उत्तर प्रदेश के संभल मस्जिद का मामला अभी शांत भी नहीं हुआ है कि बदायूं में भी एक ऐसा ही मामला सामने आया है। बदायूं की जामा मस्जिद को लेकर हिंदू पक्ष ने दावा किया है कि पहले यहां नीलकंठ महादेव मंदिर था। यह मामला फास्ट ट्रैक कोर्ट में चल रहा है। सिविल जज (सीनियर डिवीजन) अमित कुमार की कोर्ट ने इस मामले में मस्जिद इंतजामिया कमेटी के अधिवक्ता की बहस सुनने के बाद 3 दिसंबर की तारीख दी थी। कोर्ट में 8 अगस्त 2022 से इस मुकदमे में सुनवाई चल रही है।
क्या है पूरा मामला?
पहली बार यह मामला 2022 में सामने आया था। अखिल भारत हिंदू महासभा के प्रदेश संयोजक मुकेश पटेल की ओर से दावा किया गया कि जामा मस्जिद की जगह पहले नीलकंठ महादेव मंदिर था। कोर्ट में याचिका दाखिल कर यहां पूजा-अर्चना की अनुमति के लिए कोर्ट में याचिका दायर की थी। याचिका में कहा गया कि जिस जगह जामा मस्जिद है वहां पहले नीलकंठ महादेव का मंदिर हुआ करता था। इसके पुख्ता सबूत भी मौजूद हैं। याचिका में कहा गया कि आज भी यहां मूर्तियां, पुराने खंभे और सुरंग मौजूद हैं। पहले यहां तालाब भी होता था। जब मुस्लिम आक्रांता आए तो मंदिर तोड़ा गया। दावा किया जाता है कि यहां शिवलिंग मौजूद था जिसे फेंक दिया गया। बाद में दो संत उसे लेकर आए और थोड़ी दूर पर मंदिर बनाकर स्थापित किया। यहां आज भी पूजा होती है।
याचिका में दिए ये साक्ष्य
याचिका में कहा गया कि सूचना व जनसंपर्क विभाग द्वारा प्रकाशित कराई जाने वाली पुस्तक में दिए गए इतिहास में भी इस तथ्य के होने का तर्क रखा है। वहीं देश पर आक्रमण करने वाले राजाओं के इतिहास के बारे में जानकारियों समेत कई अन्य तथ्य प्रेषित किए हैं। बता दें कि बदायूं की जामा मस्जिद देश की सबसे बड़ी मस्जिदों की श्रेणी में शुमार है और यह सातवीं सबसे बड़ी मस्जिद है। दिल्ली की जामा मस्जिद के बाद देश की तीसरी पुरानी मस्जिदों में भी इसे गिना जाता है। हिंदू महासभा के मुकेश पटेल ने दावा किया है कि कुतुबुद्दीन ऐबक के समय में यहां मंदिर था। तब इसे तोड़कर मस्जिद बनाया गया। 1875 से 1978 तक के गजट में इसके प्रमाण मौजूद हैं।
मुस्लिम पक्ष ने क्या किया दावा?
मुस्लिम पक्ष की ओर से दावा किया गया है कि यह मस्जिद 850 साल पुरानी है। तब वहां कोई मंदिर मौजूद नहीं था। जामा मस्जिद के आसपास के मुस्लिम समुदाय के लोग मानते है कि गुलाम वंश के सुल्तान शम्सुद्दीन अल्तमश ने 1223 ईसवी में अपनी बेटी राजिया सुल्तान की पैदाइश पर इस मस्जिद का निर्माण कराया था। राजिया सुल्तान पहली मुस्लिम शासक बनी। कोर्ट में सरकारी पक्ष और पुरातत्व विभाग की रिपोर्ट के आधार पर मुकदमे में सरकार की ओर से बहस पूरी हो चुकी है। पुरातत्व विभाग की रिपोर्ट भी कोर्ट में पेश हो चुकी है। वहीं शाही मस्जिद कमेटी की तरफ से भी बहस पूरी कर ली गई है। पुरातत्व विभाग ने इसे राष्ट्रीय धरोहर बताया। साथ ही कहा कि राष्ट्रीय धरोहर से 200 मीटर तक सरकार की जगह है। कोर्ट इस मामले में इंतजामिया कमेटी, यूपी सेंटर सुन्नी वक्फ बोर्ड, भारत सरकार, मुख्य सचिव यूपी, पुरातत्व विभाग और डीएम बदायूं को नोटिस जारी कर जबाव मांग चुका है। आगे पढ़ें हिमाचल की संजौली मस्जिद को लेकर कोर्ट में क्या फैसला सुनाया