क्रिकेटर युवराज सिंह को जातिवादी टिप्पणी मामले में आंशिक राहत देते हुए पंजाब-हरियाणा उच्च न्यायालय ने कहा कि उन्होंने आईपीसी की धारा 153A (धर्म, जाति, जन्म स्थान, निवास के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच शत्रुता को बढ़ावा देना) के तहत कोई अपराध नहीं किया है। हालांकि क्रिकेटर युवराज सिंह पर अनुसूचित जाति-जनजाति अधिनियम के तहत मुकदमा चलता रहेगा, कोर्ट ने केवल इसमें 153A की धारा को हटाया है।
न्यायमूर्ति अमोल रतन सिंह की पीठ ने युवराज सिंह की उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें उनके खिलाफ दर्ज प्राथमिकी रद्द करने की मांग की गई थी। अदालत ने कहा कि युवराज के खिलाफ अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के प्रावधानों के तहत जांच कानून के अनुसार जारी रहेगी।
शिकायतकर्ता रजत कलसन ने आरोप लगाया था कि युवराज सिंह ने इंस्टाग्राम लाइव के दौरान एक अन्य क्रिकेटर का जिक्र करते हुए अनुसूचित जाति को लेकर आपत्तिजनक टिप्पणी की थी। इसके बाद युवराज सिंह ने उच्च न्यायालय का रुख करते हुए प्राथमिकी रद्द करने की मांग की थी। युवराज सिंह ने तर्क दिया था कि वह शिकायतकर्ता के हाथों घोर उत्पीड़न का शिकार हो रहे हैं।
अदालत में युवराज सिंह ने अपने वकील के माध्यम से दलील दी थी कि उन्होंने भंगी शब्द का प्रयोग भांग पीने वालों के लिए किया था। लेकिन अदालत ने युवराज सिंह की इस दलील को खारिज कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि “याचिकाकर्ता का वास्तव में किसी का अपमान करने का इरादा नहीं था। फिर भी उसने एक विशिष्ट अनुसूचित जाति से संबंधित एक शब्द का इस्तेमाल अपमानजनक अर्थों में किया है इसलिए प्राथमिकी को रद्द नहीं किया जा सकता है।”
बता दें कि इस मामले में पंजाब हरियाणा उच्च न्यायालय ने युवराज सिंह को पहले ही अग्रिम जमानत दे रखी है और युवराज सिंह हांसी पुलिस की जांच में भी शामिल हो चुके हैं। हांसी के दलित अधिकार कार्यकर्ता रजत कलसन ने युवराज के खिलाफ थाने में मामला दर्ज कराया था, जिसे खारिज कराने के लिए युवराज सिंह उच्च न्यायालय पहुंचे थे। युवराज सिंह पर आईपीसी की धारा 153A और 153B के तहत मामला दर्ज किया गया था, जिसे अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (रोकथाम और अत्याचार) अधिनियम की धारा 3 (1) (U) के साथ जोड़ा गया था।