उत्तर प्रदेश अकेला ऐसा राज्य नहीं है, जहां मुख्यमंत्री और मंत्री का इनकम टैक्स सरकारी खजाने से भरा जाता है। इसके अलावा और भी राज्य ऐसे हैं जहां लंबे समय से सीएम और मंत्रियों का इनकम टैक्स पब्लिक के पैसे से भरा जाता रहा है। ‘द क्विंट’ के मुताबिक यूपी को छोड़कर ऐसे अन्य राज्यों की संख्या पांच है, जहां यूपी जैसी सुविधाएं सीएम और मंत्रियों को इस मामले में हासिल है। उत्तर प्रदेश में साल 1981 से यानी चार दशक से सीएम और मंत्रियों का आयकर सरकारी खजाने से भरा जा रहा है।
यह उस एक्ट के बाद संभव हो सका था जिसे पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने बतौर सीएम रहते यूपी में लागू किया था। उत्तर प्रदेश मंत्री वेतन, भत्ते एवं विविध कानून 1981 के तहत अब तक 19 मुख्यमंत्रियों और लगभग 1000 मंत्रियों का इनकम टैक्स सरकारी खजाने से भरा जा चुका है।
उत्तराखंड: 1981 से यूपी में यह कानून लागू है, इसलिए स्वाभाविक तौर पर उत्तराखंड में भी यह नियम लागू हुआ। हालांकि, राज्य गठन के बाद 2010 में उत्तराखंड ने यूपी के नियम को खारिज करते हुए अपना नया कानून बनाया। उत्तराखंड में बने नए कानून के मुताबिक राज्य के मुख्यमंत्री, मंत्री, राज्यमंत्री और उप मंत्रियों का आयकर का भार सरकार वहन कर रही है।
पंजाब: यहां आजादी के समय से ही यह व्यवस्था लागू है। ईस्ट पंजाब मिनिस्टर्स सैलरीज एक्ट 1947 को बाद में पंजाब सरकार ने 1956 में संशोधित कर दिया। इसके तहत लाभुकों का दायरा सीएम और मंत्रियों से बढ़ाकर मुख्य संसदीय सचिव और संसदीय सचिवों तक कर दिया गया। वीपी सिंह द्वारा 1981 में यूपी में एक्ट लाने से पांच साल पहले पंजाब ने दूसरी बार एक्ट में संशोधन किया और सीएम, मंत्रियों, राज्य मंत्रियों, उप मंत्रियों, संसदीय सचिवों की सैलरी और इनकम टैक्स का भार भी सरकारी खजाने पर डालने का प्रावधान इसी एक्ट के तहत जोड़ दिया।
हरियाणा: इस राज्य में 1970 से यह व्यवस्था लागू है। हरियाणा सैलरीज एंड अलाउंसेस ऑफ मिनिस्टर्स एक्ट, 1970 के सेक्शन 6 में यह प्रावधान किया गया है कि राज्य के मंत्रियों के वेत्तन एवं भत्ते का भार राज्य सरकार वहन करेगी। इसी में मंत्रियों के आयकर का भी भार राज्य सरकार द्वारा वहन करने का उल्लेख है।
हिमाचल प्रदेश: बीजेपी शासित हिमाचल प्रदेश में साल 2000 में सैलरीज एंड अलाउंसेस ऑफ मिनिस्टर्स (हिमाचल प्रदेश) एक्ट लागू हुआ है। एक्ट के सेक्शन 12 में यह प्रावधान किया गया है कि राज्य के मंत्रियों का वेतन एवं भत्ता राज्य सरकार द्वारा वहन किया जाएगा। यह आय कर योग्य नहीं होगी। राज्य ने 1971 के पुराने एक्ट के उस प्रावधान को हटा दिया, जिसमें उप मंत्रियों की सैलरी और भत्ते का विवरण था।
जम्मू-कश्मीर: सीएम और मंत्रियों के वेतन एवं भत्ते से जुड़ा कानून जम्मू-कश्मीर में 1956 में बना। उसके अगले साल 1957 में उस एक्ट में उप मंत्रियों को भी शामिल किया गया। 1981 में दोनों कानून की धारा 3 में यह प्रावधान किया गया कि इन लोगों के इनकम टैक्स का भार भी राज्य सरकार द्वारा वहन किया जाएगा।
अब 2019 में केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने जब जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधेयक पारित कराया तो उसकी पांचवी अनुसूची में यह प्रावधान किया गया है कि पूर्ववर्ती दोनों कानून यथावत रहेंगे। यानी पहले की तरह आगे भी सीएम और मंत्रियों का इनकम टैक्स भी सरकारी खजाने से भरा जाता रहेगा।
मीडिया में मामला उजागर होने के बाद यूपी की योगी आदित्यनाथ ने इस कानून को बदलने के निर्देश दिए और ऐलान किया कि राज्य के मुख्यमंत्री और सभी मंत्री खुद अपने खर्चे से अपना आयकर भरेंगे।

