Chandrayaan-2: चंद्रयान-2 मिशन के लैंडर विक्रम की सॉफ्ट लैंडिंग के अंतिम क्षणों में इसरो का उससे संपर्क अचानक टूट गया था। हाल ही में इस पर इकट्ठा डेटा बताता है कि आकाश की दिशा में बढ़ने के दौरान जब लैंडर धीमी गति से आगे बढ़ रहा था, तब इंजन्स ने विक्रम को चांद की सतह की ओर उसे नीचे मोड़ दिया होगा।
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने चंद्रयान-2 की ‘हॉर्ड लैंडिंग’ के बाद भी हार नहीं मानी है। इसरो ऑर्बिटर की मदद से लगातार विक्रम को खोजने की मदद कर रहा है।
बता दें चंद्रमा की सतह पर शनिवार तड़के लैंडर की ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ के दौरान आखिरी पलों में उसका इसरो के जमीनी स्टेशनों से संपर्क टूट गया था। उस वक्त विक्रम पृथ्वी के प्राकृतिक उपग्रह (चंद्रमा) से महज 2.1 किमी ऊपर था। ‘लैंडर’ विक्रम के अंदर ‘रोवर’ प्रज्ञान भी है।
Read | How ISRO is trying to reconnect with Chandrayaan-2’s Vikram Lander
फ्रांसीसी भौतिक विज्ञानी सर्जे हरोशे ने कहा, ‘‘जब मैंने अपनी रिसर्च की तो मुझे इसके परिणाम मिलने तक किसी की भी इसमें रुचि नहीं थी...और मुझे लगता है कि इस तरह की समस्याएं, इस तरह के हादसे तथा इस तरह की अप्रत्याशित घटनाएं अनुसंधान को धार देने का ही काम करती हैं।’’ उल्लेखनीय है कि ‘चंद्रयान-2’ के लैंडर ‘विक्रम’ का गत सात सितंबर को चांद की सतह पर ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ के प्रयास के अंतिम क्षणों में इसरो के जमीनी स्टेशन से संपर्क टूट गया था। उन्होंने कहा कि अनुसंधान के दौरान इस तरह की चीजें आम होती हैं तथा भारत को अब आगे की ओर देखना चाहिए।
छत्तीसगढ़ के संस्कृति मंत्री अमरजीत भगत ने चंद्रयान 2 मिशन को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर विवादित टिप्पणी करते हुए कहा कि वह अब तक दूसरे के कामों की वाहवाही लूटते थे, लेकिन पहली बार चंद्रयान 2 का प्रक्षेपण करने गए और वह भी असफल हो गया। इस टिप्पणी के बाद मंत्री सोशल मीडिया पर घिर गए और उन्हें इसे लेकर स्पष्टीकरण देना पड़ा। राज्य में मुख्य विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी ने भी मंत्री की टिप्पणी पर आपत्ति जताई है।
भगत से राज्य के कोरिया जिले में सोमवार को आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान संवाददाताओं ने केंद्र में मोदी सरकार के 100 दिन पूरे होने को लेकर सवाल किया, जिसके जवाब में मंत्री ने कहा कि अभी तक मोदी केवल दूसरे के किए (पूर्ववर्ती सरकार के कार्यकाल में किए गए) काम में फीता काटते थे, उद्घाटन करते थे और वाहवाही लूटते थे। वह पहली बार चंद्रयान 2 का प्रक्षेपण करने गए और वह भी असफल हो गया।
‘चंद्रयान-2’ के लैंडर ‘विक्रम’ से पुन: संपर्क करने और इसके भीतर बंद रोवर ‘प्रज्ञान’ को बाहर निकालकर चांद की सतह पर चलाने की संभावनाएं हर गुजरते दिन के साथ क्षीण होती जा रही हैं। लैंडर को चांद की सतह पर ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ के लिए डिजाइन किया गया था। इसके भीतर बंद रोवर का जीवनकाल एक चंद्र दिवस यानी कि धरती के 14 दिन के बराबर है। सात सितंबर की घटना के बाद से लगभग एक सप्ताह निकल चुका है तथा अब इसरो के पास मात्र एक सप्ताह शेष बचा है।
