भारतीय वायुसेना में शामिल होने के दो सप्ताह बाद ही राफेल लड़ाकू विमान कंपनी दसॉल्ट एविएशन एक बार फिर चर्चा में है। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) ने फ्रांसीसी कंपनी की तरफ से रक्षा एवं अनुसंधान रिसर्च संगठन को उच्च तकनीक हस्तांतरित नहीं करने के मुद्दे पर आपत्ति व्यक्त की है।

इंडिया टुडे की खबर के अनुसार सीएजी ने फ्रांसीसी मैन्युफैक्चरर दसॉल्ट एविशन और एमबीडीए की खिंचाई की है। सीएजी का कहना है कि दसॉल्ट एविशन और एमबीडीए ने 60 हजार करोड़ रुपये के सौदे में शामिल ऑफसेट दायित्वों को पूरा नहीं है। इसकी वजह है कि कंपनी ने रक्षा एवं अनुसंधान संगठन को स्वदेशी कावेरी जेट इंजन बनाने के लिए उच्च तकनीक का हस्तांतरण नहीं किया। इस संबंध में 2015 में प्रतिबद्धता व्यक्त की गई थी।

बुधवार को संसद में डिफेंस ऑफसेट से जुड़ी रिपोर्ट में सीएजी की तरफ से बताया गया कि दसॉल्ट और एमबीडीए विदेशी वेंडर के रूप में सप्लाई कॉन्ट्रेक्ट के लिए प्रतिबद्ध थे लेकिन इन लोगों ने अपने दायित्वों को पूरा नहीं किया। बयान में कहा गया कि कई मामलों में यह देखा गया है कि विदेशी वेंडर मुख्य सप्लाई ठेका हासिल करने के लिए विभिन्न ऑफसेट कमिटमेंट कर देते हैं लेकिन बाद वे इन प्रतिबद्धताओं को पूरा नहीं करते हैं।

सीएजी ने कहा, “उदाहरण के लिए, 36 मध्यम मल्टी-रोल कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (एमएमआरसीए) से संबंधित ऑफसेट अनुबंध में, विक्रेताओं दसॉल्ट एविएशन और एमबीडीए ने शुरू में (सितंबर 2015) अपने 30% ऑफसेट दायित्व का निर्वहन करने का प्रस्ताव दिया था। डीआरडीओ को उच्च तकनीक की पेशकश की थी।

डीआरडीओ हल्के लड़ाकू विमानों के लिए इंजन (कावेरी) के स्वदेशी विकास के लिए तकनीकी सहायता प्राप्त करना चाहता था। आज तक, विक्रेता ने इस तकनीक के हस्तांतरण की पुष्टि नहीं की है। ” राफेल सौदा भारत की सबसे बड़ी रक्षा खरीद है। इसमें एक क्लॉज शामिल है जिसमें कहा गया है कि सौदे की कुल राशि का 50 प्रतिशत ऑफसेट दायित्वों के रूप में भारत में वापस निवेश किया जाना है।