अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव की सरगर्मी बढ़ गई है। पिछले दिनों डेमोक्रेटिक पार्टी की उम्मीदवार कमला हैरिस और रिपब्लिकन पार्टी के डोनाल्ड ट्रंप के बीच नब्बे मिनट की चुनावी बहस हुई। मगर उस बहस से अमेरिकी मतदाताओं को किसी नतीजे पर पहुंचने में मदद नहीं मिली और न चुनाव को लेकर कोई साफ तस्वीर सामने आ सकी। यह दुर्भाग्यपूर्ण, लेकिन सच है कि संयुक्त राज्य अमेरिका एक गंभीर नेतृत्व संकट के दौर से गुजर रहा है।

दोनों नेताओं के बीच बहस से लोगों की राय नहीं बन पा रही है

राष्ट्रपति पद के लिए चुनावी बहस के दौरान दोनों पक्षों में तीखी नोकझोंक और उलझन भरी बातें हुईं। उससे पता चला कि हैरिस और ट्रंप दोनों की ही, घरेलू और वैश्विक संदर्भ में बड़े मुद्दों को संबोधित करने में शायद कोई रुचि नहीं है। अमेरिका अभी आर्थिक मोर्चे पर गंभीर संकट का सामना कर रहा है, जहां मुद्रास्फीति बहुत अधिक है और बढ़ती बेरोजगारी असहनीय होती जा रही है। मगर इसके बावजूद, दोनों की बहसों से स्पष्ट रूप में यही लगा कि न तो हैरिस और न ही ट्रंप के पास, इन मुद्दों से निपटने के लिए कोई स्पष्ट रणनीति है।

दर्शकों के सामने अपनी योजना का विवरण क्यों नहीं दे सके ट्रंप

डोनाल्ड ट्रंप ने अपनी आर्थिक योजना पर चर्चा करते हुए पेंसिल्वेनिया विश्वविद्यालय में अपनी पढ़ाई का उल्लेख किया और कहा कि जब वे वार्टन स्कूल आफ फाइनेंस में गए थे, तब सभी शीर्ष प्रोफेसरों ने उनकी योजना को शानदार बताया था। मगर यह समझ से परे है कि वे दर्शकों के सामने अपनी योजना का विवरण क्यों नहीं दे सके। वर्तमान भू-राजनीतिक संदर्भ में, दुनिया के आधे से ज्यादा हिस्से में किसी न किसी तरह का संघर्ष चल रहा है। मगर हाल के दिनों में अमेरिका की तरफ से की गई कार्रवाइयों से यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि शांति और स्थिरता लाने में शायद उसकी कोई दिलचस्पी नहीं है।

फिलहाल, रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे संघर्ष और इजराइल-हमास संघर्ष से इस बात को अच्छी तरह समझा जा सकता है कि अमेरिका अब वैश्विक मामलों का नेतृत्व करने की स्थिति में नहीं है। कमला हैरिस ने दावा किया कि ट्रंप आसानी से यूक्रेन को रूस के हवाले कर देंगे। यह किसी भी रूप में अच्छा विचार नहीं था।

हालांकि इजराइल को लेकर हैरिस की स्थिति पर ट्रंप के दावे भी उभरती भू-राजनीतिक चुनौतियों के अनुरूप नहीं थे। उन्होंने स्पष्ट कहा कि हैरिस इजराइल से नफरत करती हैं और अगर वे राष्ट्रपति बन जाती हैं, तो दो साल के भीतर इजराइल का अस्तित्व ही खत्म हो जाएगा। ये कटाक्ष अमेरिकी मतदाताओं और बाकी दुनिया को यह एहसास नहीं करा पाए कि अमेरिका किस ओर जा रहा है। हैरिस ने जो सबसे बुरा काम किया, वह था ट्रंप के अहं पर सीधा हमला। उन्होंने कहा कि विश्व के नेता और अमेरिकी जनरलों को लगता है कि ट्रंप ‘विध्वंसक’ हैं। उन पर जवाबी हमला करते हुए ट्रंप ने हैरिस को ‘मार्क्सवादी’ बताया और पिछले चार वर्षों के कुशासन के लिए उन्हें दोषी ठहराया।

आप्रवासन को लेकर ट्रंप के विचार किसी से छिपे नहीं हैं। अमेरिका के राष्ट्रपति के रूप में अपने कार्यकाल के पूरे चार सालों में वे इसी बात पर बहस करते रहे कि अमेरिका-मैक्सिकन सीमा पर दीवार खड़ी की जाएगी और अवैध वे आप्रवासियों के प्रवाह को रोकेंगे। वह बात दुनिया भर में बहस का मुद्दा बन गई थी। आप्रवासियों को लेकर उनका सख्त रुख डेमोक्रेट्स के दृष्टिकोण के बिल्कुल उलट है। इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता कि पंद्रहवीं शताब्दी में जब कोलंबस ने अमेरिका की खोज की, तभी से अमेरिका आप्रवासियों का देश बना हुआ है। ट्रंप ने यहां तक कह दिया कि अवैध आप्रवासी ओहियो और कई अन्य जगहों पर पालतू जानवरों को मार कर खा रहे हैं।

