Subhash Baghel Burial Case: सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ़ के बस्तर के सुभाष बघेल को दफनाने को लेकर चल रहे विवाद के मामले में कहा है कि इसे आपसी सहमति से सुलझाया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एक पादरी का शव पिछले 15 दिन से मुर्दाघर में पड़ा है, उसका सम्मानपूर्वक अंतिम संस्कार किया जाए। अदालत ने सुभाष बघेल के बेटे रमेश बघेल की ओर से दायर याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया।

बताना होगा कि सुभाष बघेल का शव मुर्दाघर में रखा हुआ है। गांव में कुछ लोगों ने उनके शव को दफनाने का इसलिए विरोध किया है क्योंकि सुभाष बघेल ने ईसाई धर्म अपना लिया था। सुभाष बघेल मूल रूप से हिंदू आदिवासी समुदाय से थे।

जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की बेंच इस मामले में सुनवाई कर रही है। रमेश बघेल ने छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें उनके पिता को उनके गांव के कब्रिस्तान में ईसाई समुदाय के लिए निर्धारित जगह में दफनाने की अनुमति देने की याचिका को खारिज कर दिया गया था।

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सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा, “शव 15 दिनों से मुर्दाघर में है। कृपया हल ढूंढें। व्यक्ति का सम्मानजनक अंतिम संस्कार होना चाहिए। मामला आपसी सहमति से सुलझाया जाए।”

छत्तीसगढ़ सरकार की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि सुभाष बघेल के शव को ईसाई आदिवासियों के लिए जो निर्धारित इलाका है, वहां दफनाया जाना चाहिए। यह इलाका बघेल के परिवार के गांव छिंदावाड़ा से लगभग 20-30 किलोमीटर दूर है।

अदालत ने पूछा- विरोध क्यों हो रहा है?

याचिकाकर्ता रमेश बघेल के वकील कोलिन गोंजाल्विस ने राज्य सरकार के इस दावे का विरोध किया कि ईसाई आदिवासी समुदाय के लोग गांव के बाहर शव को दफनाते हैं। गोंजाल्विस ने गांव के रेवेन्यू रिकॉर्ड के मैप अदालत में प्रस्तुत किए और तर्क दिया कि कई मामलों में ईसाई समुदाय के सदस्यों को गांव में ही दफनाया गया है। बेंच ने इस पर हैरानी जताई कि कई सालों तक हिंदू और ईसाई समुदाय के लोग एक साथ शवों को दफनाते आए हैं लेकिन अब अचानक इस मामले में विरोध क्यों हो रहा है।

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जब अदालत ने सुझाव दिया कि पादरी सुभाष बघेल को उनकी प्राइवेट जमीन पर दफनाया जा सकता है तो तुषार मेहता ने इसका विरोध किया और कहा कि शव को केवल निर्धारित इलाके में ही दफनाया जाना चाहिए और यह गांव से 20-30 किलोमीटर दूर है। शीर्ष अदालत ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया।

ग्रामीणों ने किया जोरदार विरोध

याचिकाकर्ता रमेश बघेल के अनुसार, छिंदावाड़ा गांव में एक कब्रिस्तान है जिसे ग्राम पंचायत ने दफनाने और दाह संस्कार के लिए आवंटित किया था। इस कब्रिस्तान में अलग-अलग समुदायों के लिए अलग-अलग क्षेत्र निर्धारित हैं। ईसाई समुदाय के लिए निर्धारित क्षेत्र में ही याचिकाकर्ता की चाची और दादा को दफनाया गया था। याचिका में कहा गया कि याचिकाकर्ता अपने पिता का अंतिम संस्कार इसी जगह में करना चाहते हैं। लेकिन कुछ ग्रामीणों ने इसका जोरदार विरोध किया और हिंसा पर उतर आए।

याचिकाकर्ता के मुताबिक, उनके परिवार ने पुलिस को इसकी सूचना दी। इसके बाद पुलिसकर्मी गांव पहुंचे और उन्होंने भी परिवार पर शव को गांव से बाहर दफनाने के लिए दबाव डाला।

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हम दुखी हैं…

अदालत ने कुछ दिन पहले भी इस मामले में सुनवाई के दौरान सख्त टिप्पणी की थी। अदालत ने कहा था, “हमें यह कहते हुए दुख हो रहा है कि एक व्यक्ति को अपने पिता को दफनाने के लिए सुप्रीम कोर्ट आना पड़ रहा है। हाई कोर्ट, पंचायत भी इस मसले को हल नहीं कर पाए। हाई कोर्ट का कहना है कि इससे कानून-व्यवस्था की समस्या पैदा होगी। हम इससे दुखी हैं।”

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