इसरो ने कहा था कि वह 14 दिन तक लैंडर से संपर्क साधने की कोशिश करता रहेगा। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के वैज्ञानिकों की तमाम कोशिशों के बावजूद लैंडर से अब तक संपर्क स्थापित नहीं हो पाया है। हालांकि, ‘चंद्रयान-2’ के आॅर्बिटर ने ‘हार्ड लैंडिंग’ के कारण टेढ़े हुए लैंडर का पता लगा लिया था और इसकी ‘थर्मल इमेज’ भेजी थी।
नोबेल पुरस्कार विजेता फ्रांसीसी भौतिक विज्ञानी सर्जे हरोशे ने शुक्रवार को कहा कि समस्याएं, हादसे और अप्रत्याशित घटनाएं अनुसंधान को धार देने का काम करती हैं तथा भारत को चांद के दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र में ऐतिहासिक ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ के प्रयास के दौरान आई खामी के बाद आगे की ओर देखना चाहिए।
वर्ष 2012 में भौतिकी के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार जीतने वाले 75 वर्षीय हरोशे ''नोबेल प्राइज सीरीज इंडिया 2019'' के लिए भारत में हैं और यह देश में इस तरह की तीसरी श्रृंखला है। फ्रांसीसी वैज्ञानिक ने कहा कि ‘चंद्रयान-2’ मिशन एक बड़ी वैज्ञानिक परियोजना है और इस तरह की परियोजनाओं में आम तौर पर सरकार का काफी योगदान होता है।
चंद्रयान-2 का ऑर्बिटर फिलहाल चांद की कक्षा में 100 किलोमीटर की दूरी पर सफलतापूर्वक चक्कर लगा रहा है। 22 जुलाई को लॉन्च के समय ऑर्बिटर का कुल वजन 2379 था। इसमें ईंधन का वजन भी शामिल है। बिना ईंधन के ऑर्बिटर का वजन सिर्फ 682 किलो है।
गौहर रजा ने समाचार एजेंसी एएनआई से कहा, "स्कैनिंग एक बार में रुकेगी नहीं। हम उसे बार-बार स्कैन करेंगे। उसकी रफ्तार (उतरने के दौरान) पता करने की कोशिश करेंगे। ये डेटा पूरी मानव जाति इस्तेमाल करेगी। यह ऐसा खजाना है, जो हमें आगे कदम बढ़ाने में जरूरत पड़ेगी। आम जनता को यह समझना चाहिए कि साइंस में कोई चीज असफल नहीं होगी। हम जब किसी चीज (लक्ष्य) में सफल नहीं हो पाते हैं, तब हमारी उसमें देर हो जाती है। हो सकता है कि दो या तीन साल बाद हो। सिर्फ यही है कि तारीख में देरी हो जाए। वैज्ञानिकों के पास हताश होकर बैठने का विकल्प नहीं होती, क्योंकि देश को, मानवता को और विज्ञान को इसकी जरूरत है। यह पूरा होगा ही।"
अंतरिक्ष एजेंसी ने गत रविवार को कहा था कि ऑर्बिटर ने चंद्र सतह पर पलटे ‘विक्रम’ का पता लगा लिया है और उससे संपर्क के सभी प्रयास किए जा रहे हैं।
नासा का ऑर्बिटर लैंडर विक्रम की साइट के ऊपर से गुजरेगा। इसके साथ ही वह इसकी तस्वीरें भी भेजेगा। ऐसा मंलगवार (17 सितंबर 2019) को किया जाएगा। स्पेसफ्लाइट नाउ ने नासा के ऑर्बिटन के प्रॉजेक्ट साइंटिस्ट नोआह पेत्रो के हवाले से यह जानकारी सामने आई है।
