नहीं है।
बुजुर्गों को करना पड़ता है अपमान का सामना
सरकार ने आयुष्मान भारत योजना लागू की है, लेकिन इसमें केवल चालीस फीसद लोग शामिल हैं। हर विकासशील अर्थव्यवस्था में सरकारी नीति 60 वर्ष से अधिक आयु के लोगों के लिए मुफ्त स्वास्थ्य बीमा की है। आज एकल परिवार के दौर में बुजुर्गों के लिए सरकार को उनके सम्मानपूर्ण जीवन के लिए नीति, संस्थाएं और सामाजिक चेतना विकसित करनी होगी। वृद्धाश्रमों में कुछ व्यवस्था की कमी को दूर करना होगा। यहां वृद्धों के लिए मनोरंजन सुविधाओं के अभाव के साथ समुचित चिकित्सा व्यवस्था की कमी है। सरकार ने इन समस्याओं को दूर करने का प्रयास किया है। इससे बुजुर्ग स्वाभिमान के साथ जीवन बिता सकेंगे। सवाल है कि जब वरिष्ठ नागरिकों के लिए अनेक सरकारी योजनाएं हैं, तो फिर उनकी हालत चिंताजनक क्यों है? गौरतलब है कि बुजुर्गों को अपमान का सामना करना पड़ता है, उनको तिरस्कार की नजर से देखा जाता है। साथ ही उनको वित्तीय परेशानी के अलावा मानसिक और शारीरिक उत्पीड़न का भी सामना करना पड़ता है। अक्सर समाज उनसे भेदभाव करता है। अस्पतालों, बस अड्डों, सार्वजनिक वाहनों तथा बाजार में बुजुर्गों के साथ दुर्व्यवहार के मामले सामने आते हैं।
रपट के अनुसार, सबसे ज्यादा अवसादग्रस्त बुजुर्ग, मध्यप्रदेश में 17 फीसद, उत्तर प्रदेश में 14 फीसद, दिल्ली में 11 फीसद और बिहार एवं गोवा में दस फीसद हैं। किसी भी समाज को तब तक सभ्य, विकसित और संवेदनशील नहीं कह सकते, जब तक उसके असहाय और बीमार बुजुर्गों की मुफ्त देखभाल करने वाली व्यवस्था न हो। दुनिया में अधिकांश बेहतर अर्थव्यवस्था वाले देशों में बुजुर्गों के स्वास्थ्य के लिए सरकार की कल्याणकारी नीति है। वैसे भी भारत में स्वास्थ्य पर जीडीपी का नाममात्र का ही खर्च किया जा रहा है। इस वक्त यह दुनिया का सबसे युवा देश है।
2050 तक आज का युवा भारत तब ‘बूढ़ा’ हो जाएगा
अमेरिका के जनसंख्या संदर्भ ब्यूरो के एक अध्ययन के मुताबिक वर्ष 2050 तक आज का युवा भारत तब ‘बूढ़ा’ हो जाएगा। ऐसा अनुमान है कि भारत में अभी छह फीसद आबादी साठ साल या उससे अधिक की है, लेकिन 2050 तक बुजुर्गों की यह संख्या बढ़ कर बीस फीसद तक होने का अनुमान है। उस समय देश में पैंसठ साल से अधिक उम्र के लोगों की संख्या तीन गुना बढ़ जाएगी। संयुक्त राष्ट्र की जनसंख्या कोष से जुड़ी ‘इंडिया एजिंग रपट’ 2023 के अनुसार भारत में 2022 में 60 वर्ष से ऊपर की जनसंख्या 10.5 फीसद या 14.9 करोड़ थी। इसके वर्ष 2050 में 20.8 फीसद या 34.7 करोड़ हो जाने का अनुमान है। इसे देखते हुए हर पांच लोगों में एक वृद्ध हो जाएगा। इसका प्रभाव स्वास्थ्य, समाज और अर्थव्यवस्था पर पड़ना तय है।
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वृद्धों की आबादी बढ़ने का सबसे बड़ा कारण रोगों से लड़ने के तरीकों में बढ़ोतरी का होना है। इससे जीवन प्रत्याशा बढ़ रही है। भारत समेत कई देशों में प्रजनन दर घट रही है। इससे भी वृद्ध-जनसंख्या अधिक हो रही है। भारत में वृद्ध पुरुषों की अपेक्षा वृद्ध महिलाएं अधिक हैं। दूसरी ओर, कार्यबल में महिलाओं का फीसद कम है। इन स्थितियों में वृद्ध महिलाओं की आर्थिक और सामाजिक सुरक्षा एक चुनौती बनी हुई है। सवाल है कि क्या इस देश में सभ्यता और मानवता कम होती जा रही है? क्या वरिष्ठ जनों की सामाजिक सुरक्षा तिरोहित हो गई है?
बुजुर्गों की देखभाल की जिम्मेदारी परिवार और समाज की
बुजुर्गों के लिए चलाई गई वय वंदन योजना, अनुदान सहायता योंजना, राष्ट्रीय वृद्ध पेंशन योजना, राष्ट्रीय वयोश्री योजना, स्वावलंबन योजना और अटल पेंशन योजना जैसी अनेक प्रकार की योजनाओं के माध्यम से सरकार बुजुर्गों को सहायता प्रदान करने का प्रयास कर रही, लेकिन सभी योजनाएं एकमुश्त राशि निवेश करने की मांग करती है, लेकिन बुजुर्गों की आर्थिक हालात इतनी सही नहीं होती कि उनको इन तमाम योजनाओं में निवेश कर लाभ दिला सके। वैसे तो बुजुर्गों की देखभाल की जिम्मेदारी परिवार और समाज की है। जब परिवार ही देखभाल से मुकरता जा रहा है, तो सरकार से क्या आशा रखेंगे?
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हमें समझना होगा कि बुजुर्ग हमारे धरोहर हैं और उनकी देखभाल सभी का कर्तव्य है। इसके लिए समाज को आगे आना होगा। केवल सरकारी प्रयास कारगर साबित नहीं होंगे। बुजुर्गों की सामाजिक सुरक्षा संकट में है, जिसका एक कारण योजनाओं का जमीनी स्तर पर सही से प्रचलन न हो पाना भी है। बुजुर्गों के लिए अस्पताल में अलग कतार का प्रबंध किया जाता है। कुछ राज्यों के अस्पतालों में वरिष्ठ जनों के लिए विशेष क्लीनिक की व्यवस्था है, लेकिन यह कुछ राज्यों में ही है। इसका दायरा समस्त राज्यों में बढ़ाने की जरूरत है, क्योंकि वरिष्ठ नागरिकों की स्थिति सभी राज्यों में दयनीय है।