सेना के कार्यों में सिपाहियों की मदद के लिए बहादुर कुत्ते रखने की परंपरा बहुत पुरानी है। ये कुत्ते बेहद प्रशिक्षित और फुर्तीबाज होते हैं। इनका काम केवल दुश्मनों के विद्रोह के बारे में एलर्ट करने और विस्फोटकों का पता लगाने का ही नहीं है, बल्कि वे इससे बढ़कर सेना के साथ कदम-कदम पर अपना कर्तव्य निभाते हैं। सशस्त्र सैन्य बल में पुराने समय से ही कुत्तों को रखा जाता रहा है।
भारतीय तिब्बत सीमा पुलिस आईटीबीपी (ITBP) इन कुत्तों को सेना में शामिल करने के बाद इनका नामकरण करती है। इसके लिए हरियाणा के पंचकूला में हाल ही में बकायदा एक समारोह का आयोजन कर उसमें इन कुत्तों को रैंक और लेवल के साथ एक नाम दिया गया। नाम इनकी खूबी, योग्यता और समय के अनुकूल होता है।
एक सिपाही और कुत्ते के बीच का संबंध उतना ही पुराना है, जितना कि युद्ध क्षेत्र। सबसे पहले रोमनों ने प्रशिक्षित कुत्तों का इस्तेमाल किया था। अपने मालिक को खुश रखना कुत्तों की स्वाभाविक प्रकृति है। यह स्वभाव इनको प्रशिक्षित करने को सहज बनाता है। दूसरे सैनिकों की तरह कुत्तों को भी कठिन प्रशिक्षण के दौर से गुजरना पड़ता है। इसमें कुछ ही इसको पूरा कर पाते हैं, बाकी अस्वीकार कर दिए जाते हैं।
सेना के कुत्ते कोई साधारण पालतू जानवर नहीं हैं क्योंकि उनका इतिहास बहादुर कहानियों से भरा है। रिमाउंट वेटरनरी कोर (RVC) को मिले शौर्य चक्र और करीब 150 प्रशंसा पदक उनकी काबिलियत को साबित करती है। सेना के पास लगभग 1,000 प्रशिक्षित कुत्ते हैं।

