देश में नागरिकता संशोधन कानून लागू कर दिया गया है। लोकसभा चुनाव से ठीक पहले केंद्र सरकार ने ये बड़ा कदम उठाने का काम किया है। अब कांग्रेस की तरफ से खुलकर इसका विरोध तो नहीं किया गया है, लेकिन पार्टी के कई नेता इसे बीजेपी के ध्रुवीकरण का हथियार बता रहे हैं। तर्क दिया जा रहा है कि चुनाव से ठीक पहले ध्रुवीकरण करने के लिए बीजेपी ने ये दांव चला है।
अब कांग्रेस इसका विरोध कर सकती है, लोकतंत्र में इसका पूरा अधिकार है। लेकिन देश की सबसे पुरानी पार्टी के सामने एक बड़ा धर्मसंकट भी है। वो धर्मसंकट राजस्थान के ही पूर्व सीएम अशोक गहलोत की वजह से खड़ा होता है। ये बात 20 साल पुरानी है, तब भी केंद्र में बीजेपी की सरकार थी और राजस्थान में कांग्रेस की। अशोक गहलोत तब राज्य के मुख्यमंत्री थे और उनकी तरफ से तत्कालीन डिप्टी पीएम एलके अडवाणी को एक पत्र लिखा गया था।
उस पत्र में अशोक गहलोत ने कहा था कि पाकिस्तान से आए हिंदुओं को कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। उन्हें वीजा मिलने में, नागरिकता मिलने में कई दिक्कतें हो रही हैं। मांग की गई थी कि राज्य के SDM को ताकत दी जाए जिससे लोकल स्तर पर ही जल्दी दिक्कतों का निपटारा हो सके। उन्होंने यहां तक कहा था कि जैललमेर, बारमर और जोधपुर में आए शरणार्थियों को जल्दी नागरिकता मिले। उस डिमांड के बाद ही केंद्र ने तब गुजरात और राजस्थान के कुल जिलों में LTV यानी कि Long Term Visas देने की शुरुआत की। लोकल प्रशासन को ही उसकी जिम्मेदारी तब सौंपी गई थी।
अब वो तो एक छोटे स्तर पर शुरू हुआ एक प्रोजेक्ट था, लेकिन मोदी सरकार ने ऐसे सभी प्रवासियों को नागरिकता देने के लिए CAA लागू किया है। नागरिकता संशोधन कानून कहता है कि अगर इन तीन देशों से आए हिंदू, सिख, या बौध धर्म के लोगों की एंट्री 31 दिसंबर 2014 से पहले भारत में हुई है, उन्हें नागरिकता दी जा सकती है। यहां भी एक बड़ी राहत ये है कि इन लोगों को नागरिकता पाने के लिए 11 सालों तक भारत में रहने की जरूरत नहीं है। अगर पांच साल हो चुके हैं तो नागरिकता दे दी जाएगी।