वरिष्ठ पत्रकार विनोद दुआ के खिलाफ राजद्रोह के मामले के रद्द होने के बाद देश में इस कानून को लेकर बहस छिड़ गई है। पूर्व एटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी जैसे न्यायविद से लेकर दिया मिर्जा जैसे कलाकार और कपिल देव जैसे खिलाड़ी तक अंग्रेजों के बनाए इस कानून के विरोध में बोल रहे हैं। क्या सरकार के खिलाफ बोलना राजद्रोह है? कानूनन तो नहीं। लेकिन इस कानून का खौफ इस कदर तारी है कि कुछ दिन पहले यूपी में भाजपा के एक विधायक बोलते-बोलते कह गया था कि ज्यादा बोलूंगा तो राजद्रोह का केस लग जाएगा।
कानून के विरोध के सिलसिले में सर्वाधिक चर्चा वरिष्ठ एडवोकेट दुष्यंत दवे की हो रही है। साफ और दो टूक बात करने के लिए मशहूर दवे बीती शाम एक टीवी डिबेट के दौरान जब बोले तो उन्होंने सरकारों के साथ जुडीशियरी को भी लपेट लिया। उन्होंने पैनलिस्टों के सामने विनोद दुआ केस के साथ सुधा भारद्वाज का केस रख दिया।
दवे ने कहा कि इस कानून को लेकर कार्यपालिका और न्यायपालिका दोनों गलती करते हैं। मूल बात है कानून का क्रियान्वयन। विनोद दुआ को न्याय मिला यह अच्छी बात है लेकिन यही कोर्ट…जस्टिस ललित के सामने जब सुधा भारद्वाज के खिलाफ राजद्रोह का केस रद्द करने का मामला आया तो वे बोले थेः आपका केस तो मजबूत है लेकिन आप ट्रायल कोर्ट के पास जाइए। दवे ने कहा ऐसा नहीं होना चाहिए। सुधा के बाद उन्होने औरैया मामले में जेल में पड़े केरल के पत्रकार और अखिल गोगोई का मामला भी उठाया।
जुडीशियरी के बाद कार्यपालिका की चूक उजागर करते हुए एडवोकेट ने दिल्ली दंगो का उदाहरण दिया। उन्होंने कहा कि ये दंगे कतिपय भाजपा नेताओं की बयानबाजी के बाद हुए थे, जिनमें बड़ी संख्या में लोग मारे भी गए थे। यह राजद्रोह का उचित केस था। कार्यपालिका यही गलती करती है। अपने लोगों को बचाती है और विरोधियों को फंसाती है।
दवे ने कहा कि निजी स्तर पर वे इस कानून के खिलाफ हैं लेकिन भले ही इस कानून को बनाने वाले अंग्रेजों ने अपने देश से इसे खत्म कर दिया हो, यह भारत से हटने वाला नहीं। उन्होंने कहा कि आतंकियों और कुछ अन्य वजहों से सरकार इसे बरकरार रखेगी। लेकिन, सरकार को चाहिए कि इसका इस्तेमाल वहीं करे जहां इसकी जरूरत हो।
