पिछले तीन महीनों से अधिक समय से दिल्ली से सटे सीमाओं पर किसानों का आंदोलन चल रहा है। आंदोलनकारी किसान केंद्र सरकार द्वारा पारित किए गए तीनों कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग कर रहे हैं। इसी बीच भारतीय किसान यूनियन भानु गुट के राष्ट्रीय अध्यक्ष भानु प्रताप सिंह ने आरोप लगाया है कि दिल्ली बॉर्डर पर आंदोलन कर रहे लोगों को कांग्रेस ने खरीद लिया है। कांग्रेस ही इन लोगों को फंडिंग कर रही है। हालांकि भानु गुट 26 जनवरी को हुई हिंसा के बाद अपने आप को किसान आंदोलन से अलग कर चुका है।

भारतीय किसान यूनियन भानु गुट के राष्ट्रीय अध्यक्ष भानु प्रताप सिंह ने मीडिया से बातचीत करते हुए कहा कि 26 जनवरी को हमें मालूम पड़ा था कि जितने भी यह संगठन सिंघु बॉर्डर, गाज़ीपुर बॉर्डर, टिकरी बॉर्डर पर आंदोलन कर रहे थे। ये सब कांग्रेस के खरीदे हुए और कांग्रेस के भेजे हुए संगठन थे। कांग्रेस इनको फंडिंग कर रही थी। साथ ही भानु प्रताप सिंह ने कहा कि जब हमें मालूम पड़ा कि इन्होंने 26 जनवरी को पुलिस पर हमला किया। इन्होंने लाल किले पर दूसरा झंडा फहराया। उसी दिन हमने संकल्प लिया कि हम इनके साथ नहीं रहेंगे और हम चले आए।  

बता दें कि 26 जनवरी को दिल्ली में हुई हिंसा के बाद भारतीय किसान यूनियन (भानु गुट) ने अपना धरना समाप्त करने का ऐलान कर दिया था। भानु प्रताप सिंह ने कहा था कि 26 जनवरी को जो कुछ हुआ वह बहुत दुखद है। साथ ही उन्होंने कहा था कि मैं 26 जनवरी की घटना से इतना दुखी हूं कि मैं चिल्ला बॉर्डर पर चले रहे धरने को ख़त्म करने की घोषणा करता हूं। भानु गुट के साथ राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन ने भी धरने को ख़त्म कर दिया था। 

राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन के नेता वीएम सिंह ने भी कहा था कि मैं किसी ऐसे व्यक्ति के साथ विरोध नहीं कर सकता, जिसकी दिशा अलग है। मैं उन्हें शुभकामनाएं देता हूं, लेकिन वीएम सिंह और राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन विरोध से पीछे हट रहे हैं। हालांकि भानु गुट ने पहले भी सरकार के साथ एक मीटिंग के बाद आंशिक रूप से आंदोलन को ख़त्म कर लिया था। 

पिछले साल दिसंबर माह में किसान नेता भानु प्रताप सिंह और केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह के बीच हुई एक गुप्त मीटिंग के बाद भानु गुट ने चिल्ला बॉर्डर पर चले रहे आंदोलन को आंशिक रूप से ख़त्म कर दिया था और चंद लोग ही वहां बचे रह गए थे। 26 जनवरी के बाद भानु गुट ने पूरी तरह से चिल्ला बॉर्डर को ख़त्म कर दिया था। हालांकि इस संगठन को संयुक्त किसान मोर्चा में भी शामिल नहीं किया गया था।