पूर्वी लद्दाख में भारत- चीन सीमा पर तनातनी के बीच द्विपक्षीय कारोबार को लेकर तमाम आशंकाएं जताई जा रही हैं। आत्मनिर्भरता बढ़ाने के लिए तमाम योजनाओं पर भारत सरकार काम कर रही है। लेकिन एक झटके में क्या भारत और चीन के बीच करीब 100 अरब डॉलर के सालाना कारोबार की अनदेखी की जा सकती है? सवाल उठना लाजिमी है कि इससे क्या भारत को फायदा होगा?

घर-घर में घुस चुके चीनी सामान को बाहर निकालने का सफर खासा लंबा है। लेकिन इस तथ्य से भी मुंह नहीं चुराया जा सकता कि भारत में 74 फीसद मोबाइल, 50 फीसद टेलीवजन, 70 फीसद फार्मा एपीआइ और 90 फीसद सौर उपकरण बाजार चीन के हवाले हो चुका है।

भारतीय कंपनियां न सिर्फ कच्चे माल, बल्कि बड़े-बड़े कलपुर्जों के लिए भी चीन पर निर्भर हैं। दूसरी ओर, अडाणी पावर से लेकर भेल तक कई बड़ी भारतीय कंपनियों का चीन में अच्छा-खासा निवेश है।

निवेश और मुनाफे का हाल
चीन ने भारत में छह अरब डॉलर से भी ज्यादा का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश कर रखा है। पाकिस्तान में उसका निवेश 30 अरब डॉलर से भी ज्यादा का है। वर्ष 2000 में दोनों देशों के बीच का कारोबार केवल तीन अरब डॉलर का था जो 2008 में बढ़कर 51.8 अरब डॉलर का हो गया। सामान के मामले में चीन अमेरिका की जगह लेकर भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बन गया। 2018 में दोनों देशों के बीच कारोबारी रिश्तों का आलम यह रहा कि दोनों के बीच 95.54 अरब डॉलर का व्यापार हुआ।

हालांकि, इसमें फायदा चीन को ज्यादा हुआ। विदेश मंत्रालय के मुताबिक, 2018 में भारत चीन के बीच 95.54 अरब डॉलर का कारोबार हुआ, लेकिन इसमें भारत का निर्यात महज 18.84 अरब डॉलर का रहा। जाहिर है, चीन ने भारत से कम सामान खरीदा और उसे चार गुना से भी ज्यादा सामान बेचा। व्यापार असंतुलन के कारण 2018 में भारत को चीन के साथ 57.86 अरब डॉलर का व्यापारिक घाटा हुआ।

दोनों देशों में प्रमुख कंपनियां
वैश्विक राजस्व के लिहाज से चीन में भारत की जो प्रमुख कंपनियां काम कर रही हैं, उनमें बड़ा स्थान अडाणी पॉवर का है। वित्त एवं विदेश मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, कोयला और बिजली वितरण की कंपनी अडाणी ग्लोबल का राजस्व चीन में 2019 में 3.7 अरब डॉलर का रहा। इसी तरह डॉ. रेड्डी लैब फार्मा का राजस्व 2.2 अरब डॉलर, जिंदल स्टील एंव पॉवर का 5.6 अरब डॉलर, बीईएमएल लिमिटेड का राजस्व 505 मिलियन डॉलर, गोदरेज का 1.5 अरब डॉलर, भेल का 4.3 अरब डॉलर राजस्व रहा है।

भारत में चीन की प्रमुख कंपनियों में सिनो स्टील, बारोशन आयरन एंड स्टील, मोटोरोला, ली ईको, लेनोवो, बेजिंग आटोमोटिव इंडस्ट्री समेत कम से कम 22 बड़ी कंपनियां सक्रिय हैं। चीन में एअर इंडिया, अपोलो टायर्स, बैंक आफ बड़ौदा, जेएसडब्लू, पीएनबी, एसबीआई, सेल, टाटा संस, टीवीएस, विप्रो समेत 20 कंपनियां काम कर रही हैं।

