आधुनिक जीवनशैली में, हमारी जरूरतें और इच्छाएं दोनों ही तेजी से बढ़ रही हैं। चाहे वह व्यंजन हों, कपड़े हों, किराना हो, इलेक्ट्रानिक्स सामान हो या अन्य कोई चीज, हम सभी कुछ तुरत-फुरत अपने हाथों में चाहते हैं। बेहिसाब बढ़ती हुई यह लालसा पूरी करने के लिए आनलाइन खरीदारी और ‘त्वरित डिलीवरी’ यानी जल्दी सामान पहुंचाने वाली सेवाओं का चलन तेजी से अपने पांव पसार रहा है। इस प्रक्रिया के मुख्य नायक हैं वे युवा, जो हमारी पसंद और जरूरत की चीजें अपनी स्कूटी या मोटरसाइकिल से हमारे दरवाजे तक पहुंचाते हैं। मगर क्या हमने कभी सोचा है कि घर तक जल्दी सामान पहुंचाने की इस आपाधापी में ये युवा प्रतिदिन कितना श्रम करते हैं और कितना जोखिम उठाते हैं। उनके सामने कितनी चुनौतियां हैं?
इसमें कोई दोराय नहीं कि अब पूरे देश में सामान पहुंचाने की सेवाओं की मांग लगातार बढ़ रही है। कम से कम समय में सामान उपलब्ध कराने की होड़ मची है। घरों तक सामान पहुंचाने वाले कई वाणिज्य मंच हमारी रोजमर्रा की जिंदगी का अब अभिन्न अंग बन गए हैं। ये अपने ग्राहकों को दस से तीस मिनट में या इससे भी कम समय में घर तक सामान पहुंचाने का आश्वासन देते हैं, जो आज की व्यस्त जीवनशैली में आकर्षक प्रस्ताव है। हालांकि, उपभोक्ताओं के लिए इस सुविधा के वादे के पीछे ‘गिग-वर्कर्स’ का संघर्षपूर्ण जीवन छिपा है, जिन्हें रोज कई घंटे तक लगातार काम करना पड़ता है। उन्हें सड़कों पर जाम से लेकर जल्द सामान पहुंचाने के दबाव में कई बार जान जोखिम में भी डालना पड़ता है। इसके बदले में उन्हें न्यूनतम वेतन मिलता है। इसी में उन्हें गुजारा करना होता है। कड़ी मेहनत के बावजूद ये लोग हमेशा खुद को वित्तीय असुरक्षा के चक्र में फंसा पाते हैं।
सामान पहुंचाने से जुड़े इन कर्मियों का जीवन बेहद कठिन है। उनकी नौकरी सिर्फ सामान पहुंचाने की नहीं होती। दरअसल, यह एक ऐसा चुनौतीपूर्ण कार्य है, जिसमें शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक दबाव भी शामिल होता है। प्रतिदिन उन्हें लंबी अवधि तक काम करना पड़ता है। इस दौरान वे मौसम की बदलती परिस्थितियों का भी सामना करते हैं। चाहे ठिठुरा देने वाली सर्दी हो, कड़ी धूप हो या फिर बारिश। इसके अलावा, उन्हें अपनी सुरक्षा की परवाह किए बिना तेज गति से वाहन चलाना पड़ता है। इस दौरान दुर्घटना का अंदेशा लगातार बना रहता है। इस जोखिम के एवज में उनके पास कोई बीमा नहीं। उनके लिए हर दिन एक युद्ध है। वे जान हथेली पर रख कर चलते हैं। सुबह जल्दी उठते हैं, देर रात तक काम करते हैं। इसके बावजूद वे अपने बुनियादी खर्च पूरे नहीं कर पाते हैं। इनकी यह हालत समाज के एक बड़े तबके के बीच सामाजिक और आर्थिक विषमता की गहरी खाई पैदा कर रही है।
पहले लोग घर के नजदीक किराने की दुकान, जनरल स्टोर आदि तक, झोला हाथ में लटकाए पैदल ही जरूरत का सामान स्वयं लेकर आते थे। मगर अब इनकी जगह स्कूटी सवार उन युवाओं ने ले ली है। वितरण कार्य से जुड़े ये कर्मी वाहनों का असहनीय दबाव झेल रही सड़कों पर सामान लेकर जाते हुए प्राय: दिखते हैं। ऐसे में उनके लिए हमेशा खतरा बना रहता है। कम समय में सामान पहुंचाने का इन पर इतना अधिक दबाव है कि गति सीमा से बाहर जाकर उन्हें सामान पहुंचाना ही होता है। नतीजा इस दौरान यातायात नियमों का उल्लंघन होता है।
