इस समय जब वैश्विक आर्थिक सुस्ती, इजराइल-फिलिस्तीन युद्ध और रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच वैश्विक व्यापार और निर्यात चुनौतीपूर्ण स्थिति में हैं, तब भारत के लिए वैश्विक व्यापार और निर्यात बढ़ाने के लिए मुक्त व्यापार समझौतों (एफटीए) की अहमियत बढ़ गई है। इस परिप्रेक्ष्य में हाल ही में भारत और चार यूरोपीय देशों के समूह ‘यूरोपियन फ्री ट्रेड एसोसिएशन’ (ईएफटीए) के बीच निवेश और वस्तु तथा सेवाओं के दोतरफा व्यापार को बढ़ावा देने के लिए किया गया मुक्त व्यापार समझौता (एफटीए) अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है। इसे व्यापार और आर्थिक समझौता (टीईपीए) कहा गया है। इस व्यापार समझौते के बाद पेरू, ओमान, ब्रिटेन और यूरोपीय संघ (ईयू) सहित कई देश भारत के साथ व्यापार समझौते की बातचीत को आगे बढ़ाते दिख रहे हैं।
गौरतलब है कि मुक्त व्यापार समझौता दो या दो से अधिक देशों के बीच एक ऐसी व्यवस्था है, जहां वे साझेदार देशों से व्यापार की जाने वाली वस्तुओं पर सीमा शुल्क खत्म कर देते हैं या कम करने पर सहमत होते हैं। इन संधियों के अंतर्गत दस से तीस विषय शामिल होते हैं। दुनिया में साढ़े तीन सौ से अधिक एफटीए वर्तमान में लागू हैं। इनके बीच हाल ही में भारत का ईएफटीए देशों के साथ हुआ एफटीए दुनिया में रेखांकित हो रहा है। 2022-2023 के दौरान ईएफटीए देशों को भारत का निर्यात 1.92 अरब डालर था। वित्तवर्ष 2022-23 के दौरान इन देशों से भारत का कुल आयात 16.74 अरब डालर था। यानी व्यापार घाटा 14.82 अरब डालर हुआ था। ऐसे में ईएफटीए देशों से किया गया एफटीए भारत के निर्यात बढ़ाने में अहम भूमिका निभाएगा।
भारत और ईएफटीए देश व्यापार और निवेश समझौते पर पंद्रह वर्ष से भी लंबे समय से बातचीत कर रहे थे। करीब तेरह दौर की वार्ता के बाद 2013 के अंत में इस पर बातचीत रुक गई थी। इसके बाद 2016 में फिर से वार्ता शुरू हुई और चार दौर की बातचीत के बाद अब यह समझौता धरातल पर आया है। दरअसल, भारत-ईएफटीए, व्यापार समझौता एक मुक्त, निष्पक्ष और समानता वाले व्यापार की प्रतिबद्धता का प्रतीक है। इसके जरिए भारत और ईएफटीए देश आर्थिक रूप से एक-दूसरे के पूरक बन जाएंगे। गौरतलब है कि ईएफटीए देश यूरोपीय संघ (ईयू) का हिस्सा नहीं हैं। यह मुक्त व्यापार को बढ़ाया देने और तेज करने के लिए एक अंतर-सरकारी संगठन है। इसकी स्थापना उन देशों के लिए एक विकल्प के रूप में की गई थी, जो यूरोपीय समुदाय में शामिल नहीं होना चाहते थे।
उल्लेखनीय है कि नए एफटीए के तहत ईएफटीए ने अगले पंद्रह वर्षों में भारत में सौ अरब डालर के निवेश की प्रतिबद्धता जताई है। यह भारत का ऐसे समूह के साथ पहला व्यापार करार है, जिसमें विकसित देश शामिल हैं। ईएफटीए के सदस्य देशों में आइसलैंड, स्विट्जरलैंड, नार्वे और लिकटेंस्टाइन शामिल हैं। इस समझौते में वस्तुओं के व्यापार, उत्पत्ति के नियम, शोध और नवाचार, बौद्धिक संपदा अधिकार (आइपीआर), सेवाओं का व्यापार, निवेश प्रोत्साहन और सहयोग, सरकारी खरीद, व्यापार में तकनीकी बाधाएं और व्यापार सुविधा शामिल हैं। इससे भारत में दस लाख प्रत्यक्ष नौकरियां सृजित होंगी। इसमें व्यापार से ज्यादा निवेश पर जोर दिया गया है। इन चार यूरोपीय देशों से होने वाले भारत के कुल व्यापार में स्विट्जरलैंड की हिस्सेदारी नब्बे फीसद से अधिक है तथा बाकी में अन्य तीनों देश शामिल हैं।
