भारत ने अपने ही देश में निर्मित ब्रह्मोस जैसी मिसाइल को दुनिया के अन्य देशों को बेचना शुरू कर दिया है। रक्षा सौदों के मोर्चे पर अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारत अब अहम विक्रेता के तौर पर उभरने की तैयारी कर रहा है। निर्यात संबंधी काम में तालमेल और आगे की कार्रवाई के लिए रक्षा उत्पादन विभाग में एक अलग कार्यालय बनाया गया है। हाल में भारत ने फिलीपींस को ब्रह्मोस मिसाइल प्रणालियां बेची हैं। फिलीपींस जैसे 42 और देशों ने भारत से रक्षा सौदे का करार किया है। इनमें कई ऐसे देश हैं, जो चीन से परेशान हैं। रक्षा विशेषज्ञों के मुताबिक, भारत की इस कवायद को सामरिक मोर्चे पर चीन के जवाब की तरह देखा जा रहा है। बीते दो दशकों में चीन ने बांग्लादेश, म्यांमार, पाकिस्तान, श्रीलंका और अफगानिस्तान जैसे देशों के साथ रक्षा समझौते किए। चीन ने तब भारत के पड़ोसी देशों की रक्षा जरूरतें पूरी कर भारत की घेराबंदी की। अब चीन के खिलाफ भारत ने इसी नीति पर काम करना शुरू कर दिया है।

अहम रक्षा सौदे

भारत ने फिलीपींस के साथ लगभग 375 मिलियन डालर यानी 2 हजार 811 करोड़ रुपए का महत्त्वपूर्ण रक्षा समझौता किया है, जिसके तहत फिलीपींस को भारत में बनी ब्रह्मोस मिसाइल की तीन बैटरी दी जाएंगी। हर बैटरी में तीन प्रक्षेपण इकाइयां होंगी। हर बैटरी में मोबाइल कमांड सेंटर, रडार प्रणाली और वाहन भी होंगे। फिलीपींस की गिनती उन देशों में होती है, जिनका चीन के साथ टकराव है। फिलीपींस की सीमा दक्षिण चीन सागर से लगती है, जिसे चीन अपनी विस्तारवादी नीति के तहत हड़पना चाहता है। इसी बात को लेकर इन दोनों देशों के बीच लंबे अरसे से विवाद चल रहा है। इसके अलावा भारत ने वियतनाम के साथ भी 100 मिलियन डालर यानी 750 करोड़ रुपए का रक्षा समझौता किया है, जिसमें वियतनाम को भारत में बनी 12 तेज रफ्तार गार्ड बोट दी जाएंगी। वियतनाम भी दक्षिण चीन सागर के क्षेत्र में स्थित है।

रक्षा सौदे के बाजार में भागीदारी

वर्ष 2020 में दुनिया में जितने हथियारों की खरीद हुई, उनमें से 10 फीसद हथियार अकेले भारत ने खरीदे थे। बीते 15 साल में भारत 80 बिलियन अमेरिकी डालर, यानी छह लाख करोड़ रुपए के हथियार खरीद चुका है। अब भारत में विकसित किए जा रहे हथियारों का निर्यात बढ़ रहा है। वर्ष 2015-2016 में भारत ने दो हजार करोड़ रुपए के हथियार दूसरे देशों को बेचे थे। वर्ष 2020-2021 में ये आंकड़ा दो हजार करोड़ रुपए से बढ़ कर लगभग छह हजार तीन सौ करोड़ रुपए पर पहुंच गया। इस क्षेत्र में भारत ने पिछले कुछ साल में 228 फीसद की वृद्धि देखी है, जो अभूतपूर्व है।

दुनिया के 20 से ज्यादा देश, भारत में बनी ब्रह्मोस मिसाइल, अर्जुन एमके-1ए टैंक, तेजस लड़ाकू विमान और राकेट प्रणाली (पिनाका) खरीदने के इच्छुक हैं। इस समय भारत दुनिया के 42 से ज्यादा देशों को हथियार और दूसरे रक्षा उपकरण की आपूर्ति कर रहा है। आस्ट्रेलिया को हमारा देश एमके-एन सिरीज के आधुनिक कारतूस आपूर्ति कर रहा है। अजरबैजान को बख्तरबंद उपकरण, जर्मनी को बम डिफ्यूज करने के उपकरण और युद्ध में इस्तेमाल होने वाले उपकरण, इजराइल को मोर्टार, दक्षिण अफ्रीका को डेटोनेटर्स बेचने का सौदा किया गया है। पूरी दुनिया में हथियारों का बाजार 40 लाख करोड़ रुपए का है। यह भारत के रक्षा बजट से 10 गुना ज्यादा है। भारत से हथियारों के निर्यात में 228 फीसद की वृद्धि हुई है। दूसरी तरफ, हथियारों की खरीद 33 फीसद तक गिर गई है।

