योगेश कुमार गोयल
बरसात के इस मौसम में डेंगू के साथ-साथ मलेरिया के मरीजों की संख्या भी तेजी से बढ़ रही है। दरअसल, मलेरिया गंदगी वाले क्षेत्रों तथा नम इलाकों में बहुत तेजी से पैर पसारता है। ऐसे क्षेत्रों में लोगों को प्राय: इसकी अनदेखी का बड़ा खमियाजा भुगतना पड़ता है। दुनिया भर में कई देश इस जानलेवा बीमारी से लड़ रहे हैं। विश्व की स्वास्थ्य समस्याओं में मलेरिया अब भी एक गंभीर चुनौती बना हुआ है। विश्व स्वास्थ्य संगठन का मानना है कि मलेरिया नियंत्रण कार्यक्रम चला कर दुनिया भर में बहुत लोगों की जान बचाई जा सकती हैं। हालांकि विगत दो दशकों में हुए तीव्र वैज्ञानिक विकास और मलेरिया उन्मूलन के लिए चलाए गए वैश्विक कार्यक्रमों के कारण इस बीमारी के आंकड़ों में कमी आई है, लेकिन इस पर अब भी पूर्ण रूप से नियंत्रण नहीं पाया जा सका है।
2017 में वैश्विक स्तर पर 21.9 करोड़ से भी ज्यादा मलेरिया के मामले सामने आए
संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक हर साल दुनिया भर में मलेरिया के बीस करोड़ से भी ज्यादा नए मामले दर्ज किए जाते हैं। इनमें से कई लाख लोगों की मौत हो जाती है। मलेरिया दुनिया की सबसे घातक परजीवी बीमारियों में से एक है। 2017 में वैश्विक स्तर पर 21.9 करोड़ से भी ज्यादा इसके मामले सामने आए थे और करीब 4.35 लाख लोगों की मौत हो गई थी। वैसे माना जाता है कि प्रतिवर्ष मलेरिया से दो सौ करोड़ लोगों को खतरा है, जिनमें 90 करोड़ स्थानिक देशों के निवासी और 12.5 करोड़ अंतरराष्ट्रीय पर्यटक शामिल हैं। इसके अधिकांश रोगी उपचार के बाद जल्दी ठीक हो जाते हैं, लेकिन अगर उपचार में देरी की जाए तो कोमा या मृत्यु जैसी गंभीर जटिलताएं हो सकती हैं।
शून्य मलेरिया वाले देशों की संख्या भी बढ़ रही है
हालांकि शून्य मलेरिया के महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य को हासिल करने के बारे में संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि ऐसे देशों की संख्या अब निरंतर बढ़ रही है, जो मलेरिया उन्मूलन के लक्ष्य के निकट पहुंच रहे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2000 से 2019 के बीच मलेरिया के सौ से भी कम मामले वाले देशों की संख्या छह से बढ़ कर सत्ताईस हो गई। किसी भी देश को आधिकारिक रूप से मलेरिया-मुक्त राष्ट्र की मान्यता डब्लूएचओ द्वारा तभी प्रदान की जाती है, जब वह तथ्यात्मक रूप से प्रमाणित करे कि उस देश में पाए जाने वाले मलेरिया संचरण के मामलों की संख्या राष्ट्रव्यापी स्तर पर पिछले कम से कम तीन वर्षों तक शून्य रही है।
भारत में 2020 में 27 से 59 लाख के बीच मामलों का अनुमान लगाया गया था
भारत के संदर्भ में देखें तो विश्व स्वास्थ्य संगठन ने ‘विश्व मलेरिया रपट 2021’ में भारत में 2020 में 27 से 59 लाख के बीच मामलों का अनुमान लगाया गया था, जबकि भारत सरकार के आधिकारिक आंकड़ों में यह संख्या महज 1.87 लाख दिखाई गई थी। 2017-18 में स्वास्थ्य पर राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण के आंकड़ों के मुताबिक करीब सत्तर फीसद आबादी निजी क्षेत्र में निदान और उपचार प्राप्त करती है। मलेरिया के आंकड़ों में इस विसंगति का एक संभावित कारण यह भी हो सकता है।
भारत में 2016 में मलेरिया के 10.09 लाख मामले दर्ज किए गए थे, जबकि देशभर में करीब 626.1 करोड़ रुपए की मलेरिया-रोधी दवाओं की बिक्री हुई थी, जो आधिकारिक रूप से जाहिर किए गए आंकड़ों की तुलना में बहुत ज्यादा थी। विश्व मलेरिया रपट 2022 के अनुसार भारत में मलेरिया के सभी मामलों का लगभग 79 फीसद हिस्सा है और दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्र में 83 फीसद मौतें होती हैं।
