अनिल त्रिवेदी
हालात अपने आप नहीं बदलते हैं। हालात बदलने के लिए खयालात में बदलाव बहुत जरूरी है। दुनिया के सारे बदलाव अपने आप नहीं आते हैं। जैसे-जैसे खयालात बदलते गए, हालात भी बदल गए। आज जिस तेजी से हालात बदलते जा रहे हैं, उस तेजी से लोगों के खयालात नहीं बदल रहे हैं। पिछले सौ वर्षों में कितनी तेजी से हालात बदले हैं, यह हमने देखा है।
बैलगाड़ी से लेकर आवाज से भी तेज गति के विमान हमारे जीवन में आए और देश-दुनिया के हालात बदल गए। आज बैलगाड़ी भी चल रही है और आवाज से तेज गति से चलने वाले विमान भी देश-दुनिया में चल रहे हैं। आज की दुनिया में दकियानूसी दिमाग भी हैं और नित नया सोचने-विचारने वाले दिमाग भी मौजूद हैं। जीवंत दिमाग में जड़तापूर्ण विचार न के बराबर पैदा होते हैं, पर जड़तापूर्ण दिमाग में मुश्किल से ही नए विचार का जन्म हो पाता है। ऐसा दिमाग हमेशा खुद और दूसरे के विचारों को जकड़ कर रखना चाहता है।
करीब आठ अरब आबादी की दुनिया में पुरानी और नई बातों में निरंतर मत-मतांतरों की कई हलचलें हो रही हैं। मनुष्य के दिमाग में आने वाला हर विचार अपने आप में नया होकर जरूरी नहीं कि समूचे मनुष्य समाज के सोच और व्यवहार को बदल डाले, वह महज खयाली पुलाव भी हो सकता है। मानव समाज और मन मस्तिष्क में बदलाव आने में लंबा समय लगता है। हमारा रहन-सहन, सोच-विचार, घर परिवार नए-नए खयाल आने से निरंतर बदलते रहे हैं। हमारी राजनीति, धर्म, अर्थव्यवस्था और बाजार का स्वरूप भी निरंतर बदलता जा रहा है। विचार का प्रवाह हमेशा एक जैसा नहीं होता है। हर समय विचार, सोच और व्यवहार में बदलाव आता रहता है।
इसीलिए जीवन एकरस न होकर निरंतर सरस बना रहता है। जब दो मनुष्य एक जैसे खयालात वाले होते हैं तो उनमें वैचारिक संबंध विकसित हो जाते हैं। विपरीत विचार रखने वाले मनुष्य और समूह में भी संबंध होते हैं, पर मत भिन्नता का भाव सदैव बना रहता है। कुछ मनुष्यों में अपनी स्वतंत्र विचारों की पहचान होती है। ऐसे मनुष्य विचारधाराओं के हिमायती नहीं होते हैं।
उनका दर्शन विचार आधारित है, पर विचार विशेष या विचारधाराओं से वे नहीं बंधे होते। यों देखा जाए तो दुनिया में जितने मनुष्य हैं, उतने भिन्न विचार मौजूद हैं। एक जैसे दो मनुष्य संभव नहीं है, वैसे ही एक जैसे विचार वाले दो मनुष्य भी संभव नहीं है। शायद इसीलिए स्वतंत्र विचार से ज्यादा संगठित विचार को लेकर मनुष्य समाज में सहमति से ज्यादा असहमति जताए जाने का मानव समाज में एक लंबा सिलसिला बना हुआ है।
संगठित विचार मनुष्य समाज को भेड़-बकरी की तरह से हांकने में ज्यादा भरोसा करता है। इसीलिए स्वतंत्र विचार से कोई सहमत होता है या असहमत होता है। पर संगठित विचार से सहमत मनुष्य को असहमत होने का कोई विकल्प ही मौजूद नहीं है। संगठित समूह के नेता किसी को संगठन विरोधी निरूपित कर संगठन से निष्कासित कर अपने आप को स्वतंत्र विचार विरोधी सिद्ध करते रहते हैं।
स्वतंत्र विचार में निष्कासित किए जाने का कोई विकल्प ही नहीं है। वह हवा और प्रकाश की तरह स्वतंत्र और सर्वव्यापी है। हमारे स्वतंत्र विचार से क्रांति और भ्रांति दोनों संभव है। फिर भी संगठित विचार जैसा निष्कासन संभव नहीं है। संगठित विचार किसी को प्रताड़ित और भयभीत कर सकता है। फिर भी मनुष्य की स्वतंत्र विचार प्रक्रिया को भय, प्रलोभन, संगठित समूह या राज्य, समाज और धार्मिक समूह रोक नहीं सकता।
स्वतंत्र और नित नए विचारों का अंतहीन सिलसिला प्रकृति का अपने कृतित्व मनुष्य को दिया गया कालजयी उपहार है, जिसे कोई मनुष्य या मनुष्य निर्मित कोई संगठन, समूह या संस्थान कभी रोक नहीं सकता। जब तक दुनिया में मनुष्य का अस्तित्व है, तब तक नए विचार और विचार प्रवाह को मनुष्यकृत समूह रोक नहीं सकता। जैसे हवा और प्रकाश को नहीं बांधा जा सकता, वैसे ही मनुष्य समाज में विचार प्रवाह को नहीं रोका जा सकता।
इस दुनिया में प्रागैतिहासिक काल से लेकर आज तक मनुष्य की कहानी खयालात बदलने से हालात बदलने की अंतहीन कहानी है। खयालात से हालात बदलते ही रहेंगे, यह हमारी दुनिया या जिंदगी का सत्य है। हमारे खयालात से ही पुरातनकाल से आधुनिक काल तक हालात में बुनियादी बदलाव आया है।
खयालात और हालात की अंतहीन जुगलबंदी के बाद भी अगर किसी मनुष्य, सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक और आर्थिक समूह को यह लगता है कि उनके विचार ही अंतिम विचार हैं और मनुष्य को नए विचार को आत्मसात करने से बचना चाहिए तो यह एक विचार और व्यवहार विरोधी खयाल है, जिसे वे मनुष्य समाज के समक्ष व्यक्त तो कर सकते हैं, मगर मनुष्य समाज पर भय, लोभ-लालच, संगठन और सत्ता के बल पर लाद नहीं सकते। प्रकृति हमें सारे बदलावों में जीने का अवसर और शिक्षण देती है। साथ ही अपने हालात को बदलने के लिए नए खयालातों के साथ निरंतर जीवंत दिमाग से जीते रहने का आजीवन अवसर भी उपलब्ध कराती है।
