Bombay High Court: बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा कि महिला को खाना बनाना नहीं आने की टिप्पणी करना क्रूरता नहीं है। कोर्ट ने कगा कि भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 498ए के तहत ‘क्रूरता’ नहीं है। इसी के साथ कोर्ट ने महिला द्वारा अपने पति के रिश्तेदारों के खिलाफ दर्ज की गई एफआईआर को रद्द कर दिया।

महिला ने अपनी शिकायत में आरोप लगाया था कि उसके ससुराल वाले, जिनमें उसके बहनोई भी शामिल थे, उसे ताने मारते थे और उसका अपमान करते थे और टिप्पणी करते थे कि वह खाना बनाना नहीं जानती और उसके माता-पिता ने उसे कुछ भी नहीं सिखाया है।

हाई कोर्ट ने कहा कि छोटे-मोटे झगड़े आईपीसी की धारा 498ए के तहत क्रूरता नहीं हैं और इस तरह के अपराध का गठन करने के लिए, प्रथम दृष्टया महिला को आत्महत्या का प्रयास करने या उसे गंभीर चोट पहुंचाने या दहेज के लिए परेशान करने के लिए जानबूझकर किया गया आचरण कोर्ट के समक्ष लाना चाहिए।

कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि वर्तमान मामले में इन याचिकाकर्ताओं के खिलाफ एकमात्र आरोप यह है कि उन्होंने टिप्पणी की थी कि प्रतिवादी शिकायतकर्ता खाना बनाना नहीं जानती है। कोर्ट ने कहा कि इस तरह की टिप्पणी भारतीय दंड संहिता की धारा 498-ए के स्पष्टीकरण के अर्थ में ‘क्रूरता’ नहीं है।

जस्टिस अनुजा प्रभुदेसाई और जस्टिस नितिन आर बोरकर की डिवीजन बेंच ने शिकायतकर्ता महिला के देवरों की याचिका पर आदेश पारित किया, जिसमें सांगली पुलिस द्वारा उनके खिलाफ दर्ज की गई एफआईआर और ट्रायल कोर्ट में लंबित आरोपपत्र को रद्द करने की मांग की गई थी। क्रूरता के अपराधों के लिए, शांति भंग करने के लिए जानबूझकर अपमान करना और आईपीसी के तहत दंडनीय आपराधिक धमकी देना।

शिकायत में कहा गया है कि उसकी शादी जुलाई 2020 में हुई और उसी साल नवंबर में उसे उसके वैवाहिक घर से निकाल दिया गया। उसने जनवरी 2021 में शिकायत दर्ज कराई थी कि उसका पति शादी के बाद से उसके साथ वैवाहिक संबंध स्थापित करने में असमर्थ है और उसके ससुराल वाले उसे ताने मारते थे और उसका अपमान करते थे।

बेंच ने कहा, ”यह कहने की जरूरत नहीं है कि आईपीसी की धारा 498-ए के तहत छोटे-मोटे झगड़े क्रूरता नहीं हैं।” और कहा कि आईपीसी की धारा 498ए के तहत अपराध साबित करने के लिए यह स्थापित करना जरूरी है कि शिकायतकर्ता के साथ क्रूरता की गई है। पीठ ने इसे याचिकाकर्ताओं के खिलाफ “एफआईआर और आरोप पत्र को रद्द करने के लिए उपयुक्त मामला” पाया और उनकी याचिका को स्वीकार कर लिया।