पूर्वोत्तर भारत का एक शांत और खूबसूरत राज्य है मणिपुर, जिसकी राजधानी है इंफाल। मणिपुर का अर्थ मणि की धरती अथवा रत्नों की भूमि। मणिपुर के पड़ोसी राज्यों-उत्तर में नगालैंड, दक्षिण में मिजोरम, पश्चिम में असम और पूर्व में इसकी सीमा म्यांमार से मिलती है। इसका क्षेत्रफल 22,347 वर्ग कि.मी (8,628 वर्ग मील) है। यहां के मूल निवासी मैतै जनजाति के लोग हैं, जो यहां के घाटी क्षेत्र में रहते हैं। इनकी भाषा मेइतिलोन है, जिसे मणिपुरी भाषा भी कहते हैं। इस भाषा को 1992 में भारत के संविधान की आठवीं अनुसूची में जोड़ी गई है और इस प्रकार इसे एक राष्ट्रीय भाषा का दर्जा प्राप्त हो गया है।
यहां के पर्वतीय क्षेत्रों में नागा व कुकी जनजाति के लोग रहते हैं। मणिपुर को एक संवेदनशील सीमावर्ती राज्य माना जाता है। राज्य का सबसे बड़ा शहर राज्य की राजधानी इंफाल ही है। इसे पूर्ण राज्य का दर्जा 21 जनवरी, 1972 को मिला। मणिपुर में विधानसभा की 60 सीटें हैं तथा लोकसभा के दो व राज्यसभा के एक सदस्य होते हैं। मणिपुर पर्यटन के लिए शांत और खूबसूरत राज्यों में गिना जाता है।
फूंके जा रहे हैं भाजपा नेताओं के घर, की जा रही हैं हत्याएं
इस शांत और खूबसूरत प्रदेश को पता नहीं किसकी नजर लग गई कि अब वहां भाजपा नेताओं के घर फूंके जा रहे हैं, हत्याएं की जा रही है, आगजनी की जा रही है। पिछले दिनों वन व बिजली विभाग के मंत्री थोंगन विश्वजीत सिंह के कार्यालय में आग लगा दी गई, घर में भी आग लगाने का प्रयास किया गया। इंफाल की महिला इकाई की अध्यक्ष शारदा देवी के आवास पर तोड़फोड़ व आगजनी की कोशिश की गई। राज्य में कई स्थानों पर फायरिंग करने की घटना हुई है। राज्य के 11 जिलों में कर्फ्यू लगाकर इंटरनेट सेवा को बंद कर दिया गया है। केंद्रीय राज्यमंत्री आरके रंजन सिंह के घर पर हमला कर उसे जलाने का प्रयास किया गया। पिछले लगभग एक महीने से हिंसा में काफी लोग मारे जा चुके हैं। केंद्रीय सरकार हिंसा रोकने के हर संभव प्रयास कर रही है। इसके लिए गृहमंत्री बार-बार वहां का दौरा भी कर रहे हैं, लेकिन अब तक हिंसा रोकने में सफल नहीं हुए हैं।
ज्ञात हो मणिपुर में कुकी और मैती समुदाय के बीच शुरू हुए तनाव के बाद लगातार हिंसा का दौर जारी है। अब तक 100 से ज्यादा लोगों की इस हिंसा में मौत हो चुकी है और हजारों विस्थापित हुए हैं। आखिर ऐसी स्थिति आई क्यों? क्यों सुलग रहा है नॉर्थ ईस्ट का गहना? देखा जाए तो मणिपुर में हिंसा का लंबा इतिहास रहा है। इस इतिहास में उसके भूगोल की भी अपनी भूमिका है। उसके अलावा वहां के सामाजिक ताने-बाने, बुनावट को समझे बगैर मौजूदा हिंसा की वजह भी नहीं समझी जा सकती। तो आइए इतिहास, भूगोल और सामाजिक ताने-बाने के आईने में मणिपुर में चल रही हिंसा की वजह समझते हैं।
