उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और बसपा के गठजोड़ ने भाजपा के लिए नई चुनौती पेश कर दी है। हाल ही में उत्तर प्रदेश में हुए उप-चुनावों में इसका असर भी देखने को मिला, जब भाजपा को अपने गढ़ गोरखपुर में भी हार का सामना करना पड़ा। उप-चुनावों में मिली हार ने जहां भाजपा को अपनी रणनीति पर फिर से विचार करने को मजबूर कर दिया है, वहीं बसपा और समाजवादी पार्टी समेत सभी विपक्षी पार्टियों की बांछे खिल गई हैं। जिसके बाद पूरे देश में विपक्षी पार्टियां एकजुट होकर भाजपा को घेरने में जुट गई हैं। सवाल उठ रहा था कि भाजपा इसकी काट खोजने के लिए क्या कर रही है। सभी राजनैतिक पर्यवेक्षकों का ध्यान भी इस बात पर लगा था कि साल 2019 के लोकसभा चुनावों में भाजपा की रणनीति क्या होगी? अब खबर आयी है कि अमित शाह ने सपा-बसपा के गठबंधन का तोड़ निकाल लिया है!

चर्चाएं चल रही हैं कि सपा-बसपा गठबंधन की काट निकालने के लिए भाजपा सरकार 17 अति पिछड़ी जातियों जैसे राजभर, निषाद, मल्लाह और कुम्हार आदि को अनुसूचित जाति में शामिल कर सकती है। बता दें कि साल 2014 में भाजपा ने इसका वादा भी किया था। अब जब सपा-बसपा ने गठबंधन कर लिया है तो भाजपा अपने इस वादे पर अमल कर सकती है। उत्तर प्रदेश चूंकि भारतीय राजनीति के लिए बेहद अहम राज्य है। ऐसे में उत्तर प्रदेश के लिए भाजपा की रणनीति थोड़ी अलग हो सकती है। सूत्रों के अनुसार, भाजपा अनुसूचित जाति और अन्य पिछड़ी जातियों को मिलने वाले आरक्षण में उप-कोटा तय कर सकती है।

यदि ऐसा होता है तो इसका असर यह होगा कि अन्य पिछड़ी जातियों में मिलने वाले आरक्षण का लाभ अति पिछड़ी जातियों को भी मिल सकेगा, जबकि अभी तक यादव ही इस आरक्षण का सबसे ज्यादा लाभ लेते रहे हैं। गौरतलब है कि यादव, समाजवादी पार्टी का वोटबैंक माने जाते हैं। ऐसे में भाजपा को इसका सीधा लाभ मिल सकता है। इसी तरह अनुसूचित जातियों के मिलने वाले आरक्षण का लाभ अभी तक जाटवों को ज्यादा मिलता रहा है, जो कि बसपा के वोटबैंक रहे हैं, लेकिन उप-कोटा तय करने के बाद अति-अनुसूचित जातियां जैसे बाल्मिकी, पासी, धोबी आदि को भी आरक्षण का लाभ मिल सकेगा।