इस समझौते से डिजिटल व्यापार, बैंकिंग, वित्तीय सेवा, फार्मा, टेक्सटाइल जैसे क्षेत्रों में इन चार देशों के बाजार में भारत की पहुंच आसान होगी। इसके बदले भारत भी इन देशों की विभिन्न वस्तुओं के लिए अपने आयात शुल्क कम करेगा। यद्यपि कृषि, डेयरी, सोया और कोयला क्षेत्र को इस व्यापार समझौते से दूर रखा गया है। साथ ही प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (पीएलआइ) योजना से जुड़े क्षेत्रों के लिए भी भारतीय बाजार को नहीं खोला गया है। हरित और पवन ऊर्जा, फार्मा, खाद्य प्रसंस्करण, केमिकल्स के साथ उच्च गुणवत्ता वाली मशीनरी के क्षेत्र में ईएफटीए देश भारत में निवेश करेंगे, जिससे इन क्षेत्रों में हमारा आयात भी कम होगा और भारतीय उत्पादों की गुणवत्ता बढ़ाने में मदद मिलेगी। इससे यूरोप के बड़े बाजार में भारतीय निर्यातकों की पहुंच आसान हो जाएगी। इसी के साथ ईएफटीए देशों को भी भारत के बड़े बाजार तक पहुंच मिली है। भारतीय कंपनियां अपनी आपूर्ति शृंखलाओं को अधिक जुझारू बनाते हुए उनमें विविधता लाने का प्रयास करेंगी। दूसरी तरफ, भारत को ईएफटीए से अधिक विदेशी निवेश मिलेगा और उसे अपनी आर्थिक क्षमता का बेहतर इस्तेमाल करने और रोजगार के अतिरिक्त अवसर पैदा करने में मदद मिलेगी।
गौरतलब है कि 15 नवंबर, 2020 को अस्तित्व में आए दुनिया के सबसे बड़े व्यापार समझौते ‘रीजनल कांप्रिहेंसिव इकोनामिक पार्टनरशिप’ (आरसेप) में भारत ने अपने आर्थिक और कारोबारी हितों के मद्देनजर शामिल होना उचित नहीं समझा था। फिर एफटीए की डगर पर आगे बढ़ने की नई सोच विकसित की गई। इस समय भारत विदेश व्यापार नीति को नया मोड़ देते हुए दुनिया के प्रमुख देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौते की डगर पर तेजी से आगे बढ़ रहा है। इससे दुनिया में यह संदेश जा रहा है कि भारत के दरवाजे वैश्विक व्यापार और कारोबार के लिए तेजी से खुल रहे हैं।
इस समय जब वैश्विक अर्थव्यवस्था मंदी और विकास दर की चुनौतियों से घिरी हुई है, तब दुनिया में सबसे अधिक विकास दर का तमगा हासिल करके भारत मुक्त व्यापार समझौतों के जरिए आगामी वर्षों में निवेश, निर्यात, रोजगार और विकास की तेज रफ्तार की रणनीति के साथ आगे बढ़ रहा है। ऐसे में दुनिया के कई विकसित और विकासशील देश भारत के साथ मुक्त व्यापार समझौते करने के लिए उत्सुक हैं। भारतीय अर्थव्यवस्था को आर्थिक पंख लगे हुए दिखाई दे रहे हैं। घरेलू संरचनात्मक सुधार, विनिर्माण, वैश्विक आर्थिक शृंखला, बुनियादी ढांचे में निवेश और हरित ऊर्जा पर निर्भरता बढ़ने से भारत तेजी से आगे बढ़ रहा है।
भारत में दुनिया की सबसे बड़ी युवा आबादी, सबसे अधिक कौशल प्रशिक्षण के अभियान, बढ़ता सेवा क्षेत्र, बढ़ते निर्यात और अर्थव्यवस्था के बाहरी झटकों से उबरने की क्षमता नए भारत के निर्माण की बुनियाद बन सकती है। प्रवासी भारतीयों द्वारा लगातार प्रति वर्ष अधिक धन भारत को भेजने के साथ भारत को तकनीकी विकास के लिए मदद बढ़ी है। उम्मीद की जानी चाहिए कि भारत के लिए निर्यात बढ़ाने के मद्देनजर जिस तरह से आस्ट्रेलिया और यूएई के साथ किए गए एफटीए लाभप्रद सिद्ध हो रहे हैं, उसी तरह ईएफटीए देशों के साथ किया गया नया समझौता भी निर्यात और वैश्विक व्यापार बढ़ाने में मील का पत्थर साबित होगा। इससे देश से निर्यात बढ़ेंगे और बड़े पैमाने पर रोजगार के नए अवसर सृजित होंगे। उम्मीद है कि ईएफटीए के बाद अब ओमान, ब्रिटेन, कनाडा, दक्षिण अफ्रीका, अमेरिका, इजरायल, खाड़ी देश परिषद और यूरोपीय संघ के साथ भी एफटीए को शीघ्रतापूर्वक अंतिम रूप दिया जा सकेगा।