हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट ने इनवैलिड मैरिज से पैदा हे बच्चों के अधिकारों को लेकर बड़ा फैसला सुनाया है। उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया है कि अमान्य शादी से पैदा हुए बच्चों को पंचायत रिकॉर्ड में उनके जन्म का रजिस्ट्रेशन करने से इनकार नहीं किया जा सकता है। हाई कोर्ट के इस फैसले से उनके अधिकारों को और अधिक मान्यता मिलने का मार्ग प्रशस्त हो गया है।

लाइव लॉ की खबर के मुताबिक, जस्टिस ज्योत्सना रेवल दुआ की सिंगल बेंच 12, 9 और 5 साल की उम्र के तीन नाबालिग बच्चों द्वारा अपनी मां के माध्यम से दायर याचिका पर कार्रवाई कर रही थी जो चाहते थे कि उनका नाम पंचायत रिकॉर्ड में जोड़ा जाए। रिकॉर्ड में बर्थ रजिस्टर और फैमिली रजिस्टर के अलावा गांव की गवार्निंग बॉडी द्वारा बनाए गए अन्य दस्तावेज शामिल हैं।

अपने फ़ैसले में अदालत ने कहा, “माता-पिता के बीच के रिश्ते को भले ही क़ानून द्वारा मान्यता न दी गई हो लेकिन ऐसे रिश्ते में बच्चे के जन्म को माता-पिता के रिश्ते से स्वतंत्र रूप से देखा जाना चाहिए। ऐसे रिश्ते में पैदा हुआ बच्चा निर्दोष होता है और उसे वे सभी अधिकार मिलते हैं जो वैध विवाह में पैदा हुए अन्य बच्चों को मिलते हैं।”

विवाह का अमान्य हो जाना बच्चों के अधिकारों को प्रभावित नहीं करता

मामले की अध्यक्षता कर रही जस्टिस ज्योत्सना दुआ ने बच्चों के अंतर्निहित अधिकारों को कानून के तहत स्वीकार करने पर जोर दिया और टिप्पणी की, “यह फैक्ट है कि वे जीवित प्राणी हैं और उन्हें कानून की नजरों में स्वीकार करने की जरूरत है।” न्यायमूर्ति दुआ ने स्पष्ट किया कि हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 16 कानूनी रूप से अमान्य विवाह से पैदा हुए बच्चों की वैधता की रक्षा करती है। विवाह का अमान्य हो जाना ऐसे में पैदा हुए बच्चों की कानूनी मान्यता और अधिकारों को प्रभावित नहीं करता है।

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याचिकाकर्ताओं ने क्यों किया हाई कोर्ट का रुख ?

इस मामले में, बच्चों के माता-पिता ने 2011 में शादी की थी जबकि पिता अभी भी अपनी पहली पत्नी से कानूनी रूप से विवाहित थे। उनके पिता ने दूसरी शादी इसलिए की थी क्योंकि उनकी पहली पत्नी की सेहत ठीक नहीं थी लेकिन उन्होंने कहा कि ऐसा करने के लिए उनकी पहली पत्नी की सहमति थी। हालांकि, याचिकाकर्ताओं की मुख्य शिकायत यह थी कि बच्चों के नाम पंचायत रिकॉर्ड में शामिल करने के बार-बार प्रयास सफल नहीं हुए।

अदालत में हिमाचल प्रदेश सरकार ने तर्क दिया कि विशेष विवाह अधिनियम, 1954 की धारा 4(A) और हिमाचल प्रदेश पंचायती राज सामान्य नियम 1997 के नियम 21 के अनुसार ऐसा नहीं किया जा सकता। धारा 4(A) में स्पष्ट किया गया है कि विवाह के समय स्त्री या पुरुष किसी का भी कोई जीवित जीवनसाथी नहीं होना चाहिए जो स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत विवाह संपन्न होने की शर्त है। वहीं, नियम 21 परिवार रजिस्टर और जन्म, मृत्यु और विवाह के रजिस्ट्रेशन से संबंधित है।