डब्लूएचओ का अनुमान है कि मलेरिया के कारण भारत का सामाजिक-आर्थिक बोझ करीब दो अरब अमेरिकी डालर है, जो इस बीमारी की तीव्रता और इसे समाप्त करने की तत्काल आवश्यकता को रेखांकित करता है। 2015 में पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री ने 2030 तक भारत को मलेरिया मुक्त बनाने का संकल्प लिया था, जिसके बाद देश के स्वास्थ्य तंत्र को गति प्रदान करते हुए इस बीमारी को नियंत्रित करने के निरंतर प्रयास हो रहे हैं, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि 2030 तक मलेरिया उन्मूलन के इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए भारत में 2027 तक मलेरिया के शून्य मामले होने चाहिए तथा डब्लूएचओ द्वारा उन्मूलन का आधिकारिक प्रमाणीकरण प्राप्त करने के लिए निरंतर तीन वर्ष तक ऐसे शून्य मामलों को बनाए रखना होगा।
माना जाता है कि यह बीमारी सबसे पहले चीन में पाई गई थी।
गंदगी से यह बीमारी पनपने के कारण उस समय इसे ‘दलदली बुखार’ कहा जाता था। मलेरिया ‘एनोफेलीज’ मादा मच्छर के काटने से होता है, जो ‘प्लास्मोडियम’ परजीवी से संक्रमित होता है और जब यह मच्छर किसी को काटता है तो ये परजीवी मानव रक्त में प्रवेश करके लिवर यानी यकृत तथा लाल रक्त कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाने लगते हैं। गर्मी और मानूसन के दौरान मच्छरों की संख्या काफी बढ़ जाती है, इसलिए मलेरिया आमतौर पर इन्हीं मौसम में सबसे ज्यादा होता है।
स्वास्थ्य विशेषज्ञों के मुताबिक कई मलेरिया बहुत खतरनाक होते हैं, जिससे मरीज की मौत हो जाती है। भारत में ‘रेजिस्टेंट मलेरिया’ का क्षेत्र है। इसके अलावा ‘फैल्सीपेरम’ मलेरिया और ज्यादा खतरनाक होता है, जिसमें रक्तचाप कम हो सकता है, गुर्दे और यकृत काम करना बंद कर सकते हैं तथा मरीज कोमा में जा सकता है। इसमें मरीज को शीघ्र उचित इलाज न मिले तो उसकी मौत भी हो सकती है।
वैसे मलेरिया बुखार पांच प्रकार का होता है- लास्मोडियम फैल्सीपैरम, सोडियम विवैक्स, प्लाज्मोडियम ओवेल मलेरिया, प्लास्मोडियम मलेरिया तथा प्लास्मोडियम नोलेसी। प्लास्मोडियम फैल्सीपैरम में पीड़ित व्यक्ति एकदम बेसुध हो जाता है। इस बुखार में निरंतर उल्टियां होने से व्यक्ति की जान भी जा सकती है। सोडियम विवैक्स में मच्छर बिनाइन टर्शियन मलेरिया पैदा करता है, जो अड़तालीस घंटों के बाद अपना असर दिखाना शुरू करता है। प्लास्मोडियम मलेरिया एक प्रकार का प्रोटोजोआ है, जो बेनाइन मलेरिया के लिए जिम्मेदार होता है। इस रोग में क्वार्टन मलेरिया उत्पन्न होता है, जिसमें मरीज को हर चौथे दिन बुखार आ जाता है। रोगी के शरीर में प्रोटीन की कमी होकर सूजन आ जाती है।
मलेरिया होने पर प्राय: तेज बुखार, सिरदर्द, मांसपेशियों में दर्द, हाथ-पैरों में दर्द, छाती और पेट में तेज दर्द, घबराहट, अत्यधिक पसीना आना, जी मिचलाना, उल्टी होना, शरीर में ऐंठन, खांसी आना, अत्यधिक ठंड लगना, मल के साथ रक्त आना, कमजोरी आदि लक्षण उभरते हैं। इन लक्षणों को ज्यादा समय तक नजरअंदाज करना स्थिति को गंभीर बना सकता है। वैसे तो मलेरिया के लक्षण चौबीस से अड़तालीस घंटे में ही नजर आ सकते हैं, लेकिन मलेरिया के परजीवी कई बार शरीर में लंबे समय तक सुप्त पड़े रहते हैं। ऐसे में संक्रमण के बाद मलेरिया के लक्षण दस दिनों से चार सप्ताह में भी विकसित हो सकते हैं और कई बार यह समय और ज्यादा हो सकता है।
अगर साधारण मलेरिया हुआ तो सही इलाज से मरीज तीन से पांच दिन में ठीक हो सकता है, लेकिन अगर ‘सीवियर फैल्सीपेरम मलेरिया’ हुआ तो समय पर और सही इलाज न मिलने पर मरीज की मौत भी हो सकती है। वैसे तो वैश्विक स्तर पर मलेरिया के मामलों में गिरावट आ रही है, फिर भी सार्वजनिक स्वास्थ्य पर पड़ता इसका गंभीर प्रभाव चिंताजनक बना हुआ है।
निरंतर वित्तपोषण, निगरानी प्रणाली, सामुदायिक संपर्क और संवाद ही सफलता की कुंजी हैं। विश्व के मलेरिया-मुक्त भविष्य की संभावना को लेकर संयुक्त राष्ट्र का स्पष्ट कहना है कि ठोस राजनीतिक संकल्प, पर्याप्त निवेश और रणनीतियों के उचित मिश्रण से ही मलेरिया को हराया जा सकता है।
