आईआईटी मद्रास ने ब्लैक फंगस के मरीजों के लिए ‘जोरिओक्स इनोवेशन लैब्स’ के साथ मिल कर 3डी-प्रिंट से चेहरे का इम्प्लांट तैयार किया है। जानकारी के लिए बता दें कि ब्लैक फंगस’ की वजह जिन मरीजों का चेहरा खराब हुआ है, अब उन्होंने 3डी-प्रिंट तकनीक के जरिए फिर से नया चेहरा और मुस्कान मिलेगी। यह भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) मद्रास के शोधकर्ताओं के रहते हो पाया है। इस फंगस का असर कोविड-19 के मरीजों के साथ-साथ अत्यंत गंभीर मधुमेह, एचआइवी-एड्स और अन्य बीमारियों के मरीजों में देखी गई है। अब तक आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के 50 रोगियों के चेहरे सही हो चुके हैं।
कैसे संभव हुआ?
संस्थान ने चेन्नई के डेंटल सर्जनों के स्टार्ट-अप ‘जोरियोएक्स इनोवेशन लैब्स’ के साथ मिल कर यह पहल की है। इसका आधार मेटल 3डी प्रिंटिंग या एडिटिव मैन्युफैक्चरिंग है। भारत में ‘ब्लैक फंगस’ रोग का प्रकोप एक बड़ी चिंता बनी हुई है। इस बीमारी को ‘म्यूकोर्मिकोसिस’ कहते हैं। इसके सबसे गंभीर खतरों में एक चेहरे का खराब होना है। इससे मरीज को गंभीर मानसिक और भावनात्मक आघात लगता है।ऐसे में ‘ब्लैक फंगस’ से विकृत चेहरों का पुनर्निर्माण करना अत्यावश्यक है। भारत में कोविड के कारण म्यूकोर्मिकोसिस के लगभग 60,000 मामलों सामने आए थे।
म्यूकोर्मिकोसिस के फंगस चेहरे के उतकों को नष्ट कर विकृति पैदा कर सकते हैं। अधिक गंभीर मामलों में मरीज अपनी नाक, आंखें या यहां तक कि अपना पूरा चेहरा खो सकते हैं। इतना ही नहीं ऐसे अहम अंगों के बुरी तरह प्रभावित होने से मरीज के लिए सांस लेना, खाना और बात करना भी कठिन हो सकता है। कुल मिला कर उनके लिए जीना मुहाल हो जाता है।
‘ब्लैक फंगस’ की वजह से विकृत हुए चेहरे वाले मरीजों के लिए पुर्निर्माण सर्जरी एक व्यावहारिक समाधान है। इस तरह रोगी खोया हुआ स्वरूप प्राप्त करता है और फिर से अपना काम-काज कर सकता है।वह अधिक सहजता से जीवनयापन कर सकता है। गौरतलब है कि प्रत्येक मरीज के मुताबिक इम्प्लांट तैयार करना और सर्जरी करना महंगा है। इसलिए यह कमजोर वर्ग के लोगों के लिए पहुंच से बाहर है।
क्या कहते हैं शिक्षक मुरुगैयान अमृतलिंगम?
आइआटी मद्रास की इस अभिनव तकनीक के बारे में विस्तार से बताते हुए संस्थान में ‘मेटलर्जी और मटीरियल इंजीनियरिंग’ विभाग के शिक्षक मुरुगैयान अमृतलिंगम ने कहा कि कम मात्रा में जटिल बाडी इम्प्लांट तैयार करने के लिए 3डी प्रिंटिंग पहले से ही एक व्यावहारिक और किफायती स्वरूप निर्माण प्रक्रिया के रूप में हमारे सामने है। इसमें प्रत्येक मरीज के अनुसार डिजाइन करने की सुविधा है। आइआटी मद्रास इस क्षेत्र में व्यापक अनुसंधान कर रहा है ताकि इस तकनीक का व्यावासयिक उपयोग हो।प्रत्येक मरीज के अनुसार स्टेनलेस स्टील, टाई-6एआई-4वी और को-क्रो-मो एलाय के इम्प्लांट प्रिंट किए जाएं।
ह काम आइआइटी मद्रास में स्वदेशी तकनीक से तैयार लेजर पाउडर बेड पर किया जाता है। खास कर गरीब और जरूरतमंद रोगियों की मदद के लिए शुरू की गई ‘राइट2फेस’ पहल का उद्देश्य ‘ब्लैक फंगस’ के रोगियों के इलाज के लिए आवश्यक इम्प्लांट प्रदान करना है।
‘जोरियोएक्स इनोवेशन लैब्स’ के सीईओ कार्तिक बालाजी ने बताया कि कोविड के कारण ‘ब्लैक फंगस’ के मामले बहुत बढ़े थे। ऐसे मरीजों की जान बचाने के लिए चेहरे की काफी हड्डियां निकालनी पड़ीं। अक्सर ये मरीज ही परिवार का भरण-पोषण करते रहे थे जो अब चेहरे के विकृत होने के कारण घर के बाहर कदम नहीं रखते पाते हैं। उनकी मदद के लिए शुरू किए गए ‘राइट2फेस’ मिशन का मकसद सर्जनों के साथ मिल कर ऐसे मरीजों को उनका खोया हुआ चेहरा और उनकी मुस्कान वापस लाना है।
इस पहल को विशिष्ट कहने की वजह यह है कि आइआटी मद्रास की टीम मरीजों के चेहरे से हू-ब-हू मिलते इम्प्लांट प्रिंट करने में सफल रहे हैं। टीम के शोधकर्ता मरीजों के सीटी डेटा लेकर खास उनके लिए इम्प्लांट डिजाइन करते हैं, जो मरीज पर सटीक बैठते हैं। आइआइटी मद्रास खास कर ‘ब्लैक फंगस’ के रोगियों के लिए ऐसे इम्प्लांट प्रिंट करने वाले संस्थानों में अव्वल स्थान रखता है। आइआइटी मद्रास के शोधकर्ता जरूरतमंद मरीजों का पता लगा रहे हैं, जो आयात किए हुए महंगे इम्प्लांट नहीं खरीद सकते और ‘राइट2फेस’ नामक पहल के तहत उन्हें निःशुल्क इम्प्लांट दे रहे हैं।