पूर्वोत्तर के इस राज्य में तीन प्रमुख समुदाय हैं- बहुसंख्यक मैती और दो आदिवासी समुदाय- कुकी और नागा। इनके बीच आपसी अविश्वास का इतिहास रहा है। राज्य की कुल आबादी में मैती की हिस्सेदारी 53 प्रतिशत है, यानी आधे से अधिक। यह आर्थिक और राजनीतिक तौर पर मणिपुर का सबसे प्रभावशाली समुदाय है। राज्य की 40 प्रतिशत आबादी कुकी और नागा की है। मैती सूबे के मैदानी इलाकों, इंफाल घाटी में हैं। कुकी और नागा आदिवासी इंफाल घाटी से सटे पहाड़ी इलाकों में रहते हैं। ये इलाके लंबे समय से उग्रवादी गतिविधियों के केंद्र रहे हैं।
एक समय तो ऐसा भी था कि तकरीबन 60 हथियारबंद उग्रवादी समूह इस इलाके में सक्रिय थे। मणिपुर के कुल क्षेत्रफल का महज 10 प्रतिशत मैदानी इलाका है, जो इंफाल घाटी में है और बहुत उपजाऊ है। राज्य का 90 प्रतिशत हिस्सा पहाड़ी इलाका है। मैती आर्थिक और राजनीतिक तौर पर सबसे प्रभावशाली और ताकतवर हैं। राज्य में किसी भी पार्टी की सरकार हो, दबदबा मैती का ही होता है। मौजूदा मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह भी इसी समुदाय से हैं। कुकी और नागा समुदाय सरकार पर खुद के साथ सौतेला व्यवहार अपनाने का आरोप लगाते हैं।
पिछले दिनों, मणिपुर के विभिन्न जिलों से हिंसा, आगजनी और हाथापाई की खबरें सामने आई हैं, जिनमें चुराचंदपुर, इंफाल पूर्व, इंफाल पश्चिम, बिष्णुपुर, तेंगनौपाल और कांगपोकपी शामिल हैं। मणिपुर सरकार द्वारा जिलाधिकारियों को देखते ही गोली मारने के आदेश जारी करने के लिए अधिकृत किया गया था। ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन मणिपुर (ATSUM) ने हाल ही में मणिपुर उच्च न्यायालय के आदेश का विरोध करते हुए सभी जिलों में एकजुटता मार्च आयोजित करने के बाद 3 मई को हिंसा शुरू हुई थी, जिसने मणिपुर राज्य सरकार की मांग के संबंध में केंद्र को एक सिफारिश भेजने के लिए कहा था। मैती समुदाय को अनुसूचित जनजाति (ST) सूची में शामिल करें। 4 मई को, हिंसा बढ़ने पर, केंद्र ने संविधान के अनुच्छेद 355 को लागू किया, जो आपातकालीन प्रावधानों का एक हिस्सा है। यह केंद्र को बाहरी आक्रमण या आंतरिक गड़बड़ी के खिलाफ राज्य की रक्षा के लिए आवश्यक कदम उठाने का अधिकार देता है।
पिछले कुछ दिनों में, सेना, असम राइफल्स, रैपिड एक्शन फोर्स और स्थानीय पुलिस कर्मियों से संबंधित ट्रकों के काफिले ने राज्य कई प्रभावित क्षेत्रों में प्रवेश किया। अब तक दर्जनों लोगों के मारे जाने, सैकड़ों के घायल होने और अन्य लोगों के अलावा कुकी और मैती समुदायों के 9,000 से अधिक लोगों के विस्थापित होने की सूचना है। भवन, घर और वाहनों सहित अन्य संपत्तियां नष्ट हो गई हैं। मरने वालों की संख्या की अभी तक कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है। मणिपुर में हिंसा की जांच के लिए रिटायर्ड जजों की अध्यक्षता में न्यायिक आयोग बनेगा। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इसका ऐलान किया है। बता दें कि अमित शाह मणिपुर के तीन दिवसीय दौरे पर गए थे। इस दौरान उन्होंने कई बैठकें कीं, जिसमें हिंसा को रोकने पर चर्चा हुई।

