उत्तर प्रदेश के दुर्दांत अपराधी रहे अतीक अहमद के साथ उसके भाई की हत्या के मामले में सुप्रीम कोर्ट में दायर PIL में कानपुर के गैंगस्टर विकास दुबे के मामले का जिक्र भी किया गया है। एडवोकेट का कहना है कि यूपी की पुलिस बेलगाम हो चुकी है। ये एक अच्छे लोकतंत्र के लिए घातक है। लोगों के मन में पुलिस का खौफ बन गया है।
याचिका में कहा गया है कि लोकतंत्र में पुलिस को इतना बेलगाम कैसे होने दिया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने विकास दुबे एनकाउंटर मामले में अपने रिटायर जस्टिस बीएस चौहान की अगुवाई में तीन सदस्यीय जांच आयोग का गठन किया गया था। आयोग ने पुलिस पर सीधे तौर पर सवाल खड़े किए हैं। सुप्रीम कोर्ट को देखना चाहिए कि पुलिस बेलगाम होकर कैसे काम कर रही है। याचिका में योगी राज में 2017 के बाद से हुए 183 पुलिस एनकाउंटरों को संदिग्ध बताकर कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट पता लगाए कि पुलिस कैसे कानून अपने हाथ में ले रही है।
गाड़ी पलटाने के बाद मरी गई विकास दुबे को गोली
विशाल तिवारी ने अपनी याचिका में कहा कि विकास दुबे को भी पुलिस ने फर्जी एनकाउंटर में मारा था। पहले गाड़ी पलटा दी गई और फिर उसे दौड़ाकर गोली मार दी गई। पुलिस इस तरह से बर्ताव कर रही है जैसे फाइनल अथॉरिटी वो ही है। जबकि किसी भी अपराधी को अरेस्ट करने के बाद में कोर्ट में पेश करना होता है। गवाहों और साक्ष्यों पर गौर करने के बाद अदालत उसे दोषी करार देती है।
एडवोकेट ने याचिका में कहा है कि पुलिस की कस्टडी में जिस तरह से अतीक और उसके भाई को मारा गया वो किसी गहरी साजिश की तरफ इशारा कर रहा है। पुलिस को दोनों भाईयों की सुरक्षा करनी थी। उन्हें सजा देने का हक केवल अदालत को है। लेकिन जिस तरह से दोनों को मारा गया उसमें साफ है कि पुलिस की कहीं न कहीं मिलीभगत थी। पुलिस की वजह से ही दोनों की हत्या कर दी गई। ये सरासर गलत है।
शनिवार रात अतीक अशरफ को मारी गई थी गोली
ध्यान रहे कि शनिवार रात को अतीक और उसके भाई अशरफ की तब हत्या कर दी गई थी जब पुलिस सुरक्षा में दोनों को प्रयागराज के एक अस्पताल में मेडिकल कराने के लिए ले जाया जा रहा था। तीन हमलावर अचानक से आते हैं और दोनों भाईयों पर ताबड़तोड़ गोली दाग देते हैं। हमले में दोनों की मौके पर ही मौत हो जाती है। पुलिस के जिन जवानों पर दोनों की सुरक्षा का जिम्मा था वो मौके से ही भाग खड़े होते हैं।