मशहूर ऑस्‍ट्रेलियाई राइटर जरमाइन ग्र‍ियर को बहिष्‍कार का सामना करना पड़ा क्‍योंकि उन्‍होंने कहा था कि ट्रांसजेंडर्स असली महिलाएं नहीं हैं। एक कनाडाई यूनिवर्सिटी में कथित तौर पर संस्‍कृति को नुकसान पहुंचने के डर से योगा क्‍लासेज रद्द करनी पड़ीं। ब्रिटेन के लेबर पार्टी के सांसदों को अपने लीडर जेरेमी कोरबाइन से असहमत होना भारी पड़ा। उन्‍हें सोशल मीडिया पर जमकर लताड़ा गया और जान की धमकियां भी दी गईं। अमेरिका में राष्‍ट्रपति पद के रिपब्‍ल‍िकन प्रत्‍याशी डोनाल्‍ड ट्रंप गैरकानूनी ढंग से देश में रह रहे सभी अप्रवासियों को बाहर खदेड़ देना चाहते हैं। वे मेक्‍स‍िको से सटी सीमा पर बर्लिन वॉल खड़ी करना चाहते हैं। वे संभावित आतंकियों पर नजर रखने के लिए अमेरिका में रह रहे मुस्‍लिमों का एक रजिस्‍टर बनाना चाहते हैं। ट्रंप वही हैं, जिन्‍हें रिपब्‍ल‍िकन पार्टी में बहुत ज्‍यादा समर्थन हासिल है।

पूरी दुनिया में असहिष्‍णुता के एक से बढ़कर एक मामले सामने आ रहे हैं। असहिष्‍णुता को अपनाने में टि्वटर भी मददगार साबित हुआ है। इस पर आप किसी की बेइज्‍जती करके भी गुमनाम रह सकते हैं। आपको 140 शब्‍दों के लिए व्‍याकरण या भाषाई तौर तरीकों की जानकारी होना जरूरी नहीं है। यह चिल्‍लाने से ज्‍यादा प्रभावशाली है। लोगों ने खुद को फेसबुक पर डालकर दूसरों को हमला करने का मौका दिया है। अगर आपके पास गूगल अलर्ट की सर्विस है तो आप कई रातों तक लगातार जागते हुए यह देख सकते हैं कि आपके बारे में क्‍या कहा जा रहा है?

भारत में असहिष्‍णुता की शिकायत वे लोग कर रहे हैं, जो सरकार में किसी तरह का बदलाव नहीं चाहते। हालांकि, सरकार के अलावा काफी कुछ बदल गया है। 70 साल तक एक खास विचारधारा वाली पार्टी के शासन के बाद लोग अब अलग तरीके से सोचने वाले लोगों से चौंकने और परेशान होने लगे हैं। जिन नए लोगों ने कमान संभाली है, वे पुराने कुलीन और विशिष्‍ट लोगों से जरा अलग हैं। भारत को लेकर उनका नजरिया कुछ अलग है। ये लोग खुद को जाहिर करने में काफी आक्रामक हैं। कभी कभी वे बेहद फूहड़ भी हो जाते हैं। ये वे लोग हैं जो गाय की रक्षा कर रहे हैं या उन्‍हें मुस्‍ल‍िमों के इस देश का हिस्‍सा होने को लेकर शक है। हालांकि, वे भी उतने ही भारतीय हैं, जितने कि वे लोग जो इनके सत्‍ता में आने से नाखुश हैं।

भारत विभाजन को लेकर हुए खूनखूराबे के बीच जन्‍मा। धर्म के आधार पर देश की अवधारणा का विरोध कर रही कांग्रेस ने ही आखिर में इस पर मुहर लगाई। जवाहर लाल नेहरू इस बात पर जोर देते रहे कि भारत एक राष्‍ट्र के तौर पर तभी अस्‍त‍ित्‍व में रह सकता है, जब धर्म के आधार पर देश की विचारधारा को खारिज किया जाए। हालांकि, हिंदू राष्‍ट्र की अवधारणा पर भी बहस किए जाने की जरूरत को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। इसका वक्‍त आ चुका है। यह विचार किसी दूसरे ग्रह से नहीं आया। यह विचार अवॉर्ड वापसी या द गार्जियन को लेख लिखने से नहीं खत्‍म होगा। इस पर खुलकर बहस किए जाने की जरूरत है। वे दिन गए जब पीएम जैसा बताते, हम वैसा ही सोचते थे। नरेंद्र मोदी अपनी कैबिनेट को डराकर चुप करा सकते हैं, लेकिन वे इस विचार को चुप नहीं करा सकते।

केंद्र और राज्‍य की सरकारें सिर्फ इतना ही कर सकती हैं कि वे लोगों की अभिव्‍यक्‍त‍ि की आजादी की रक्षा करें और उन्‍हें हिंसक हमलों से बचाएं। वे सुनिश्‍चित करें कि किसी दूसरे एमएफ हुसैन को निर्वासित जीवन न बिताना पड़े। किसी दूसरे सलमान रुश्‍दी पर बैन न लगे। किसी दूसरे तर्कवादी पर हमला न हो। बीजेपी अगर दोबारा से सत्‍ता में आना चाहती है तो उसे ऐसा करना ही होगा।