मणिपुर में डबल इंजन, अर्थात राज्य में भी भाजपा की सरकार और केंद्र में शक्तिशाली भाजपा की सरकार तो है ही, लेकिन कुछ समय से जिस प्रकार हत्याएं, आगजनी हो रही हैं और परिणाम स्वरूप सौ निरीह जनता को अपने प्राण गंवाने पड़े हैं, उसे शांत करने के लिए कोई कारगर उपाय क्यों नहीं हो पा रहा है? पिछले महीने 3 मई को ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन (एटीएसयूएन) द्वारा निकाली गई “आदिवासी एकता रैली” के बाद फैली इस हिंसा ने राज्य को हर ओर से अपनी चपेट में ले लिया है। देश के गृह मंत्री से लेकर, गृह राज्य मंत्री, सीडीएस और तमाम हाईप्रोफाइल लोगों की मौजूदगी के बाद भी सरकार अब तक हिंसा रोकने में सफल नहीं हो पाई है।
जब राज्य में इतने बड़े नेताओं और प्रशासनिक अधिकारियों की मौजूदगी के बाद भी हिंसा नहीं रुक रही हो, तो सरकार की मंशा पर सवाल उठना लाजिमी है। क्या सरकार सच में हिंसा को रोकने के लिए गंभीर है? और, अगर गंभीर है तो वह उसे रोकने में कामयाब क्यों नहीं हो पा रही है? हिंसा शुरू होने के एक महीने बाद भी वह उसे नियंत्रित करने में सक्षम क्यों नहीं दिख रही है? आइए इन तमाम सवालों के जवाब जानने का प्रयास करते हैं। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले एक महीने में भीड़ द्वारा करीब 4000 हथियार और पांच लाख राउंड कारतूस लूट लिए गए हैं।
अब तक हिंसा से संबंधित मामलों में कुल 3,734 प्राथमिकी दर्ज की गई हैं और हिंसा भड़काने के जुर्म में 68 लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है 310 लोग घायल हो चुके हैं। वहीं 37,000 से भी अधिक लोगों को हिंसा से बचने के लिए अपना घर छोड़कर सुरक्षित स्थानों पर शरण लेनी पड़ी है।
यह स्थिति बहुत ही दुखद है कि प्रायः रोज कुछ-न-कुछ ऐसी घटना मणिपुर में घट रही है, जो शर्मनाक है। कहा यह जाता है कि इतना कुछ होने के बाद भी प्रधानमंत्री ने पूर्वोत्तर के इस गहने की हिंसा को रोकने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया और न ही राज्य की पीड़ितों के लिए कोई संदेश दिया कि हिंसा रोकी जाए और राज्य में अमन-चैन वापस लौट आए। अब ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि प्रधानमंत्री अमेरिका की यात्रा पर जा रहे हैं, लेकिन उनके पीछे जिन्हें हिंसा रोकने के लिए अधिकृत किया जा रहा है, उनकी ऐसी छवि नहीं है कि वे इस जलते राज्य में शांति-व्यवस्था वापस कायम करा सकें।
वैसे, हिंसा किसी समस्या का समाधान नहीं होता है, लेकिन आक्रोश में उतावले इस बात को सोच नहीं पाते, जिसके कारण अपने निज के नुकसान के साथ साथ राष्ट्र का भी अहित कर जाते हैं। हिंसा कभी समस्याएं नहीं सुलझाती, प्रश्न हल नहीं होते। हिंसा के विराट विध्वंस से मानव जाति की पीढ़ियों के हृदय में संजोए स्वप्न भंग हो सकते हैं। जीवन के मूल अर्थ को खोजते हुए सभ्रम के काले पुट उसकी बुद्धि को घेर सकते हैं।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं)