इस वर्ष देश की करीब नब्बे करोड़ आबादी इंटरनेट से जुड़ जाएगी। मगर बड़ा सवाल यह है कि साइबर सुरक्षा को लेकर जागरूकता का स्तर कहां तक विकसित हो पाया है। हालांकि, वैश्विक साइबर सुरक्षा सूचकांक-2024 के पांचवें संस्करण में भारत ने ‘टियर-1’ का दर्जा प्राप्त कर एक बड़ी उपलब्धि तो हासिल की है, मगर चुनौतियां भी लगातार बढ़ रही हैं। वर्षों पहले साइबर अपराध की बढ़ती स्थिति और इलेक्ट्रानिक प्रणाली से गतिमान संदर्भ को देखते हुए यह अनुमान लगा लिया गया था कि देश में साइबर सुरक्षा से जुड़े रोजगार में बढ़ोतरी होगी।

सरकार को साइबर सुरक्षा के मसले पर सख्त नियम और कानून तैयार करने होंगे। आज इंटरनेट हमारे दैनिक जीवन का अभिन्न अंग बन गया है और जीवन के सभी पहलुओं को कमोबेश प्रभावित कर रहा है। साइबर जागरूकता और सावधानी इसका प्राथमिक बचाव है, मगर जिस देश में (2011 की जनगणना के अनुसार) हर चौथा व्यक्ति अशिक्षित या अल्पशिक्षित हो, वहां साइबर शिक्षा कितनी सबल होगी, यह समझना कठिन नहीं है। किसी को आनलाइन परेशान करना, बौद्धिक संपदा की चोरी, वायरस, भयादोहन और फिरौती समेत कई ऐसे प्रारूप हैं, जो अपराध के लिहाज से परेशानी का सबब हैं।

वर्ष 2013 से पहले भारत में कोई स्पष्ट साइबर नीति नहीं थी

इस वर्ष बजट सत्र के दौरान राज्यसभा में साइबर हमले को लेकर पूछे गए एक सवाल के जवाब में बताया गया था कि वर्ष 2020 से 2024 तक साइबर सुरक्षा से जुड़ी घटनाओं की संख्या में लगभग 76.25 फीसद की वृद्धि हुई है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, देश में साइबर हमलों की संख्या वर्ष 2022 में 13.91 लाख थी, जो 2023 में बढ़कर 15.92 लाख हो गई और 2024 में यह आंकड़ा 20.41 लाख तक पहुंचा। इस वर्ष के अंत तक यह आंकड़ा और बढ़ सकता है। वर्ष 2013 से पहले भारत में कोई स्पष्ट साइबर नीति नहीं थी, मगर अब ऐसा नहीं है। राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा नीति 2020 सुरक्षा और जागरूकता में सुधार लाने की इच्छा से युक्त है। इसी वर्ष भारतीय साइबर अपराध समन्वयक केंद्र की स्थापना की गई, जबकि 2017 में साइबर स्वच्छता केंद्र और 2018 में साइबर सुरक्षित भारत पहल जैसी कवायद शुरू हुई थी।

गौरतलब है कि भारत ने अमेरिका, रूस, यूरोपीय संघ और ब्रिटेन जैसे देशों के साथ साइबर सुरक्षा संबंधी कई संधियों पर दस्तखत किए हैं। डिजिटल दुनिया में आपसी सीमाएं कम होती जा रही हैं। ऐसे में एक मजबूत वैश्विक शासन प्रणाली साइबर खतरों से निपटने के लिए कारगर हो सकती है। यह इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि इससे सुनिश्चित हो पाएगा कि विभिन्न देशों और क्षेत्रों में साइबर सुरक्षा के लिए एक समान दृष्टिकोण हो और सभी हितधारक एक साथ मिलकर काम करें, ताकि एक सुरक्षित आनलाइन वातावरण बनाया जा सके।

What will happen if Google shuts down: अगर Google अचानक बंद हो जाए, तब क्या होगा? डिजिटल दुनिया की डरावनी कल्पना

वर्ष 2024 में भारत में साइबर धोखाधड़ी के मामलों में चार गुना वृद्धि हुई, जो हर रोज करोड़ों डिजिटल वित्तीय लेनदेन वाले देश में बढ़ते जोखिमों को रेखांकित करता है। मार्च 2025 में वित्त मंत्रालय द्वारा संसद में प्रस्तुत आंकड़ों से यह भी पता चला है कि मार्च 2024 को समाप्त वित्तवर्ष में लोगों ने धोखाधड़ी में कुल 2.03 करोड़ डालर खो दिए, जो वित्तवर्ष 2023 की राशि से दोगुने से भी अधिक है। ऐसे मामलों की कुल संख्या जहां राशि एक लाख रुपए या उससे अधिक थी, पिछले वर्ष 6,699 से बढ़कर 29,082 हो गई।

ऐसा नहीं है कि साइबर हमले और उसके नुकसान में भारत अकेला देश है। सच्चाई यह है कि इसकी मार से सभी देश त्रस्त हैं और नित नए मरहम की खोज में लगे हैं। संघीय जांच ब्यूरो (एफबीआइ) की नवीनतम साइबर अपराध रपट के अनुसार, वर्ष 2024 में साइबर अपराध के कारण अमेरिका में अनुमानित 16.6 अरब डालर का नुकसान हुआ, जो वर्ष 2023 में दर्ज 12.5 अरब डालर से 33 फीसद अधिक है। वहीं, साइबर अपराध के कारण यूरोप को प्रतिवर्ष खरबों डालर का नुकसान होता है।

‘Jio मेरे लिए सबसे बड़ा जोखिम था…’, रिलायंस ग्रुप के चेयरमैन मुकेश अंबानी ने ऐसा क्यों कहा?