दुनिया की सबसे बड़ी स्पेस एजेंसी नासा भी चांद की सतह पर तिरछे पड़े लैंडर विक्रम से संपर्क की कोशिश में जूट गई है। एजेंसी ने लैंडर को 'हलो मेसेज' भेजा है। भारतीय स्पेस एजेंसी इसरो भी विक्रम से संपर्क की हरसंभव कोशिश कर रही है।
यान का ऑर्बिटर एकदम ठीक है और शान के साथ चंद्रमा की परिक्रमा कर रहा है। इसका कार्यकाल एक साल निर्धारित था, लेकिन अब इसरो ने कहा है कि पर्याप्त मात्रा में ईंधन होने के चलते ऑर्बिटर लगभग सात साल तक काम कर सकता है।
अंतरिक्ष में मौजूद किसी वस्तु से संपर्क इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तरंगों द्वारा साधा जाता है। अंतरिक्ष संचार के लिए एस बैंड (माइक्रोवेव) और एल बैंड (रेडियो वेव) आवृत्ति वाली तरंगों का इस्तेमाल होता है।
परिक्रमा के दौरान चांद अपनी धुरी पर सिर्फ 1.54 डिग्री तक तिरछा होता है जबकि पृथ्वी 23.44 डिग्री तक। इस कारण चांद पर पृथ्वी की तरह मौसम नहीं बदलते और चांद के ध्रुवों पर ऐसे कई इलाके हैं जहां कभी सूरज की रोशनी या किरणें पहुंच ही नहीं पातीं।
पूर्व इसरो प्रमुख ने कहा, ‘‘एक सिंथेटिक अपर्चर रडार की जगह (इस बार) हमारे पास दो फ्रीक्वेंसी रडार हैं। इस तरह इसमें अनेक नयी क्षमताएं हैं। वास्तव में यह बेहतर परिणाम हासिल करने में हमारी मदद करेगा।’’ उन्होंने कहा, ‘‘हम शानदार परिणाम मिलने की उम्मीद कर रहे हैं क्योंकि हम अपने माइक्रोवेव ड्युअल फ्रीक्वेंसी सेंसरों का इस्तेमाल कर स्थायी रूप से अंधकार में छाए रहने वाले (चांद के) क्षेत्रों का मानचित्रीकरण करने में सफल होंगे।’’
इसरो के पूर्व प्रमुख ए एस किरण कुमार ने कहा ‘‘अंतिम ‘लैंडिंग गतिविधि को छोड़कर अन्य सभी योजनाबद्ध गतिविधियां अक्षुण्ण हैं।’’ उन्होंने कहा कि इस बार का ऑर्बिटर महत्वपूर्ण उपकरणों से लैस है जो एक दशक पहले भेजे गए ‘चंद्रयान-1’ की तुलना में अधिक शानदार परिणाम देने पर केंद्रित हैं। कुमार ने कहा कि पूर्व में नासा जेपीएल से ‘चंद्रयान-1’ द्वारा ले जाए गए दो उपकरणों की तुलना में इस बार के उपकरण तीन माइक्रोन से लेकर पांच माइक्रोन तक की स्पेक्ट्रम रेंज तथा रडारों, दोनों के मामलों में ‘‘शानदार प्रदर्शन’’ करने की क्षमता से लैस हैं।
इसरो के पूर्व प्रमुख ए एस किरण कुमार ने कहा कि लैंडर ‘विक्रम’ और इसके भीतर मौजूद रोवर ‘प्रज्ञान’ से संपर्क टूट जाने के बावजूद ‘चंद्रयान-2’ का ऑर्बिटर ‘‘बेहतर परिणाम’’ प्राप्त करने में सक्षम है।
टेरेन मैपिंग कैमरा का इस्तेमाल चंद्रयान-1 में भी किया गया था। यह चांद की सतह का हाई रिजोल्यूशन तस्वीर ले सकता है। यह चांद की कक्षा से 100 किमी की दूरी से चांद की सतह पर 5 मीटर से लेकर 20 किमी तक के क्षेत्रफल की तस्वीर लेने में सक्षम है।
अभियान से जुड़े इसरो के सीनियर अधिकारी बोले, ‘‘आर्बिटर कैमरा की तस्वीरों से यह प्रर्दिशत होता है कि लैंडर विक्रम चंद्रमा की सतह पर साबुत अवस्था में है, वह टूट कर नहीं बिखरा है। यह झुकी हुई अवस्था में है। यह अपने चार पैरों पर खड़ा नहीं है, जैसा कि यह सामान्यत: रहता है।’’ अधिकारी ने बताया, ‘‘यह उलटा नहीं है। यह एक ओर झुका हुआ है।’’