देश की जनसंख्या का एक बड़ा वर्ग वरिष्ठ नागरिकों का है। वे अपने ज्ञान और अनुभव से समाज के लिए अपना अमूल्य योगदान कर सकते हैं। इस दृष्टि से उनका कल्याण भी सरकारों और समाज की प्राथमिकता में होना चाहिए। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार देश में साठ वर्ष और इससे अधिक आयु के वरिष्ठ नागरिकों की जनसंख्या 10.38 करोड़ थी। फिलहाल वरिष्ठ नागरिकों की आबादी कुल आबादी का लगभग दस फीसद है। राष्ट्रीय जनसंख्या आयोग द्वारा गठित जनसंख्या अनुमानों पर तकनीकी समूह की रपट के मुताबिक वर्ष 2026 तक देश में साठ वर्ष से अधिक आयु के नागरिकों की संख्या 17.32 करोड़ होने की संभावना है। एक अनुमान के अनुसार वर्ष 2050 में हर चौथा व्यक्ति वरिष्ठ नागरिक होगा। इस वर्ग के अधिकांश नागरिक अपने परिवार, समाज और सरकार से किसी न किसी रूप में असहज, उपेक्षित और असहाय महसूस करते हैं। उनकी अपनी आर्थिक, शारीरिक और मानसिक समस्याएं हैं।

केंद्र और राज्य स्तर पर हैं कई सरकारी योजनाएं

केंद्र और राज्य सरकारों ने वरिष्ठ नागरिकों का सहयोग करने के लिए कई योजनाएं बनाई हैं। उन्हें परिवहन, स्वास्थ्य देखभाल और अन्य सेवाओं पर छूट तथा लाभ प्रदान किए जाते हैं। केंद्र और राज्य स्तर पर उनके लिए कई तरह की पेंशन योजनाएं भी हैं, जिनके माध्यम से उन्हें वित्तीय सहायता उपलब्ध कराई जाती है। उनके स्वास्थ्य देखभाल हेतु चिकित्सा व्यय पर छूट, सरकारी अस्पतालों में मुफ्त स्वास्थ्य सेवाएं और स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं में उनको प्राथमिकता देने जैसी सुविधाएं सम्मिलित हैं। उन्हें आय कर में सामान्य कर दाताओं की तुलना में अधिक कर छूट प्रादान की जाती रही है।

वरिष्ठ नागरिकों के हित सरंक्षण हेतु सरकार ने माता-पिता और वरिष्ठ नागरिक भरण-पोषण तथा कल्याण अधिनियम 2007 बनाया, जिसके अंतर्गत वृद्ध व्यक्तियों और माता-पिता के भरण-पोषण तथा देखरेख के लिए प्रभावी व्यवस्था का प्रावधान है। इस अधिनियम के अंतर्गत वे अभिभावक और वरिष्ठ नागरिक, जो अपनी आय या अपनी संपत्ति द्वारा होने वाली आय से भरण-पोषण करने में असमर्थ हैं, वे अपने व्यस्क बच्चों या संबंधितों से भरण-पोषण प्राप्त करने के लिए आवेदन कर सकते हैं।

वरिष्ठ नागरिकों की उपेक्षा को अपराध माना जाना चाहिए

इस अधिनियम के तहत वरिष्ठ नागरिकों की उपेक्षा और परित्याग को एक संगीन अपराध माना गया है, जिसके लिए पांच हजार रुपए का जुर्माना या तीन माह की सजा या दोनों हो सकते हैं। वरिष्ठ नागरिक के भरण-पोषण हेतु दस हजार रुपए प्रतिमाह राशि देने का आदेश भी किया जा सकता है। वरिष्ठ नागरिकों के लिए कई संगठन और गैर-सरकारी संस्थाएं भी विभिन्न रूपों में सेवाएं प्रदान करती हैं। इनमें ‘डे केयर’ केंद्र वृद्धाश्रम, कानूनी मामलों में सहायता और आर्थिक-सामाजिक गतिविधियां तथा सामुदायिक सहभागिता जैसे कार्य किए जाते हैं।

यह सब होते हुए भी देश के वरिष्ठ नागरिकों को विभिन्न समस्याओं और चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। बहुत से वरिष्ठ नागरिक गंभीर आर्थिक समस्याओं से जूझ रहे हैं। उनकी कोई नियमित आय नहीं है, पेंशन या सामाजिक सुरक्षा की योजनाओं तक उनकी पहुंच सुलभ नहीं है। इनकी स्वास्थ्य सेवाओं से संबंधित समस्याएं भी कम नहीं हैं। उनके लिए पर्याप्त आरोग्य परामर्श सेवाएं उपलब्ध नहीं होतीं। उनको विशेष चिकित्सा सुविधाएं और निश्शुल्क दवाएं पाने में भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।

