पांच राज्यों (मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, मिजोरम, तेलंगाना) में विधानसभा का चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आ रहा है, देश की राजधानी दिल्ली सहित इन राज्यों में चुनावी रंग गुलाबी होता जा रहा है। इसे इस तरह भी कहा जा सकता है कि टारगेट अगला लोकसभा चुनाव रखा जा रहा है और पूरी गणना जनता तथा समीक्षक इसी आधार पर कर रहे हैं। वादों की झड़ी लगी है और जनता अनिर्णय की स्थिति में है कि आखिर वह करे तो क्या। नेता जब भी मैदान में उतरकर जनता के बीच जाएंगे और उनसे पूछेंगे कि उनकी योजना चुनाव के लिए क्या है, तो उनके उत्तर से आप भ्रमित हो जाएंगे।
राजस्थान में भाजपा और कांग्रेस एक-दूसरे को हटाने में पूरी ताकत झोंकी
राजस्थान से संबंधित एक चुनावी सर्वेक्षण बताता है कि राज्य में भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला है। भाजपा पूरी ताकत झोंक कर अशोक गहलोत सरकार को किसी भी कीमत पर कुर्सी से हटाने का उद्देश्य पूरा करने में लग गई है। वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपना चेहरा बनाकर माहौल को अपने पक्ष में करने की कोशिश कर रही है। अशोक गहलोत भी सत्ता बरकरार रखने के लिए हर कला अपना रहे हैं। ऐसे में देखना बड़ा दिलचस्प होगा कि रेगिस्तान में चुनावी ऊंट किस करवट बैठेगा। 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 100 सीटों पर जीत मिली थी, जबकि भाजपा 73 सीटों पर ही कब्जा कर पाई थी।
मध्य प्रदेश में सात सांसद लड़ेंगे विधानसभा चुनाव
मध्य प्रदेश के लिए जो रिपोर्ट सार्वजनिक हो रही है, उससे यही लगता है कि भाजपा के लंबे शासन से जनता ऊब चुकी है। भाजपा ने अपने अस्तबल के लगभग सारे घोड़े खोल दिए हैं। परिणामस्वरूप वर्षों से लोकसभा का प्रतिनिधित्व करने वाले सात संसद सदस्यों को विधानसभा का चुनाव लड़ने भेज दिया है।
मध्य प्रदेश में भाजपा के अंदर भी कलह उफान पर है। स्थानीय नेताओं के मन में यह बात बैठ गई हैं कि केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया को प्रदेश की राजनीति में थोपकर स्थानीय नेतृत्व कई हिस्सों में विभाजित हो गया है। अब स्थिति यह है कि सिंधिया के साथ कांग्रेस छोड़कर आने वाले कई दलबदलु उनका साथ छोड़कर फिर से कांग्रेस का हाथ थाम चुके हैं।
वैसे भी, पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को ही बहुमत मिला था और कांग्रेस की ही सरकार बनी थी, लेकिन तत्कालीन कांग्रेस के नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया ने 16 विधायकों को तोड़कर भाजपा में शामिल कराकर कमलनाथ की सरकार को गिरा दिया था।
छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल के पक्ष में चुनाव एक पक्षीय होने की चर्चा
छत्तीसगढ़ के लिए कहा जा रहा है कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का कार्यकाल राज्य के विकास के लिए बेहतरीन कार्यकाल रहा है और इसलिए वहां का चुनाव एक पक्षीय होने जा रहा है। फिलहाल इस बात को गलत साबित करने और अपने अस्तित्व को बचाए रखने के लिए भाजपा द्वारा परिवर्तन रैली निकालकर राज्य की जनता के बीच यह संदेश देने का प्रयास किया जा रहा है कि भाजपा आपको बहुत कुछ देने को तैयार है, बशर्ते आप उसकी सरकार बना दें।
1 नवंबर, 2000 को बने इस राज्य का विकास उस गति से नहीं हुआ, जिस गति की कल्पना की जा रही थी। पूर्व मुख्यमंत्री, जो भाजपा के एक कद्दावर नेता हैं, को कोई अहमियत नहीं दी जा रही है और केंद्रीय मंत्रियों की लंबी कतार लग गई है। प्रधानमंत्री के बार-बार के दौरे से यही लगता है कि भाजपा में कोई नेता ऐसा नहीं है, जो छत्तीसगढ़ में सरकार बनाने की क्षमता रखता हो।
एक कद्दावर नेता के रूप में पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह को जाना जाता है, लेकिन उन्हें किनारे करके भाजपा ने अपने ही पर कतरे हैं। देखना यह होगा कि प्रतिष्ठा की इस लड़ाई में अपना दम-खम दिखाकर कौन सत्ता की कुर्सी पर बैठ पाने में सफल हो पाता है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं )