Assam NRC: यदि आपके पास चार साल की मतदाता सूची, माता-पिता का एनआरसी क्लियरेंस, भूमि राजस्व भुगतान रसीदें, गांव के प्रधान द्वारा जारी निवास प्रमाण पत्र और शादी प्रमाणपत्र, राशन कार्ड, पैन कार्ड और बैंक पासबुक है, फिर भी आपके भारतीय होने की गारंटी नहीं है। इन तमाम दस्तावेजों सहित 15 दस्तावेजों को गुवाहाटी हाईकोर्ट ने भारतीय नागरिकता का प्रमाण मानने के इनकार कर दिया।

दरअसल, असम के बक्सा जिले के तमुलपुर के गुवाहारी गांव की रहने वाली जाबीदा बेगम उर्फ जाबीदा खातून का नाम एनआरसी लिस्ट से बाहर हो गया था। मई 2019 में फॉरेन ट्रिब्यूनल द्वारा उन्हें विदेशी घोषित कर दिया गया था। जाबीदा ने खुद को भारतीय साबित करने के लिए ये दस्तावेज गुवाहाटी हाईकोर्ट के समक्ष पेश किए थे लेकिन हाईकोर्ट के फैसले के बाद वह “अपने कथित माता-पिता और भाई-बहन के साथ संबंध साबित करने में विफल रही।” असम में भारतीय नागरिक माने जाने के लिए, उन्हें यह साबित करना होगा कि वह या उनके पूर्वज 1971 से पहले असम में रह रहे हैं।

एनआरसी की लिस्ट में शामिल होने के लिए किसी व्यक्ति विशेष को वैसे दस्तावेज जमा करने थे, जिससे यह साबित हो कि उनके पूर्वज 1971 से पहले यहां रह रहे थे। दस्तावेजों के दो सेट (सूची ए और सूची बी) देने थे। सूची ए में यह साबित करने वाले दस्तावेज थे कि व्यक्ति या उनके पूर्वज 1971 (1951 के एनआरसी, 1971 से पहले के मतदाता सूचियों आदि) से पहले असम में रहते थे। 1971 के बाद पैदा हुए लोग 1971 से पहले रह रहे परिजनों से खुद का संबंध दिखाने के लिए लिस्ट बी दस्तावेज (पैन कार्ड, जन्म प्रमाण पत्र आदि) जमा कर सकते थे।

जाबीदा बेगम की वकील अहमद अली ने कहा कि उसकी उम्र लगभग 50 साल है और वह अनपढ़ और काफी गरीब हैं। अली ने कहा, “हमने कई दस्तावेज दिए लेकिन अदालत संतुष्ट नहीं हुई क्योंकि उसे लगा कि ये दस्तावेज उसका उसके माता-पिता के साथ संबंध साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं थे।”

सैयद बुरहानुर रहमान भी हाईकोर्ट में वकील हैं। वे कहते हैं, “बेगम के खिलाफ जो हुआ है, वह यह है कि वह अपने माता-पिता के साथ अपने रिश्ते को जोड़ने में सक्षम नहीं थी। 1997 की मतदाता सूची में उसके अपने पति का नाम लिखवाया था, अपने माता-पिता का नहीं। इसके अलावा, उसे ‘डी’ या संदिग्ध मतदाता के रूप में चिह्नित किया गया था। तकनीकी रूप से, अदालत के आदेश में कोई दोष नहीं है। जबकि गांव पंचायत दस्तावेज एक वैध प्रमाण पत्र है और इसका इस्तेमाल विवाहित महिला के लिए का संबंध साबित करने के लिए किया जा सकता है। इस विषय पर आगे की जांच होनी चाहिए।”

रहमान ने कहा कि जाबीदा हाईकोर्ट में रिव्यू पिटिशन दायर कर सकती हैं और सुप्रीम कोर्ट जा सकती हैं। उन्होंने कहा, “वह सवाल कर सकती है कि गांव के प्रधान द्वारा जारी दस्तावेज को क्यों खारिज कर दिया गया। इसके अलावा, एविडेंस एक्ट की धारा 50 के तहत, उसके भाई की गवाही यह साबित करने के लिए पर्याप्त है कि वह उसकी बहन है।”

जज ने अपने फैसले में कहा, “इस मामले में, याचिकाकर्ता ने दावा किया कि वह जाबीद अली की बेटी है। वह अपने कथित माता-पिता के साथ खुद का संबंध स्थापित करने वाला कोई भी दस्तावेज दाखिल नहीं कर सकी। एक गांव प्रधान द्वारा जारी प्रमाण पत्र कभी भी किसी व्यक्ति की नागरिकता का प्रमाण नहीं हो सकता है। इस तरह के प्रमाण पत्र का उपयोग केवल एक विवाहित महिला द्वारा यह साबित करने के लिए किया जा सकता है कि शादी के बाद वह अपने वैवाहिक गांव में स्थानांतरित हो गई। (रूपजान बेगम बनाम भारत संघ, (2018 का मामला)”

आदेश में कहा गया “यह कोर्ट मोहम्मद बाबुल इस्लाम बनाम भारत संघ [WP(C)/3547/2016] के मामले में पहले ही मान चुका है कि पैन कार्ड और बैंक दस्तावेज नागरिकता के प्रमाणपत्र नहीं हैं। याचिकाकर्ता के कथित भाई मोहम्मद समसुल अली ट्रिब्यूनल के सामने सबूत पेश किए। समसुल ने दावा किया कि उनकी उम्र 33 साल है और उनका नाम 2015 के वोटर लिस्ट में है। याचिकाकर्ता अपने कथित भाई के संबंध स्थापित करने के लिए कोई दस्तावेज प्रस्तुत नहीं कर सकी।”

कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी कहा, “भूमि राजस्व भुगतान दस्तावेज किसी भी व्यक्ति की नागरिकता को साबित नहीं करते हैं। इसलिए, हम पाते हैं कि ट्रिब्यूनल ने इससे पहले रखे गए सबूतों को सही ढंग से देखा और ट्रिब्यूनल के निर्णय में हमें कोई गलती नहीं मिली है। इस स्थिति में हम इस बात को दोहराएंगे कि याचिकाकर्ता अपने कथित माता-पिता और भाई के साथ संबंध को साबित करने में विफल रही। इसलिए हम इस याचिका को खारिज करते हैं।”