वरिष्ठ नागरिक समाज में अलगाव की स्थिति से भी त्रस्त हैं। उनमें समाजिक संपर्कों की कमी के कारण अकेलापन बना रहता है। उनको अपनी संपत्ति की सुरक्षा और अपने साथ होने वाले अपराधों से बचाव की भी जरूरत होती है। वरिष्ठ नागरिकों, खासकर अकेले रहने वाले व्यक्तियों, के साथ उनकी संपत्ति से जुड़े और उनके साथ होने वाले अपराधों के समाचार आते रहते हैं।

विगत कुछ वर्षों में वरिष्ठ नागरिकों को सरकारों से मिलने वाली सुविधाओं में कटौती देखी जा रही है। उन्हें इस वर्ष के आम बजट से काफी उम्मीदें थीं। कोरोना काल में वर्ष 2020 में रेल किराए में वरिष्ठ नागरिकों और महिलाओं को मिलने वाली छूट को बंद कर दिया गया। आम चुनाव के दौरान सत्तर वर्ष और उससे अधिक आयु के वरिष्ठ नागरिकों को मुफ्त इलाज हेतु स्वास्थ बीमा कवर देने का वादा किया गया, मगर उसके संबंध में बजट में कोई घोषणा नहीं हुई। वरिष्ठ नागरिक आयकर में और अधिक छूट की उम्मीद लगाए हुए थे, लेकिन उन्हें मानक कटौती में 25 हजार रुपए की मामूली वृद्धि के अलावा कुछ नहीं मिला।

अस्सी वर्ष से अधिक आयु के वरिष्ठ नागरिकों को मिलने वाली अतिरिक्त छूट में भी कोई वृद्धि नहीं हुई। स्वास्थ्य बीमा के प्रीमियम पर लगने वाले जीएसटी की वर्तमान दर 18 फीसद है, जिसका भार किसी न किसी रूप में बीमाधारकों को ही वहन करना पड़ता है, उसे घटा या हटा कर स्वास्थ्य बीमा की लागत कम करने की अपेक्षा थी, लेकिन बजट में इस बारे में कोई घोषणा नहीं हुई। अब स्वास्थ्य बीमा और जीवन बीमा के प्रीमियम पर लगने वाले जीएसटी को पूरी तरह हटाने की मांग जोर पकड़ रही है। सरकार को इस दिशा में विचार करने की जरूरत है।

वरिष्ठ नागरिकों की एक बड़ी संख्या के जीवन यापन का आधार उनकी सेवा निवृत्ति पर मिली पीएफ और ग्रेच्युटी की राशि पर मिलने वाला ब्याज है। उनको अन्य किसी तरह की पेंशन आदि नहीं मिलती। बैंकों में जमा राशियों पर मिलने वाले ब्याज की दरों में विगत दस-बारह साल से निरंतर कमी आ रही है। ब्याज दरें इस अवधि में लगभग तीन से पांच फीसद कम हो गईं। हालांकि बैंकों द्वारा वरिष्ठ नागरिकों को आधा फीसद ब्याज अधिक दिया जाता है, लेकिन दस वर्ष पूर्व की ब्याज दरों की तुलना में यह आधा फीसद जोड़ने के बाद भी वास्तविक ब्याज दर कम ही हुई है। एक तरफ महंगाई बढ़ी, दूसरी तरफ ब्याज दरों में कमी आई, इससे वरिष्ठ नागरिकों पर दोहरी मार पड़ी है।

संगठित क्षेत्र में नई पेंशन योजना यानी एनपीएस में आने वाले ऐसे कर्मचारी, जिनका वेतन कम था या उनकी सेवा अवधि कम रही, उनको इस योजना के अंतर्गत मिलने वाली पेंशन तीन-चार सौ रुपए प्रतिमाह मिलने के समाचार भी आते रहते हैं। यह राशि केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा गरीब वरिष्ठ नागरिकों और महिलाओं आदि को मिलने वाली पेंशन से भी बहुत कम रहती है। एनपीएस में आने वाले वरिष्ठ नागरिकों को एक न्यूनतम पेंशन देने की मांग भी समय-समय पर उठती रही है, लेकिन अभी तक इस दिशा में कोई घोषणा नहीं हुई है।

कुल मिलाकर केंद्रीय बजट और सरकारी घोषणाओं में वरिष्ठ नागरिकों के हित में कुछ भी नहीं हुआ। समाज के अन्य कमजोर वर्गों की तरह वरिष्ठ नागरिकों का बड़ा वर्ग अपनी आर्थिक आवश्यकताओं की पूर्ति में सक्षम नहीं है, कई मामलों में उनके भूखों मरने की नौबत तक आ रही है। आज जरूरत है कि वरिष्ठ नागरिकों को सम्मानजनक जीवन यापन करते रहने के लिए उनकी न्यूनतम जरूरतों की पूर्ति के लिए सक्रिय प्रयास हों। इसके लिए ऐसे वरिष्ठ नागरिक, जो शारीरिक, आर्थिक और मानसिक दृष्टि से सक्षम हैं, वे स्वयं, सरकार और समाजसेवी संगठन इस दिशा में सक्रिय प्रयास करें, तो आम वरिष्ठ नागरिक अपने जीवन का शेष समय स्वस्थ, प्रसन्न रहते हुए बिता सकते हैं।