हाल ही में अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष की उप-प्रबंध निदेशक ने कहा कि भारत हालांकि 2027 तक दुनिया की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा, लेकिन विकसित भारत के लक्ष्य तक पहुंचने के लिए उसे तेज सुधारों के साथ आगे बढ़ना होगा। इसी तरह विश्व बैंक ने अपनी ताजा रपट में कहा कि भारत का वर्ष 2047 तक विकसित देश बनाने का संकल्प बहुत चुनौतीपूर्ण है। भारत को मध्य आय के जाल से बाहर निकालना होगा। यह संकल्प कितना चुनौतीपूर्ण है, इसका अंदाजा पिछले दिनों नीति आयोग द्वारा प्रस्तुत, वर्ष 2047 तक विकसित भारत बनाने के, दृष्टि-पत्र से लगाया जा सकता है।
देश की जीडीपी 3.36 लाख करोड़ डालर है, उसे नौ गुना बढ़ाना होगा
इसमें कहा गया है कि भारत को विकसित देश बनने के लिए 2047 तक 18,000 अमेरिकी डालर की प्रति व्यक्ति वार्षिक आय के साथ 30 लाख करोड़ अमेरिकी डालर की अर्थव्यवस्था बनने की आवश्यकता है। इसके मद्देनजर इस समय भारत की जो प्रति व्यक्ति आय करीब 2392 डालर है, उसे करीब आठ गुना बढ़ाना होगा तथा इस समय देश की जो जीडीपी 3.36 लाख करोड़ डालर है, उसे नौ गुना बढ़ाना होगा। गौरतलब है कि 25 अगस्त को प्रधानमंत्री ने मन की बात में कहा कि विकसित भारत की नींव मजबूत हो रही है। उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता संग्राम के दौरान जिस तरह की भावना देशवासियों ने दिखाई थी, विकसित भारत के लक्ष्य को हासिल करने के लिए फिर से वैसी देशभक्ति से परिपूर्ण भावनाएं दिखाने की जरूरत है।
देश को विकसित बनाने के लिए कई अनुकूलताएं भारत के पास हैं
यह भी उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री ने स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर देश को संबोधित करते हुए वर्ष 2047 तक विकसित भारत बनाने के अपने संकल्प को दोहराया। उन्होंने कहा कि देश को विकसित बनाने के लिए कई अनुकूलताएं भारत के पास हैं। इस वक्त प्रति व्यक्ति आय के साथ एक विकसित देश बनने की सभी संभावनाएं हैं। यह एक ऐसा भारत है जिसकी सामाजिक, सांस्कृतिक, तकनीकी और संस्थागत विशेषताएं इसे एक समृद्ध विरासत के साथ विकसित राष्ट्र के रूप में चिह्नित करेंगी। प्रधानमंत्री ने गांवों से गरीबी खत्म करने का लक्ष्य तय करने और जिलों को विकास का वाहक बनाने का आह्वान किया।
निस्संदेह विकसित भारत का संकल्प चुनौतीपूर्ण है, लेकिन असंभव नहीं है। इसमें भी कोई दो मत नहीं कि भारत इस डगर पर रणनीतिक रूप से आगे बढ़ना भी शुरू कर दिया है। वर्ष 2024-25 का आम बजट विकसित भारत के सपने को पूरा करने के मद्देनजर नींव का पत्थर है। इस बजट में विकसित भारत के लिए नौ प्राथमिकताओं को रेखांकित किया गया है। इनमें कृषि उत्पादकता, रोजगार और कौशल, समावेशी मानव संसाधन विकास तथा सामाजिक न्याय, विनिर्माण विकास तथा सेवाएं, शहरी विकास, ऊर्जा सुरक्षा, बुनियादी ढांचा तथा अनुसंधान और नवाचार तथा अगली पीढ़ी के सुधार शामिल हैं। इसमें उद्योग-कारोबार, श्रम, कृषि, एमएसएमई, कराधान, शिक्षा, स्वास्थ्य, उपभोक्ता, आधारभूत ढांचा, वित्त क्षेत्र आदि विभिन्न पक्षों के लिए अभूतपूर्व आबंटन किए गए हैं।
वैश्विक क्रेडिट रेटिंग एजंसियों मूडीज, एसएंडपी, फिच आदि- ने वित्तवर्ष 2024-25 के बजट की सराहना करते हुए कहा है कि इसके तहत राजस्व घाटा (रेवेन्यू डेफिसिट) एवं राजकोषीय घाटा (फिस्कल डेफिसिट) कम करने की प्रतिबद्धता दिखाई देती है। कहा गया है कि बुनियादी ढांचे के निवेश पर आबंटन बढ़ाने की नीति लंबी अवधि की आर्थिक वृद्धि के लिए सहायक है। बजट अनुमानों के आधार पर अगले तीन वर्षों में सामान्य सरकारी ऋण सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 80 फीसद के स्तर पर रह सकता है, जो वित्तवर्ष 2021 के 89.3 फीसद से बहुत कम होगा। इससे राजकोषीय घाटा जीडीपी के लगभग 4.9 फीसद पर रहने की उम्मीद है, जो कि इसी वर्ष फरवरी में घोषित अंतरिम बजट में बताए गए राजकोषीय घाटे से कम है। ऐसे में, अब इसे और कम करके तत्परतापूर्वक आगे बढ़ना होगा।