भारतीय कंपनियों पर निगाह
चीनी कंपनियों की नजर भारत में कारोबार कर रही कंपनियों, खासकर ढेर सारे स्टार्टअप्स पर निगाह है। चीन की कई कंपनियों ने भारत में उत्पादन इकाइ लगाई है या लगाने की योजना बना रही हैं। भारत के स्टार्टअप सेक्टर में चीन की कंपनियों का पूरी तरह से नियंत्रण है। चीनी कंपनियों ने यहां के स्टार्टअप में अच्छा खासा निवेश किया है। ऐसी प्रमुख कंपनियां चर्चा में भी हैं। एंट फाइनेंशियल और अलीबाबा ने पेटीएम और स्नैपडील में करोड़ों डॉलर का निवेश किया है। भारत की सात कंपनियों में इसने 2.7 अरब डॉलर का निवेश किया है।

दवा उद्योग का हाल
भारत का दवा उद्योग पूरी तरह चीन से आयात पर निर्भर है। भारतीय दवा कंपनियां जरूरत का 70 फीसद एपीआइ (दवा बनाने का कच्चा माल या फार्मूलेशन) चीन से आयात करती हैं। गलवान घाटी झड़प के बाद चीन ने अपने एपीआइ की कीमतें बढ़ानी शुरू कर दी हैं।

वित्त मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, वित्त वर्ष 2019 में भारत ने चीन से करीब 17,400 करोड़ (2.5 अरब डॉलर) का एपीआइ आयात किया था। एपीआइ की कीमतें बढ़ने से पेरासिटामोल की कीमत में 27 फीसद, सिप्रोफ्लोक्सासिन की कीमत में 20 फीसद और पेन्सिलीन जी की कीमत में 20 फीसद की तेजी आई है।

दवा बनाने वाली भारत की प्रमुख कंपनियां जैसे डॉक्टर रेड्डी लैब, लुपिन, ग्लेनमार्क फार्मा, मायलन, जायडस कैडिला और पीफाइजर जैसी कंपनियां एपीआइ के लिए मुख्य रूप से चीन पर निर्भर हैं। भारत 53 महत्त्वपूर्ण फार्म एपीआइ का 80-90 फीसद आयात चीन से करता है।

क्या कहते हैं जानकार
गलवान घाटी घटना को लेकर कहना है कि चीन हम पर दो तरह से हमला कर रहा है। एक तरफ सीमा पर हमला कर रहा है और दूसरी तरफ भारत की निर्भरता का गलत फायदा उठा रहा है। एपीआइ की कीमत में तेजी से दवाओं की कीमत बढ़ने लगी है। -दिनेश दुआ, अध्यक्ष, वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले फार्माश्यूटिकल एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल

डब्ल्यूटीओ के नियमों के मुताबिक, किसी देश की सरकार आयात या कारोबार को बंद नहीं कर सकती। अगर ऐसा होता है तो फिर चीन भारत के व्यापार को रोकेगा। प्रधानमंत्री ने देश के आत्मनिर्भर बनने की बात उठाई थी। उन्होंने बहिष्कार की बात नहीं की। -किशोर ओस्तवाल, अध्यक्ष, सीएनआइ रिसर्च

रेलवे और दूरसंचार क्षेत्र
गलवान घाटी झड़प के बाद भारतीय रेलवे ने चीनी कंपनी को दिया 471 करोड़ रुपए का एक बड़ा ठेका रद्द करने का ऐलान किया। यह ठेका बेजिंग नेशनल रेलवे रिसर्च एंड डिजाइन इंस्टीट्यूट आॅफ सिग्नल एंड कम्यूनिकेशन समूह को दिया गया था। लेकिन क्या रेलवे अपने तमाम ठेके रद्द करेगी? क्योंकि रेलवे के कई मुख्य और बड़े काम चीनी कंपनियों के पास हैं। चीनी कंपनी सीआरआरसी को भारत में मेट्रो कोच और पुर्जे आपूर्ति करने के सात से ज्यादा आर्डर मिले हुए हैं?

कोलकाता, नोएडा और नागपुर मेट्रो परियोजनाओं के लिए कंपनी को 112, 76, 69 मेट्रो कोच सप्लाई करने का ऑर्डर मिला था। इसी तरह रेलवे लाइन के लिए उपकरण खरीदने के लिए छह अरब डॉलर से ज्यादा के सौदे चीनी कंपनियों के पास हैं। भारतीय दूरसंचार क्षेत्र के लिए हुवावे, जेडटीइ और जेडटीटी जैसी चीनी कंपनियां बड़े पैमाने पर उपकरणों की आपूर्ति करती हैं। भारतीय दूरसंचार के लिए उपकरणों का सालाना बाजार लगभग 12,000 करोड़ रुपए का है, जिसमें चीनी कंपनियों की करीब एक चौथाई हिस्सेदारी है।