छत्तीसगढ़ में बीजेपी ने अपने नए मुख्यमंत्री का ऐलान कर दिया है। पार्टी ने विष्णुदेव साय को सीएम घोषित किया है, उनके साथ अरुण साव और विजय शर्मा को डिप्टी सीएम बनाया गया है। अब बीजेपी ने छत्तीसगढ़ में तो आदिवासी दांव चला है, लेकिन इसका असली असर 410 किलोमीटर दूर ओडिशा में दिखने वाला है। लंबे समय से बीजेपी ओडिशा में अपने पैर जमाने की कोशिश कर रही है, उसने कुछ हद तक इसमें सफलता भी हासिल की है।

ओडिशा में कैसा रहा बीजेपी का प्रदर्शन?

ये नहीं भूलना चाहिए कि इस समय ओडिशा में कांग्रेस को पछाड़कर बीजेपी प्रमुख विपक्षी पार्टी बन चुकी है। यानी कि ओडिशा में मुकाबला नवीन पटनायक की बीजेडी से बीजेपी का रहने वाला है। अब इस बढ़ती ताकत का असर सीटों पर भी देखने को मिल रहा है। पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने ओडिशा से 8 सीटें निकाल ली थीं, इसी तरह विधानसभा में भी पार्टी 23 सीटें जीतने में कामयाब हो गई थी। लेकिन बीजेपी इतने से संतुष्ट नहीं है, उसे ओडिशा में भी कमल खिलाना है, उसे यहां भी सरकार बनानी है।

आदिवासी समुदाय का दिल जीतने वाले दो कदम

अब ओडिशा में सरकार बनाने के लिए आदिवासी वोटरों का दिल जीतना जरूरी है, उस वोटबैंक को साधे बिना इस राज्य में सियासत नहीं की जा सकती। इसी कड़ी में बीजेपी ने अब तक दो बड़े कदम उठा लिए हैं। सबसे पहले ओडिशा से ही आने वालीं आदिवासी महिला द्रौपदी मुर्मू को देश का राष्ट्रपति बनाया गया, अब छत्तीसगढ़ में भी आदिवासी सीएम देकर एक बड़ा मैसेज देने का काम हुआ है। बीजेपी वैसे भी हमेशा से ही दूर का सोचती है, उसकी हर रणनीति दूर्गामी परिणामों को ध्यान में रखकर बनाई जाती है।

कितने निर्णायक आदिवासी वोट?

ओडिशा की सियासत के हिसाब से देखा जाए तो बीजेपी को हर कीमत पर आदिवासी इलाकों में अपनी सेंधमारी करनी होगी। ओडिशा में 24 आरक्षित सीटे हैं , वहां भी पिछले चुनाव में बीजेडी ने क्लीन स्वीप करते हुए 20 सीटें अपने नाम की थीं। असल में ओडिशा की जैसी डेमोग्राफी है, यहां पर 83 फीसदी आबादी गांवों में रहती है, वहीं शहरी आबादी सिर्फ 17 प्रतिशत के करीब है। वर्तमान में ग्रामीण इलाकों में बीजेडी की मजबूत पकड़ है, लगातार चल रहे शासन का भी यहीं कारण है।

बीजेपी कैसे निकलेगी बीजेडी से आगे?

अब अगर बीजेपी को ओडिशा में कुछ चमत्कार करना है तो उसे इन ग्रामीण इलाकों में शानदार प्रदर्शन करना होगा। वोटबैंक के लिहाज से बात हो तो पार्टी को 55 सीटों पर बीजेडी पर अपनी बढ़त बनानी पड़ेगी, ऐसा इसलिए क्योंकि 15 विधानसभा की सीटें ऐसी हैं जहां पर आदिवासी समुदाय की आबादी 55 प्रतिशत से भी ज्यादा चल रही है। वहीं 35 सीटें ऐसी हैं जहां पर उनकी आबादी 30 फीसदी के करीब है। यानी कि इन सभी सीटों पर हार जीत का निर्णय ये आदिवासी वोटर ही तय करने वाले हैं।

नवीन पटनायक का जोरदार काउंटर

बीजेपी ये उम्मीद लगाए बैठी है विष्णुदेव साय के जरिए वे कुछ हद तक ओडिशा के आदिवासी वोटरों को अपने पाले में कर पाएंगे। लेकिन पार्टी के लिए ये राह उतनी आसान भी नहीं रहने वाली है। इसका सबसे बड़ा कारण ये है कि नवीन पटनायक इस डिपार्टमेंट में बीजेपी से दो कदम आगे चल रहे हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि द्रौपदी मुर्मू का भी कभी भी उनकी तरफ से विरोध नहीं किया गया था, यानी कि पार्टी अकेले उनके राष्ट्रपति बनने का क्रेडिट नहीं ले पाएगी। इसी तरह राज्य में आदिवासी समुदाय के लिए पटनायक सरकार ने कई बड़े कदम उठा रखे हैं।

क्यों आदिवासियों के बीच लोकप्रिय बीजेडी?

उदाहरण के लिए बीजेडी सरकार ने ओडिशा में पिछड़े वर्ग के लिए बजट में 4,651 करोड़ रुपये आवंटित कर रखे हैं। इसी तरह राज्य सरकार की मुख्यमंत्री जनजाति जीविका मिशन योजना भी खासा लोकप्रिय है और इसके तहत गरीबों को रहने के लिए घर दिए जा रहे हैं। इसी वजह से बीजेपी के लिए नवीन पटनायक की योजनाओं का काउंटर ढूंढना कुछ मुश्किल रहने वाला है। सिर्फ चेहरों के दम पर सत्ता परिवर्तन करना चुनौती साबित हो सकता है। इसी वजह से मोदी सरकार ने भी बड़ी रणनीति अपनाते हुए इस साल के बजट में 15000 करोड़ आदिवासी समुदाय के लिए आवंटित कर रखे हैं। यानी कि बीजेपी भी आदिवासी वोटर के पीछे पड़ी है, पटनायक को भी उनका समर्थन चाहिए, इसका मतलब मुकाबला कड़ा रहने वाला है।