पिछले साल जर्मन कंपनियों ने तो साइबर अपराध के कारण 266.6 अरब यूरो खो दिए और ब्रिटेन में व्यवसायियों को वर्ष 2021 में साइबर अपराध के कारण अनुमानित 73.6 करोड़ पाउंड का नुकसान हआ। वैसे विश्व आर्थिक मंच के ग्लोबल साइबर सिक्योरिटी आउटलुक जनवरी 2025 की रपट पर नजर डालें तो इसमें भू-राजनीतिक तनाव, अप्रचलित प्रणालियों और साइबर सुरक्षा कौशल के अभाव के चलते महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढांचों पर बढ़ते साइबर खतरे को समझा जा सकता है।

Smartphone Security: मोबाइल को रखना है सेफ और सिक्योर तो आज ही कर लें ये 7 काम, जान लें सबकुछ

साइबर हमले से शायद ही कोई देश बच पाया हो। ऐसे में वैश्विक शासन का दृष्टिकोण कुछ हद तक आवश्यक प्रतीत होता है। वैश्विक शासन का आशय अंतरराष्ट्रीय सहयोग और विभिन्न मुद्दों पर नियमों, मानदंडों, और प्रक्रियाओं की एक प्रणाली से है, जो राष्ट्रीय सीमाओं को न केवल पार करती है, बल्कि यह आर्थिक विकास, व्यापार, मानवाधिकार, शांति व सुरक्षा और पर्यावरण संरक्षण जैसे मुद्दों का समाधान निकालने का मार्ग प्रशस्त करता हो। जाहिर है, ऐसे में साइबर सुरक्षा को भी सूचीबद्ध किया जा सकता है, जो वैश्विक चुनौतियों का रूप ले चुका है।

यह तय है कि देश में जैसे-जैसे डिजिटलीकरण का दायरा बढ़ता जाएगा, वैसे-वैसे साइबर सुरक्षा संबंधी चुनौतियां भी बढ़ती जाएंगी। डेटा चोरी और वित्तीय धोखाधड़ी साइबर अपराध के बड़े आधार बन गए हैं। शायद यही कारण है कि रोजगार के नए अवसर में आनलाइन निजी जानकारी की सुरक्षा और नेटवर्क सुरक्षा के विशेषज्ञों की मांग तेजी से बढ़ी है। देखा जाए तो साइबर सुरक्षा का बाजार भी बड़ा आकार लेता जा रहा है। एक रपट से यह पता चलता है कि इस बाजार का आकार वर्ष 2021 में 220 करोड़ का था, जिसके 2027 तक 350 करोड़ तक पहुंचने का अनुमान है। देखा जाए तो 2021 में साइबर हमलों में भारत का विश्व में दूसरा स्थान था और 2022 में इसे लेकर 14 लाख मामले दर्ज किए गए थे। अब तो ये आंकड़े और बड़ा रूप ले चुके हैं। विज्ञान और तकनीक ने जो मुकाम हासिल किया है, उसमें सब कुछ उजला ही नहीं है, कुछ उसके स्याह पक्ष भी हैं, साइबर अपराध इसी का एक नतीजा है।

मौजूदा दौर में ई-गवर्नेंस को बड़े पैमाने पर महत्त्व दिया जा रहा है। इंटरनेट संपर्क या ‘कनेक्टिविटी’ 5-जी से 6-जी की ओर कदम बढ़ा चुकी है। पढ़ाई-लिखाई से लेकर चिकित्सा और अदालती व्यवस्थाओं में इंटरनेट का पूरा समावेश देखा जा सकता है। ई-बैंकिंग समेत दर्जनों प्रकार की इलेक्ट्रानिक विधाओं से युक्त क्रियाकलापों को जमीन पर उतारा गया है। लेन-देन की प्रक्रिया का व्यापक स्तर पर डिजिटलीकरण किया जा रहा है। मगर साइबर सुरक्षा को लेकर चिंता लगातार बढ़ रही है। ऐसे में यह सोचना होगा कि साइबर सुरक्षा की जिम्मेदारी केवल पुलिस के साइबर सेल और सरकार पर नहीं छोड़ना चाहिए, बल्कि जन मानस को खुद को भी जागरूकता और सावधानी का स्तर बढ़ा लेना चाहिए।