बिहार में होने जा रहे जातिगत जनगणना के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में केंद्र ने जो हलफनामा दाखिल किया था, उसमें एक बड़ा संशोधन हो गया है। असल में पहले जो हलफनामा दिया गया था, उसमें साफ लिखा गया कि केंद्र सरकार के पसा ही जनगणना करवाने का अधिकार है। लेकिन अब संशोधित हलफनामे से उस लाइन को ही हटा दिया गया है। अब इसे चूक माना जाए या फिर डैमेज कंट्रोल का प्रयास इसी पर भी बहस छिड़ गई है।
हलफनामे में क्या बदला और क्यों?
जानकारी के लिए बता दें कि केंद्र सरकार ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में अपना हलफनामा दायर किया था। उस हलफनामे में जोर देकर कहा गया कि बिहार सरकार के पास जनगणना करने का कोई अधिकार नहीं है। लेकिन अब उसी हलफनामे में संशोधन कर उस लाइन को हटा दिया गया है। सरकार ये तो जरूर कह रही है कि सेंसस एक्ट,1948 के तहत केंद्र को ही जनगणना करने का अधिकार है, लेकिन ‘जनगणना जैसी कोई अन्य प्रक्रिया’ वाली लाइ को गायब कर दिया गया है।
बिहार सरकार का क्या तर्क?
वैसे बिहार सरकार का कहना है कि उनकी तरफ से कोई जनगणना नहीं करवाई जा रही है, वे तो जातिगत सर्वे करवा रहे हैं। वहीं निजता के हनन का जो मुद्दा उठाया जा रहा है, उसे लेकर भी सरकार ने अपना स्टैंड साफ किया है। जोर देकर कहा गया है कि निजी जानकारी को सार्वजनिक नहीं किया जाएगा और सर्वे के नतीजों को भी अब पब्लिक डोमेन में नहीं लाया जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा था?
वैसे सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार को जातिगत सर्वेक्षण की अनुमति देने के पटना हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं से दो टूक कहा था कि वह इस प्रक्रिया पर तब तक रोक नहीं लगाएगा जबतक कि वो इसके खिलाफ ठोस आधार नहीं देते। बेंच ने कहा- दो चीजें हैं। एक आंकड़ों का संग्रह है। ये समाप्त हो गया है। दूसरा सर्वेक्षण के दौरान एकत्र आंकड़ों का विश्लेषण है। ये परेशान करने वाला हो सकता है। लेकिन हम तब तक किसी भी चीज पर रोक नहीं लगाने वाले, जब तक ठोस आधार नहीं दिया जाएगा।