निश्चित रूप से एक विकसित देश बनने के मद्देनजर नीति आयोग की रणनीति के मुताबिक भारत को ऊंचे आर्थिक एवं वित्तीय लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु निर्यात और निवेश में बड़े स्तर पर वृद्धि करनी होगी। तेजी से बढ़ती जनसंख्या की चुनौतियों के बीच नई पीढ़ी के लिए अधिक रोजगार, सभी के लिए सार्थक शिक्षा और कौशल तथा उद्यमशीलता के अवसरों वाले समाज का निर्माण करना होगा। केंद्र एवं राज्य दोनों स्तरों पर पूंजीगत व्यय बढ़ाकर बुनियादी ढांचे में निवेश पर अधिक ध्यान देना होगा। खाद्य एवं उवर्रक सबसिडी में और कमी के लिए कृषि क्षेत्र में शोध और नवाचार सहित बड़े सुधार करने होंगे।
निस्संदेह देश को विकसित बनाने के लिए कई और महत्त्वपूर्ण सेवाओं तथा सुविधाओं की गुणवत्ता बढ़ाने की जरूरत होगी। देश में प्रत्येक नागरिक के पास सुविधापूर्ण आवास, चौबीस घंटे शुद्ध पेयजल और बिजली आपूर्ति, हाई-स्पीड ब्राडबैंड और बैंकिंग सुविधाओं तथा उच्च जीवन प्रत्याशा के साथ विश्व स्तरीय और सस्ती स्वास्थ्य सेवाओं तक लोगों की पहुंच बढ़ानी होगी। सभी क्षेत्रों में प्रौद्योगिकी का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल, सार्वजनिक परिवहन, डीपीआइ और दूरसंचार सहित अत्याधुनिक बुनियादी ढांचा निर्मित करना होगा। देश के शहर और बाजारों, व्यापारिक और वित्तीय केंद्रों को दुनिया के सबसे बड़े और शीर्ष केंद्रों के रूप पहचान दिलानी होगी। मैन्युफैक्चरिंग, सेवाओं, अनुसंधान और नवाचार में आगे बढ़ना होगा। एक ऐसी जीवंत ग्रामीण अर्थव्यवस्था बनानी होगी, जिसमें ग्रामीण जीवन स्तर शहरी क्षेत्रों के बराबर दिखाना होगा। साथ ही, औसत ग्रामीण आय देश की प्रति व्यक्ति आय के बराबर लानी होगी।
इसमें दो मत नहीं कि देश को विकसित बनाने के लिए संस्थागत और सामाजिक बदलाव के आधार पर उच्च वृद्धि हासिल करनी होगी। श्रम सुधार करने होंगे। ऊर्जा क्षेत्र की मुश्किलें दूर करनी होंगी। औद्योगिक प्रतिस्पर्धा बढ़ानी होगी। अफसरशाही ढांचे में व्यापक सुधार करना होगा। कृषि के अतिरिक्त श्रमबल के लिए उद्योग और सेवा क्षेत्र में रोजगार सृजित करने होंगे। देश में काफी समय से लंबित पड़े प्रशासनिक सुधारों को अमलीजामा पहनाना होगा। न्यायिक प्रक्रिया और कानून के प्रवर्तन में सुधार और सरकार की जवाबदेही सुनिश्चित करनी होगी। महिलाओं की श्रमशक्ति में भागीदारी बढ़ानी होगी। इन सबके साथ-साथ सामाजिक बदलावों को लागू करने जैसे अभियानों के लिए प्रबल राजनीतिक और सामाजिक सहमति बनाई जानी होगी।
निश्चित रूप से नीति आयोग द्वारा प्रस्तुत विकसित भारत के दृष्टिपत्र के मद्देनजर 2047 तक देश में प्रतिव्यक्ति आय को बढ़ाकर करीब आठ गुना और जीडीपी को बढ़ाकर नौ गुना करने के साथ अधिक रोजगार, अधिक गुणवत्तापूर्ण जीवन, अधिक सामाजिक और संस्थागत सुधारों के लिए केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा स्पष्ट रूपरेखा और पूर्ण सामंजस्य के साथ कदम लगातार आगे बढ़ाने होंगे। तभी देश के करोड़ों नागरिक विकसित राष्ट्र निर्माण की उच्च भावनाओं से परिपूर्ण होकर देश को विकसित बनाने में अपना हर संभव योगदान देते दिखाई देंगे। उम्मीद की जानी चाहिए कि इन विभिन्न रणनीतिक प्रयासों से भारत विकसित देश बनने की कठिन और चुनौतीपूर्ण राह पर आगे बढ़ते हुए 2047 तक 30 लाख करोड़ डालर की अर्थव्यवस्था बनने और 18,000 डालर वार्षिक प्रतिव्यक्ति आय के संकल्प को हकीकत में बदलने में कामयाब हो सकेगा।