महानगरों और शहरों की सड़कों पर बढ़ते वाहन घनत्व के कारण पहले से ही यातायात अस्त-व्यस्त है। वहीं युवा कर्मियों पर कम समय में घरों तक सामान पहुंचाने की चुनौती बहुत बड़ी है। उन पर एक तरह से निरंतर दबाव बना रहता है। पूर्व निर्धारित जगह और समय पर सामान पहुंचाने वाले ये कर्मी ऐसे में लालबत्ती पर रुकने की बजाय आगे बढ़ जाते हैं। कभी गलत दिशा में चलते हैं, तो कभी मजबूरन तेज गति से गाड़ी चलाते हैं। यह स्थिति न केवल उनके लिए, बल्कि सड़कों पर चल रहे अन्य चालकों के लिए भी खतरा बन जाती है। समय के दबाव और अधिक कमाई के फेर में यातायात नियमों की अनदेखी करने के कारण वे कई बार गंभीर दुर्घटनाओं का शिकार बनते हैं। इससे न केवल उनके जीवन को, बल्कि मानसिक स्वास्थ्य दोनों को खतरा बना रहता है।
जल्दी सामान पहुंचाने के दबाव के कारण इन युवा कर्मियों के साथ होने वाली दुर्घटनाएं केवल व्यक्तिगत नुकसान है, बल्कि इसके पीछे एक सामाजिक और आर्थिक संकट भी छिपा है, जो आज तो दिखाई नहीं पड़ रहा है, लेकिन भविष्य में निश्चित ही एक भयावह समस्या के रूप में सामने आएगा। जिसका सामना करने के लिए हम तैयार नहीं होंगे। दूसरी ओर सामाजिक विसंगतियां उपजने से इनकार नहीं किया जा सकता। सेवा क्षेत्र में हम एक ऐसी पीढ़ी तैयार कर रहे हैं, जिनका कोई निश्चित वेतन नहीं। कोई भविष्य निधि नहीं और न ही किसी तरह की पेंशन की सुविधा है। ऐसे में इन युवाओं का क्या भविष्य होगा। स्पष्ट है कि वे न तो आर्थिक रूप से कभी वे मजबूत हो पाएंगे और न ही ढलती उम्र में उनके लिए कोई सामाजिक सुरक्षा होगी।
दुर्घटनाओं का सबसे भयानक परिणाम मृत्यु या स्थायी अपंगता है। जब सामान पहुंचाने के कार्य से जुड़ा कर्मी अपनी जान गंवाता है, तो यह न केवल उसके लिए, बल्कि उसके परिवार के लिए भी एक गंभीर आघात होता है। पीछे छूटे परिवार को न केवल भावनात्मक नुकसान होता है, बल्कि उसे आर्थिक संकट का भी सामना करना पड़ता है। इसके अलावा, स्थायी अपंगता के मामलों में पीड़ित कर्मी को जीवनभर सहायता की आवश्यकता होती है, जिससे उसके परिवार की आर्थिक स्थिति और भी खराब हो सकती है। अपनी असहाय स्थिति के कारण बच्चों की शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं और अन्य आवश्यकताओं की पूर्ति करना उसके लिए एक विकट समस्या बन जाता है। दुखद यह कि वह दूसरों पर मदद के लिए निर्भर हो जाता है।
एक सर्वेक्षण के अनुसार देश में एक करोड़ से अधिक कर्मी इस कार्य में लगे हैं। इतनी बड़ी संख्या में कार्यरत इन कर्मियों की उपेक्षा वस्तुत: बड़े स्तर पर मानव संसाधन को हाशिए पर रखने के समान है। सामाजिक स्तर पर भी इसका प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है। इनके परिवारों को समाज में उपेक्षा का सामना करना पड़ता है। यह स्थिति उनके आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाती है। जब किसी कर्मी के साथ कोई हादसा होता है, तो ऐसे में उन्हें अपने जीवन को फिर से संवारने के लिए संघर्ष करना पड़ता है। दबाव न सह पाने पर उनके कदम अनैतिक कार्यों और अपराध की ओर भी बढ़ सकते हैं, जिसके दूरगामी परिणाम भोगने पड़ सकते हैं।
ऐसे सभी कर्मियों की सुरक्षा और कल्याण के प्रति जागरूकता बढ़ाना अत्यंत आवश्यक है। बेहतर होगा कि घरों तक जल्दी सामान पहुंचाने के जुनून को थोड़ा कम किया जाए, जिससे युवा कर्मियों को सुरक्षित वातावरण मिल सके। यह न केवल उनके लिए, बल्कि उनके परिवारों और समाज के लिए भी आवश्यक है। दरअसल, हमें एक ऐसा समाज बनाना चाहिए, जहां हर व्यक्ति को सुरक्षा, सम्मान और सही तरीके से काम करने का अवसर मिले।