भारत में कोरोनावायरस और लॉकडाउन के चलते इस साल अर्थव्यवस्था काफी बुरे दौर से गुजर रही है। इसके चलते देशभर में बेरोजगारी की दर में भी बढ़ोतरी दर्ज की गई। आलम यह है कि बिहार में अब जब नई सरकार का गठन होगा, तो शासन के सामने नए रोजगार पैदा करना सबसे बड़ी चुनौती होगी। हालांकि, नौकरियों की समस्या सिर्फ बिहार या आर्थिक रूप से पिछड़े राज्यों में ही नहीं है। देश के सबसे साक्षर राज्य केरल में भी यह समस्या लगातार बढ़ती जा रही है।
ताजा आंकड़ों के मुताबिक, 15 से 29 साल के लोगों में बेरोजगारी के मामले में भारत का औसत 17.3 फीसदी है। इस मामले में राज्यों की बात करें तो केरल पहले नंबर पर है। यहां बेरोजगारी दर 35.2 फीसदी तक पहुंच चुकी है। दूसरा नंबर बिहार का है, जहां यह दर 30.9 फीसदी है। दक्षिण भारत के दो राज्य- तेलंगाना (27.4 फीसदी) और तमिलनाडु (27.4%) भी इस लिस्ट का हिस्सा हैं। वहीं, असम पांचवें नंबर पर हैं। यहां बेरोजगारी दर 23.5 फीसदी पर है।
हालांकि, बिहार के लिए भविष्य के लिए बड़ी समस्या यह है कि केरल के मुकाबले उसकी 14 साल से कम की जनसंख्या ज्यादा है। जहां केरल में 14 साल से कम उम्र की आबादी 22.9 फीसदी है, वहीं बिहार में इस आबादी की संख्या 34.6 फीसदी है। यानी बिहार की तकरीबन एक-तिहाई जनसंख्या 14 साल से कम उम्र की है। दूसरी तरफ 15-59 साल की जनसंख्या में भी केरल 65.1 प्रतिशत दर के साथ आगे है। यानी राज्य की ज्यादातर जनसंख्या आने वाले समय में रोजगार की उम्र से बाहर हो जाएगी।
तेजस्वी ने 10 लाख, भाजपा ने किया था 19 लाख नौकरी देने का वादा: बिहार चुनाव में प्रचार अभियान के दौरान जहां महागठबंधन की ओर से मुख्यमंत्री पद के प्रत्याशी तेजस्वी यादव ने राज्य में युवाओं के लिए 10 लाख नौकरी देने का वादा किया था। वहीं, भाजपा ने भी अपने घोषणापत्र में 19 लाख नई नौकरी पैदा करने की बात कही थी।
नेशनल सैंपल सर्वे ऑर्गनाइजेशन (NSSO) के सर्वे के मुताबिक, बिहार में 2018-19 में कुल बेरोजगारी दर 10.2 फीसदी थी, यानी 2017-18 के 7.2 फीसदी के मुकाबले, सीधा 3 फीसदी ज्यादा। जबकि इस दौरान देश में बेरोजगारी दर 6.1 फीसदी से घटकर 5.8 फीसदी पर पहुंच गई थी। मार्च में लॉकडाउन लगने के बाद देशभर से प्रवासी मजदूर बिहार लौटे हैं। ऐसे में माना जा रहा है कि नीतीश सरकार के लिए आने वाले समय में बढ़ती जरूरतमंद आबादी के लिए रोजगार पैदा करना बड़ी चुनौती हो सकती है।