जैसे-जैसे बहस आगे बढ़ी, ऐसा लगने लगा कि ट्रंप पूरी तरह तैयारी करके नहीं आए थे। इसीलिए वे निश्चित रूप से घरेलू और वैश्विक चिंता से जुड़े कई क्षेत्रों में बाइडेन प्रशासन की विफलताओं को लेकर हैरिस को जिम्मेदार नहीं ठहरा पाए। हालांकि ट्रंप के पास निश्चित रूप से अच्छी बहस करने का कौशल है, इसलिए उम्मीद थी कि वे एक सुसंगत और सटीक विचार के साथ सभी को परास्त कर देंगे। दूसरी ओर, हैरिस लगातार ट्रंप को उनकी केंद्रित सोच से दूर करने के लिए उकसाती रहीं। हैरिस ऐसा रणनीतिक रूप से जानबूझकर करती रहीं और वे ब्योरों की तरफ से ट्रंप का ध्यान भटकाने में सफल भी रहीं।

सवाल-जवाब के क्रम में वैसे तो हैरिस से पूछा गया पहला सवाल सीधा था, लेकिन वे उस पर टालमटोल करती रहीं और जिस तरह के जवाब की अपेक्षा थी, वह नहीं दे पाईं। हैरिस से पूछा गया था कि ‘क्या आपको लगता है कि चार वर्ष पहले अमेरिकी नागरिक जिस स्थिति में थे, अब उससे बेहतर स्थिति में हैं?’ इस सवाल का जवाब ‘हां’ या ‘नहीं’ में देने के बजाय उन्होंने इस मुद्दे पर बात की कि वे अर्थव्यवस्था को कैसे बेहतर बनाएंगी। पिछले चार वर्षों में निश्चित रूप से अमेरिकी अर्थव्यवस्था में कोई सुधार नहीं हुआ है। मगर, हैरिस के पास आज के बारे में कोई स्पष्टता नहीं थी और उन्होंने अमेरिकी लोगों के लिए एक सुनहरे कल का सपना पेश किया।

गर्भपात, बंदूक कानून और विश्व नेताओं की धारणा जैसे कई अन्य मुद्दों पर बहस किसी भी निष्पक्षता के साथ नहीं होती दिखी। गर्भपात पर हैरिस ने वादा किया कि जब कांग्रेस ‘रो बनाम वेड’ के सुरक्षा उपायों को वापस लागू करने के लिए विधेयक पारित करेगी, तो अमेरिकी राष्ट्रपति के रूप में वे बड़े गर्व के साथ उस पर हस्ताक्षर करके उसे कानूनी रूप देंगी। संयुक्त राज्य अमेरिका में बंदूकों के प्रसार पर निश्चित रूप से कोई बदलाव नहीं होने वाला है।

दोनों उम्मीदवारों के बारे में विश्व नेताओं की धारणा अभी विकसित होनी बाकी है। मगर, बाकी दुनिया के साथ डेमोक्रेट और रिपब्लिकन की निकटता के बारे में सबको पता है। जहां तक भारत का सवाल है, उनके द्विपक्षीय दृष्टिकोण में निरंतरता बनी रहेगी। भारत और अमेरिका के बीच द्विपक्षीय संबंधों की नींव बहुत मजबूत हो चुकी है। अमेरिका भारत के साथ मिलकर काम करेगा और उन जिम्मेदारियों में हाथ बंटाएगा, जहां भारत वैश्विक मामलों का नेतृत्व करने में बड़ी भूमिका निभाने को आगे बढ़ेगा।

अमेरिकी मतदाता दुविधा में हैं, बाकी दुनिया भी दुविधा में है। चुनावी बहस को लेकर एबीसी न्यूज तटस्थ नहीं रह सका और हैरिस के प्रति अपने पूर्वाग्रहों को खुलकर प्रदर्शित किया। जाहिर है, चुनावी संघर्ष की दृष्टि से पेंसिल्वेनिया और विस्कान्सिन तथा फिलाडेल्फिया और मिल्वौकी जैसे प्रमुख जनसंख्या बहुल महत्त्वपूर्ण राज्य निर्णायक साबित होंगे। अन्य दो पश्चिमी राज्य- एरिजोना और नेवादा भी आगामी राष्ट्रपति चुनाव के समग्र परिणामों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।

(लेखक स्कूल आफ इंटरनेशनल स्टडीज, जेएनयू में प्रोफेसर हैं।)