अमिताभ स.
इंसान का मन बड़ा बावरा होता है। जब स्कूल में पढ़ता है, तो स्कूल से भागता फिरता है। जब तक पढ़ने की ललक न लगे, पढ़ाई से बचने की कोशिश करता है। जबकि स्कूल की कक्षाओं से पास करके निकल जाने के बाद ताउम्र स्कूल जाने को बेकरार रहता है। स्कूली जीवन को सबसे बढ़िया मानता रहता है। जिंदगी स्कूल की हो या कालेज की, हर मुकाम पर पाठ पढ़ाती जाती है, कई अविस्मरणीय पल देती है।
इसलिए स्कूल- कालेज के बाहर भी पढ़ाई थमती नहीं, ताउम्र चलती रहती है। कहा भी जाता है कि जो इंसान सीखना छोड़ देता है, वह बूढ़ा है, बेशक वह आठ साल का हो या अस्सी साल का। और जो इंसान सीखना जारी रखता है, वह हमेशा जवान है। उम्र के हर पड़ाव पर सीखा जा सकता है। सीखने की कोई उम्र नहीं होती। सीखना कभी मुश्किल नहीं होता। किसी भी मोर्चे पर सीखते जाने और इससे खुद में सुधार करते रहने के लिए एक जिंदगी भी कम है। यही सीखने का चिर-भाव है।
सीखना हमेशा मुमकिन है और सीखने वाला कतई फेल नहीं होता। दुनिया की ढाई सौ सफल शख्सियतों पर एक शोध से तथ्य उभर कर सामने आया कि इनमें से अठासी फीसद हर दिन कम से कम एक-आध घंटा सीखने में लगाते हैं। और साठ फीसद तो साल में एक दफा तकनीकी, व्यापार, दर्शन या अध्यात्म का पाठ्यक्रम तक करते हैं। इससे जाहिर होता है कि सफल शख्स हर वक्त खुद को अद्यतन करने में जुटे रहते हैं।
अगर कोई समझने लगे कि वह सब कुछ जानता है, तो वह सीखना बंद कर देता है। जबकि आगे बढ़ने की इच्छा रखने वाले सीखना बंद नहीं करते, नया समझने और करने से पीछे नहीं हटते। सीखने और सिखाने से केवल अपना ही नहीं, समूचे समाज का कल्याण होता है। अनुभव की पाठशाला में जो पाठ सीखे जाते हैं, वे पुस्तकों और विश्वविद्यालयों में नहीं मिलते।
जीवन लगातार होने वाली पढ़ाई ही है, जहां निरंतर सीखना पड़ता है। कई दिग्गज फरमाते रहे हैं कि हमने अनुभवों से खूब सीखा है। सीखना तो निरंतर ही होगा- काम शुरू करने से पहले और बाद में भी। साफ है कि जीने के साथ लगातार सीखते भी जाना है। जिंदगी की हर चुनौती सिखाती भी जाती है।
दरअसल, वह इंसान खुशकिस्मत है, जिसे जिंदगी में जब-तब सीखने के अवसर मिले, वह उसके लिए तैयार रहे। लेकिन अगर वह तैयार नहीं है, तो वह पीछे रह जा सकता है। केवल ऐसे कर्मशील इंसानों के लिए ही राहें खुलती जाती हैं। कई ने अपने अनुभवों से जाना है कि जितनी ज्यादा मेहनत करते हैं, उतना ही भाग्य उनका साथ देता है।
यानी सीखने और करने के मौके मिलते ही टालमटोल करने लगें, तो समझिए कि हम अपने भाग्य को भगा रहे हैं। निस्संदेह इंसान के भीतर असीम शक्ति है। छोटे से छोटे अवसरों का समय पर उपयोग किया जाए, तो बड़े अवसर खुद सामने आकर खड़े हो जाते हैं। कोई भी शुरू में बड़े काम नहीं करता, छोटे-छोटे काम करता हुआ आगे बढ़ता है।
यह भी सच है कि इंसान के सिवा सभी प्राणी अपने में संतुष्ट रहते हैं। केवल इंसान ही और सीख-सीख कर आगे बढ़ने के प्रयास करता रहता है। हर इंसान जीवन में किसी एक क्षण उतना करने की क्षमता रखता है, जिसका वह सपना देखता है। बस केंद्रित रह कर ‘करत-करत अभ्यास’ ही सफलता की चाबी है। कोई किसी भी क्षेत्र में जुटा हो, उसे खास अवसर के लिए तैयार रहना है और अवसर हाथ लगते ही अपनी पूरी शक्ति झोंक देनी है।
ऐसा करने वाला कतई असफल नहीं हो सकता। सदा सीखने की नीयत, खुद पर भरोसा और कड़ी मेहनत हमेशा भाग्योदय करती है। कम इसलिए हासिल हुआ, क्योंकि निरंतर सीखने में ढिलाई बरती गई। इसलिए जब-जब अवसर हाथ लगे, अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने से पीछे नहीं हटना चाहिए।
सीखने से पहले शांतिमय और आनंदमय इंसान बनना ज्यादा जरूरी है। जो अभी तक सीखा नहीं, उसे सीख लेना कठिन नहीं है। इसीलिए माना जाता है कि जिंदगी जोखिम से भरी है। कोई इसे पहेली कहता है, कोई इम्तिहान, तो कोई मौका। जो बीत गया, नहीं सीखा जा सका, उसे हरगिज दुरुस्त नहीं किया जा सकता, लेकिन आने वाले दौर का निर्माण किया जा सकता है।
गिले-शिकवे भूल कर और खुद पर यकीन कर हर इंसान अपने लक्ष्य के काफी समीप पहुंच सकता है, क्योंकि हर इंसान अपनी किस्मत खुद रचता है। जब किस्मत रचने में असफल होता है, तब वह नियति बन जाती है। जाने-माने कार उत्पादक हेनरी फोर्ड ने एक बार कहा था, ‘सफल शख्स का राज यही है कि वह अपनी मंजिल पाने के लिए क्या जरूरी है, यह जान जाता है और उस पर अमल करता है।’ विद्वान लोग बताते हैं कि सीखने की गति को अपने जीवन में सहजता से उतारें, न कि तनाव से। तात्पर्य है कि खोने की पीड़ा को भूलकर, सदा नया सीख कर पाने में जुटे रहना ही जीवन है।