विश्व की आबादी का लगभग आधा हिस्सा महिलाओं का है, जो पुरुषों की अपेक्षा कुल काम का दो तिहाई हिस्सा करती हैं और आज भी कुल आमदनी का लगभग दसवां हिस्सा पाती हैं। महिलाओं के काम के घंटे अमूमन पुरुषों की अपेक्षा अधिक होते हैं, क्योंकि बच्चों की देखभाल से लेकर घर की सारी जिम्मेदारियां अधिकतर महिलाओं की होती हैं।
हालांकि, पुरुष भी अब घर के कार्यों में मदद करने लगे हैं, पर उनकी संख्या बहुत कम है। इसके अलावा, आय अर्जन में भी महिलाएं अपनी भूमिका निभाती हैं। फिर भी अधिकांश महिलाओं को आज भी कुपोषण और स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। खासकर गांव की निरक्षर और अल्पशिक्षित महिलाओं के पास पढ़ने-लिखने का समय नहीं है। जो थोड़ी-बहुत पढ़ी-लिखी हैं, उनके पास सुविधाओं का अभाव है। ऐसे में महिलाओं का सही मायने में सशक्तीकरण आज भी मुख्य मुद्दा बना हुआ है।
सशक्तीकरण आत्मविश्वास और आत्मसम्मान का अनुभव कराता है
दरअसल, सशक्तीकरण आज विकास की मुख्यधारा का एक बहुप्रचारित शब्द है। यह एक ऐसा विचार बन गया है, जो केवल एक व्यक्तित्व की पहचान से संबंधित नहीं, बल्कि विस्तृत अर्थों में यह मानव अधिकारों और सामाजिक न्याय का विश्लेषण भी करता है। एक सशक्त व्यक्ति वह है, जो अपने अंदर आत्मविश्वास और आत्मसम्मान का अनुभव करता है, जो अपने सामाजिक और राजनीतिक वातावरण को समझने की विश्लेषणात्मक दृष्टि और उन निर्णयों को बदलने की क्षमता रखता है, जिनसे उसका जीवन प्रभावित होता है।
महिला सशक्तीकरण वह प्रक्रिया है, जिसमें महिलाएं घरेलू, सामाजिक, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपने अधिकारों को जानते-समझते और उनका उपयोग करते हुए जीवन पर स्वयं का नियंत्रण रखती हैं। सशक्तीकरण का मतलब है कि महिलाएं व्यक्तिगत रूप से निर्णय लेने में पूरी तरह सक्षम और आर्थिक, सामाजिक तथा राजनीतिक स्तर पर निर्णय की प्रक्रिया में शामिल हों। अपना लक्ष्य तय करने और उसे हासिल करने के लिए स्वतंत्र हों।
सशक्तीकरण को छह आयामों से जोड़ कर देखा जा सकता है- बौद्धिक, मानसिक, आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक और कानूनी सशक्तीकरण।
बौद्धिक सशक्तीकरण वह स्थिति है, जिसमें महिलाएं समाज में स्थूल और सूक्ष्म रूप में अपने दोयम दर्जे के होने के कारणों को समझती हैं। पर आज की परिस्थितियों को देखें, तो बौद्धिक सशक्तीकरण की परछाईं भी महिलाओं के एक बहुत बड़े वर्ग को छू तक नहीं पाई है। आज भी पुरानी परंपराओं और मान्यताओं का निर्वहन ये महिलाएं बिना कोई सवाल उठाए और बिना उसका औचित्य समझे किए जा रही हैं।
मानसिक सशक्तीकरण महिलाओं में अपनी स्थिति बेहतर बनाने की भावना का विकास करता है। इसका मतलब है कि उनमें यह विश्वास पक्का करता है कि वे बदलाव के प्रयासों में सफल हो सकती हैं। इससे उनमें दृढ़ता, आत्मविश्वास, निडरता और साहस जैसे गुणों का विकास होता है।
पर मानसिक सशक्तीकरण भी महिलाओं के संदर्भ में कोई मायने नहीं रखता, क्योंकि जब वे अपनी अवस्था में बदलाव या परिवर्तन की कल्पना ही नहीं कर सकतीं, तो उसे बेहतर बनाने के प्रयास करने का तो सवाल ही नहीं है।
आर्थिक सशक्तीकरण महिलाओं को उत्पादकता से जोड़ता और उन्हें कुछ हद तक स्वतंत्र बनाता है। बड़ी संख्या में महिलाएं उत्पादकता से जुड़ कर धन अर्जन करने लगी हैं, पर इनमें से अधिकांश उस धन को खर्च करने का अधिकार नहीं रखतीं। इसलिए कि वे बौद्धिक और मानसिक रूप से स्वतंत्र नहीं हो पाईं और कानूनी जानकारी का भी उनमें अभाव है।
