Supreme Court on Bulldozer Action: देश की शीर्ष अदालत ने 1 अक्टूबर तक बुलडोजर कार्रवाई पर प्रतिबंध लगा दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर कार्रवाई को संविधान के खिलाफ बताया साथ ही गैरकानूनी ध्वस्तीकरण पर भी चिंता जाहिर की। शीर्ष अदालत का कहना था कि अगल सुनवाई तक आदेश के बिना देश में आपराधिक मामले के आरोपियों समेत कहीं भी बुलडोजर ध्वस्तीकरण एक्शन नहीं होगा। सुप्रीम कोर्ट ने सख्त लहजे में कहा कि अगर अवैध रूप से ध्वस्तीकरण का एक भी मामला है तो यह संविधान के मूल्यों के खिलाफ है।
आइए जानते हैं कहां चल सकता बुलडोजर और कहां है रोक?
हालांकि, बुलडोजर एक्शन पर पूर्ण विराम नहीं लगा है। शीर्ष अदालत की डबल बेंच में जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन ने मामले में सुनवाई की। बेंच ने स्पष्ट किया कि ये आदेश सिर्फ आरोपियों की निजी संपत्ति पर एक्शन लिए जाने के खिलाफ है। यानी कोई मामला ऐसा है जो सरकारी जमीन पर कब्जा करने से जुड़ा है और निर्माण अवैध है। सरकारी नोटिस के बाद भी सार्वजनिक जगह खाली नहीं की जा रही है तो सरकार उस पर एक्शन ले सकती है।
देश की सर्वोच्च अदालत का कहना था कि रेलवे लाइन, सड़क, फुटपाथ और जलस्रोत (नदियों और तालाबों के क्षेत्र शामिल) पर बने अनाधिकृत ढांचा ढहाने पर यह आदेश लागू नहीं होगा। यानी ऐसी जगहों पर सरकार बुलडोजर से कार्रवाई कर सकती है और अवैध ढांचे गिरा सकती है। इस पर कोर्ट की रोक नहीं रहेगी। बशर्ते वह सार्वजनिक/ सरकारी संपत्तियों को प्रभावित करते हों। उच्चतम न्यायालय ने अंत में कहा, हम अवैध निर्माण के बीच में नहीं आएंगे।
सुप्रीम कोर्ट अगली सुनवाई पर जारी कर सकता है दिशा-निर्देश
शीर्ष अदालत का यह आदेश अगली सुनवाई यानी 1 अक्तूबर तक जारी रहेगा। उच्चतम न्यायालय अगली सुनवाई में बुलडोजर एक्शन के संबंध में दिशा-निर्देश जारी कर सकता है। कोर्ट की ओर से आगे बुलडोजर कार्रवाई पर स्थिति और स्पष्ट होने की संभावना है।
‘अधिकारी जज नहीं बन सकते’
बता दें, बुलडोजर एक्शन को लेकर जमीयत-उलेमा-ए-हिंद समेत अन्य ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी। इस याचिका में कहा गया था कि कोई केस कोर्ट में होने के बावजूद बुलडोजर के जरिए घर ढहाए जा रहे हैं। वहीं, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट के आदेश पर आपत्ति जताई। मेहता ने कहा कि अधिकारियों के इस तरह हाथ नहीं बांधे जा सकते हैं। उन्होंने कहा, याचिकाकर्ता एक भी उदाहरण पेश करे, जिसमें कानून का पालन नहीं किया गया है। इस पर बेंच ने कहा, 15 दिन में क्या हो जाएगा? हम किसी अवैध अतिक्रमण के बीच नहीं आ रहे, लेकिन अधिकारी जज नहीं बन सकते। हम आर्टिकल 142 के तहत विशेष शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए यह निर्देश दे रहे हैं। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने यह भी जोड़ा कि किसी भी प्रभावित व्यक्ति ने याचिका दाखिल नहीं की है।
‘हम किसी कहानी या धारणा से प्रभावित नहीं होते’
याचिका में दावा किया गया है कि बुलडोजर के बहाने धर्म विशेष को निशाना बनाया जा रहा है। मेहता का कहना था कि यह कोर्ट को प्रभावित करने के लिए कहानी गढ़ी जा रही है। हालांकि, कोर्ट ने साफ किया कि हम किसी कहानी या धारणा से प्रभावित नहीं होते।
‘किसी का बेटा आरोपी और घर पिता को गिरा, दो यह गलत’
इससे पहले 2 सितंबर को शीर्ष अदालत ने कहा था कि किसी के आरोपी होने पर उसका घर कैसे गिराया जा सकता है? वह दोषी भी हो, फिर भी कानूनी प्रक्रिया का पालन किए बगैर ऐसा नहीं किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि किसी का बेटा आरोपी हो सकता है, लेकिन इस आधार पर पिता का घर गिरा देना, ये एक्शन का सही तरीका नहीं है।
मंगलवार को भी सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया कि हमने दो सितंबर को ही स्पष्ट कर दिया था कि सार्वजनिक सड़क या जगह पर किसी अवैध निर्माण को संरक्षण नहीं दिया जाएगा। फुटपाथ के लिए तो हम कहेंगे कि नोटिस भी जरूरी नहीं है। अगर कोई धार्मिक ढांचा भी है तो उसे गिरा सकते हैं।
कोर्ट ने बुलडोजर एक्शन जारी के बयान पर जताई नाराजगी
सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने बुलडोजर कार्रवाई जारी रहने पर दिए गए एक बयान पर भी नाराजगी जताई है। शीर्ष अदालत का कहना था कि पिछले आदेश के बाद इस तरह का बयान जारी हुआ कि बुलडोजर चलता रहेगा और यह सब इस पर निर्भर करता है कि स्टीयरिंग किसके हाथ में है। बेंच ने कहा कि हम इस पर आगे कुछ भी कहने से बच रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट का कहना था कि ‘बुलडोजर न्याय’ की तारीफ करना और इसका महिमामंडन करना भी गलत है और नेताओं को तुरंत इसका प्रचार करना बंद कर देना चाहिए। हालांकि, केंद्र सरकार ने कहा कि बुलडोजर का इस्तेमाल अतिक्रमण के मामलों में ही होता है। इसे मुस्लिम विरोधी बताना गलत है।