ब्रह्मोस और चीन

भारतीय ब्रह्मोस मिसाइल को दुनिया की सबसे तेज सुपरसोनिक मिसाइलों में गिना जाता है। इसकी रफ्तार 2.8 मैक (ध्वनि की रफ्तार के बराबर) है। इस मिसाइल को भारत और रूस के संयुक्त उपक्रम में तैयार किया गया है। इसे जल, थल और वायु से छोड़ा जा सकता है। इस क्षमता को ट्रायड कहा जाता है। ट्रायड की विश्वसनीय क्षमता भारत के पहले सिर्फ अमेरिका, रूस और सीमित रूप से फ्रांस के पास मौजूद है। इस मिसाइल की रफ्तार 2.8 मैक (ध्वनि की रफ्तार के बराबर) है। इस मिसाइल की रेंज 290 किलोमीटर है और तीन सौ किलोग्राम भारी युद्धक सामग्री ले जा सकती है।

दूसरी ओर, चीन की डागफेंग-31 एजी अंतरमहालीपीय बैलिस्टिक मिसाइल है, जो 10,000 किलोमीटर तक मार कर सकती है।इसके अलावा मध्यम दूरी की मार करने वाली बैलिस्टिक मिसाइल डागफेंग-21 एजी भी है। हाल में चीन ने अपनी सेना में ऐसी अंतरमहालीपीय बैलिस्टिक मिसाइल डागफेंग-41) को अगले साल शामिल करने का दावा किया, जो कई परमाणु हथियारों को एक साथ ले जाने में सक्षम होगी। इसकी गति मैक 10 से ज्यादा होने का दावा है। इसके अलावा पाकिस्तान ने जनवरी 2017 में बाबर-3 मिसाइल का परीक्षण किया था। पाकिस्तानी सेना ने दावा किया था कि यह परमाणु क्षमता वाली मिसाइल है। हालांकि, बाबर-3 मात्र 450 किलोमीटर तक ही मार कर सकती है।

सौदों का रणनीतिक उद्देश्य

दक्षिण चीन सागर पर चीन की दावेदारी के चलते फिलिपींस, वियतनाम जैसे देशों के साथ हुए सौदों को रणनीतिक महत्व वाला बताया जा रहा है। चीन और फिलीपींस दक्षिण चीन सागर में अपने-अपने दावे करते रहे हैं। पिछले साल मार्च में फिलीपींस ने जल क्षेत्र से चीन से 200 से अधिक जहाजो को हटाने के लिए कहा था।

चीन नाइन-डैश लाइन के नाम से मशहूर एक बड़े इलाके पर अपना दावा जताता है। चीन ने अपने दावों को पुख्ता शक्ल देने के लिए यहां टापू बना लिए हैं और समुद्र में गश्त करने लगा है। बड़ा सैन्य ढांचा भी बना लिया है। भारत दक्षिणी चीन सागर को एक तटस्थ जगह मानता रहा है। भारत मानता है कि ये तटस्थता बनी रहनी चाहिए और यह किसी भी देश का समुद्र नहीं है।

क्या कहते हैं जानकार

चीन के दीर्घकालिक खतरे से निपटने के लिए रणनीति जरूरी है। रक्षा सौदों के जरिए भी यह काम हो सकता है। सीमा पर सैैन्य उपस्थिति के साथ ही रणनीति भी जरूरी है। एलएसी पर प्रबंधन रणनीति को सीमावर्ती क्षेत्रों के विकास पर भी ध्यान देना चाहिए।

  • लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) डीएस हूडा, रक्षा विशेषज्ञ

भारत के पड़ोसी मुल्कों के साथ चीन ने जिस तरह से रक्षा सौदे किए और घेराबंदी की कोशिश की, उससे भारत की कूटनीतिक मशक्कत बढ़ी है। जरूरी है कि चीन को दक्षिण चीन सागर के मुद्दे पर घेरा जाए और वहां स्थित देशों को साथ लिया जाए। इस कूटनीतिक कवायद में भारतीय रक्षा सौदे अहम हो सकते हैं।

  • लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) अशोक चौधरी, रक्षा विशेषज्ञ