इसके अलावा, घर-परिवार और बच्चों के प्रति उनकी जिम्मेदारी की भावना भी उनकी निर्णय क्षमता को प्रभावित करती है। इसीलिए आर्थिक रूप से सक्षम होते हुए भी वे स्वतंत्र रूप से निर्णय नहीं ले पाती हैं।
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सशक्तीकरण केवल व्यक्ति की जागरूकता से नहीं, बल्कि यह एक समूह की जागरूकता और समूह के कार्यों से भी संबंधित है। पहले राजनीति में महिलाओं की संख्या नगण्य थी, पर आज स्थितियां बदली हैं और महिलाएं अब राजनीतिक पटल पर दिखने लगी हैं। राजनीति में 33 फीसद आरक्षण ने महिलाओं के लिए विकास का एक नया रास्ता खोला है।
हालांकि एक साधारण महिला के लिए राजनीति में आना और टिकना आज भी एक बड़ी चुनौती है। अगर ग्रामीण इलाकों में देखें, तो वहां की स्थिति में भी बहुत ज्यादा बदलाव नहीं आया है, जहां महिला सरपंच का पति, बेटा या ससुर ही उसका सारा काम-काज संभालते हैं।
सामाजिक सशक्तीकरण समाज के विभिन्न वर्गों, संस्कृतियों और कार्यों के बीच शक्ति विभाजन में बदलाव की एक प्रक्रिया है। पहले महिलाएं सामाजिक विकास के पहलुओं से अनभिज्ञ हुआ करती थीं, पर आज परिदृश्य बहुत बदला हुआ है।
महिलाएं समाज की स्थितियों पर न केवल नजर रखे हुए हैं, बल्कि सामाजिक विकास की पूरी प्रक्रिया में सक्रिय हिस्सेदारी निभाने की कोशिश में जुटी हैं, लेकिन केवल महिलाओं की हिस्सेदारी से उनका सशक्तीकरण संभव नहीं है। पुरुषों को भी महिलाओं के सामाजिक सशक्तीकरण में अपनी भूमिका सुनिश्चित करनी होगी।
महिलाओं की सुरक्षा के लिए कई कानून देश में बने हुए हैं। मगर महिलाओं की सुरक्षा आज भी एक अहम मसला बना हुआ है और यह चिंता का विषय है। महिलाओं को विभिन्न कारणों से परिवार और समाज में प्रताड़ित करने, घरेलू हिंसा और यौन हिंसा जैसे अपराध कम नहीं हो रहे हैं। ऐसा क्यों है? इसके कई कारण देखे जा सकते हैं।
सबसे पहला कारण तो जानकारी का अभाव है। जिन लोगों के लिए ये कानून बने हैं, उन्हें पता ही नहीं है, अगर पता भी है तो किस तरह इसका लाभ उन्हें मिल सकता है, इसकी जानकारी का अभाव है। दूसरा कारण है कि अगर महिलाओं के फायदे के लिए कानून बने हैं, तो उसी कानून में कई ऐसे छिद्र भी हैं, जिससे अपराधियों को समय पर सजा नहीं मिल पाती या वे संदेह के लाभ में बरी कर दिए जाते हैं।
तीसरा कारण मान सकते हैं पुरुष प्रधान समाज की मानसिकता को, जहां आज भी पीड़ित महिला को ही प्रथम दृष्टया कसूरवार मान लिया जाता है। इसके अलावा महिलाओं के मानसिक और बौद्धिक रूप से सशक्त नहीं होने के कारण उनमें साहस, आत्मविश्वास और दृढ़ता जैसे गुणों की कमी है। जरूरत इस बात की भी है कि समाज की उस मानसिकता को बदलने के लिए प्रयास तेज किए जाएं, जहां महिलाओं को आज भी केवल एक वस्तु या परिवार की इज्जत के रूप में ही देखा जाता है, न कि एक इंसान के रूप में।
कुल मिलाकर महिलाओं के सशक्तीकरण का प्रयास अभी पूरा नहीं हुआ है। इस दिशा में अभी काफी कुछ किया जाना बाकी है। खासकर महिलाओं को मानसिक और बौद्धिक रूप से जागरूक और सशक्त बनाने की बेहद जरूरत है। वैसे साक्षरता महिलाओं की स्वतंत्रता के लिए सबसे जरूरी और अहम साधन माना गया है, जो उन्हें ज्ञान, कौशल और आत्मविश्वास के जरिए विकास की मुख्यधारा से जोड़ता है। अगर समाज की हर एक महिला साक्षर हो जाए, तो हमें उन्हें सशक्त बनाने में आसानी होगी।